मैं काफी दिनों से तुम्हारा इंतज़ार कर रहा था....... फिर वही आवाज़ (लेकिन मै चौंका या डरा नहीं..... क्योंकि मुझको अंदाज हो गया है की दिल से भी आवाज़ आती है.)
हाँ........ मै भी आप से बात-चीत करना चाहता था, लेकिन कुछ व्यस्त था.
मै जानता हूँ.
आप तो सब जानते हैं.
आज काफी इज्ज़त दे कर बात कर रहे हो?
नहीं..... पहली बार मै समझ ही नहीं पाया था.
अरे.... मै तो तुम्हारा सब से अच्छा दोस्त हूँ, अगर तुम मंजूर करो तो.
मंजूर........ ये बात अब मै और भी अच्छी तरह से समझ गया हूँ. तुम मेरे पास होते हो, मेरे साथ होते जब कोई दूसरा नहीं होता.
क्या बात है.... बातों मे कुछ उदासी झलक रही है.
उदासी..... हाँ.... आप कह सकते हैं.
भला क्यों?
जब अपनों से दूरियां बनती हैं तो दर्द स्वाभाविक है.
दूरियां............... तो तब बनती हैं जब नजदीकियां रही हों?
क्या मतलब......
अरे भाई..... नजदीक यहाँ कोई किसी के नहीं होता. जिसको तुम नजदीकियां समझते हो... मात्र छलावा है. यही बात तो तुम लोग समझते नहीं हो.
मतलब... की कोई किसी के नजदीक नहीं है.
हाँ.... यही सच है. कडुवा है न. लेकिन सच है. जब तक तुम अपने आप को रख कर तोलते रहोगे, दुखी ही रहोगे. सिर्फ सोच को बदलो और दुनिया कितनी रंगीन है वो देखो.
कैसी सोच.....
जहाँ पर तुम अपने आप को रखते हो, वहाँ पर दूसरे को रख कर देखो. तुम कभी भी वो व्यहार नहीं करोगे जो तुम्हे पसंद नहीं है. लेकिन............ तुम्हारी............ तेरी और मेरी ............ इस सोच ने दुनिया को ही नहीं बांटा, इंसान के भी टुकड़े - टुकड़े कर दिए. लेकिन ..... मै तो हंसता रहता हूँ की इसके बाद भी तुम लोगों को कोई दुःख, पछतावा, ग्लानी नहीं होती. बल्कि गर्व होता है. अरे..... मूर्ख.... मेरा कुछ नहीं बिगड़ता , बिखरते तुम लोग हो. मैने तुमको बुद्धि दी.... वो तुमने दूसरों के घर गिरवी रख दी. जो दूसरों के कहने पर अपने रिश्ते बनता और बिगाड़ता हो... उसका तो अल्लाह ही हाफ़िज़ है. तुम्हारी तो सोचने और समझने की शक्ति कुंद हो गयी है.
तो क्या करें..... दूसरों को सुने नहीं.
सुनो.... कान इसीलिए हैं. लेकिन बुद्धि भी है.....
आप ठीक कह रहे हैं....
चलो तुम ने माना तो.
लेकिन.......
फिर लेकिन... कितने but , किन्तु परन्तु, लेकिन, हैं तुम्हारे पास.
देखो.... आधी अधूरी ज़िन्दगी मत जियो. ज़िन्दगी को ifs and buts मे मत बांटो. खाना तो कभी आधा पेट नहीं खाते हो, कपड़े अधूरे नहीं पहनते हो... तो फिर ज़िन्दगी को अधूरी क्यों जीते हो......... क्या ज़िन्दगी जीने के लिए तुमको पैसे खर्च करने पड़ते है....... नहीं. ये तो मुफ्त है... तो अधूरी क्यों.
दुनिया का क्या करूँ...?
अरे.... दुनिया तो तुम्हारे घर का drawing room है...... सजा हुआ, संवारा हुआ. इसको तितर - बितर किसने किया? रही बात दुनिया वालों की....? वो तो जोकर हैं....... हँसने- हँसाने के लिए हैं. उनको वहीं तक रहने दो. पैर की धूल को माथे पे नहीं लगते........ हाँ किसके पैर की धूल है.... ये जरुर ध्यान रखना.
दुनिया वालों की फ़िक्र करोगे तो ये तुम्हे जीने नहीं दंगे..... अगर आज तुम परेशान हो..... इसके जिम्मेदार तो तुम खुद ही हो.
प्रेम..... प्रेम के बारे मे क्या सोचते हैं आप.....?
मै सोच रहा था..... की तुम अभी तक मुद्दे पे क्यों नहीं आ रहे हो. क्या जानना चाहते हो प्रेम के बारे मे......
इसके खिलाफ क्यों हैं सब........
कौन है....... इसके खिलाफ. कोई भी तो नहीं.
क्या बात करते हो.....
अरे भाई... मे ठीक कह रहा हूँ. कोई भी इसके खिलाफ नहीं है, क्योंकि ये तो सब की जरुरत है..... हाँ प्रेम बिना तो ज़िन्दगी वैसी ही है जैसे बिना नमक का समोसा.
वाह.... क्या मिसाल दी है.
आम चीजों की मिसाल जल्दी समझ मे आती है. हाँ..... तो प्रेम सब की जरुरत है. इसके खिलाफ सिर्फ वही होते हैं जिनको ये नहीं मिलता, या को लोग ये नहीं समझते की प्रेम क्या है. प्रेम.... ध्यान दो "प्रेम" शरीर से परे होता है. लैला मंजनू की कहानी आज भी दोहराई जाती है...... क्योंकि वो प्रेम था. अपने आप को प्रेम के तराजू पर तोलो. अगर अपने अलावा सिर्फ प्रेम का लक्ष्य नज़र आता है, अपने बारे मे सोचने से पहले जिसको प्रेम करते हो, उसका ख्याल आता है......लेने के लिए नहीं.... हाँथ देने के लिए उठते हो.... तब समझ लेना की प्रेम है.... और इसकी खिलाफत नहीं होती.
अच्छा...... वक़्त काफी हो गया है. आज बस करें?
जैसी तुम्हारी मर्जी. मेरे पास तो उतना वक़्त है... जितना तुम अपने आप को देना चाहो.
No comments:
Post a Comment