Friday, April 16, 2010

जिस दिन तुम शहर से थक जाओ, मुझे आवाज़ दे लेना.............

मेरा गाँव, रानीखेत से थोड़ा पहले पड़ता है. घर के ठीक पीछे एक पहाड़ी नदी बहती है. और उसके दोनों तरफ खेत हैं. जहाँ मैने अपना बचपन गुजारा है. रानीखेत हिमालय के गोद मे पड़ता है.


फिर मैने गाँव जाने का मन बना ही लिया. और करता भी तो क्या. कहाँ तक अपने आप  को रोज़ मारता.  अपनी जमीन से हटकर, कोई कितने दिन खुश रह सकता है........... जिन्दगी ने इतनी उलझाव , इतने छलावे दिए, कि मै  पाने आप को ही खो बैठा. ..... शहर कि तड़क - भड़क म मुझे ज्यादा दिन बाँध कर नहीं रख सकती. 
 
मेरा दिल अंदर से कचोटता है, वापस जाने के लिए. मुझे हिमालय बुलाता है. मुझे चीड़ के जंगल आवाज़ देते हैं. मुझे बुरांस के लाल चटकीले फूल याद आते हैं. गाँव कि वो बूढी माँ याद आती है, जो पीठ पे लकड़ी का गट्ठर उठा, एक कप चाय के लिए मेरे घर आती थी. जब मेरे गाँव से कोई बस गुजरती थी , तो गाँव के छोटे छोटे बच्चों के लिए , शैतानी करने का बहाना बन जाती थी. मेरे घर के पास से ही पहाड़ का ठंडा पानी गिरता है. और उसी के पास सुंदर लाल की छोटी से चाय की दूकान है. पीतल के छोटे छोटे चमकते हुए गिलास और प्याज,गोभी और आलू की गरम गरम पकोडिया किसी पकवान से कम नहीं होती थी. और जब किसी टूरिस्ट की कार या बस आ कर रूकती थी तो सुंदर लाल ऐसे भाग भाग उनका स्वागत करता था की जैसे भगवान् आ गए हो. इसलिए नहीं की वो उसके ग्राहक हैं, बल्कि इसलिए की दूर से आ रही है, थके होंगे.

पहाड़ो पर दूर - दूर  गाँव बसे होते हैं, और ज्यों ज्यों शाम घिरती है, घरों में लाइट जलती है तो ऐसा लगता है जैसे तारे जमीन पर उतर आयें हों. मेरे घर के पास वाले घर मे कोई जलसा है. अरे हाँ........ उनका बड़ा लड़का जो फ़ौज मे है, आज सुबह ही तो घर आया है. माँ ने नयी धोती पहनी  है, और उसके पिता जी बंद गले का कोट पहन कर कितना इतरा रहे है और इतराये भी क्यों न. बेटे ने माँ को नयी धोती दे है और पिता को नया बंद गले का कोट. छोटी बहन के लिए वो गुड्डे - गुडिया का सेट भी लाया है.   ढोलक कि थाप, और गाने कि आवाज़ सुनाई पड़ रही है.  घर मे काफी भीड़ है, मेहमानों की. इसी मौके पे तो पास वाले घर की लड़की, अपने प्रेमी से दबी जबान मे कुछ कह रही है. उसमे कुछ बनावट नहीं है.लड़का कुछ कह रहा है,शायद  लड़की को, पसंद नहीं आ रहा है. तभी तो उसके चेहरे का रंग कुछ शर्म और कुछ डर ओढे हुए है. मुझे याद आ रहा है बिहारी का वो दोहा - " कहत ,  नटत, रिझात , खिझात, मिळत, खिलात लजियात. भरे भवन मे करत हैं, नैनन ही सो बात.  कितनी सचाई है उस के शर्माने मे.

मेरे गाँव मे लोग छोटे होते है , लेकिन इंसान बहुत बड़े होते हैं. अगर किसी के घर कोई जरूरत पड़ जाये तो सारा गाँव इकठा हो जाता है, जैसे उसका अपना ही घर हो. मेरे गाँव मे राशन की दूकान वाले है ,उनका नाम है इसहाक मियां. पचास से उपर ही होंगे, लेकिन अगर आप उनको बचों के साथ देख ले , तो जान नहीं पायेंगे , की बच्चा कौन है. और जब शाम की अज़ान के बाद , वो पंचायत वाले पेड़ के नीचे बैठते हैं, तो कुरआन और भगवद गीता के कहानियां  सुनाते हैं, की सारा गाँव वहां आकर बैठ जाता है. तुम भी तो वहां आ कर बैठ जाती थी.

सुंदर लाल ने कल एक रेडियो खरीदा और अपनी दूकान पे बजाया तो गाँव मे फिर एक मिठाई खाने का बहाना मिल गया. एक फ़िल्मी गाने के उपर बच्चे खूब  नाचे, कितने सीधे होते है. सुंदर लाल का रेडियो , गाँव वालों की अमानत बन गया. मै गाँव जा कर खुद को जीना चाहता हूँ. तुम भी तो चलोगी मेरे साथ. चलोगी न...... मुझे अपने गाँव के वो छोटे छोटे बच्चे , जो ढीली से पैंट, लम्बी से कमीज़,उपर से लम्बा सा स्वेटर पहन कर, अपने टमाटर जैसी लाल लाल गालो पे निस्वार्थ से हंसी लिए दिन भर इधर उधर घूमा करते हैं. कभी सुंदर लाल की दूकान पे मजमा तो कभी इसहाक मिया की दूकान मे जलवा. यही तो मेरा गाँव.

जिस दिन तुम शहर से थक जाओ, मुझे आवाज़ दे लेना.............

6 comments:

Udan Tashtari said...

बड़ी दूर ले गये बहा कर अपने आलेख में...मन पहुँचा हमारा हमारे गांव में.

Shekhar Kumawat said...

ghanv ki yad aa gai

bahut acha

shkaher kumawat

http://kavyawani.blogspot.com/

दिलीप said...

gaanv me ab bhi kitna apnapan hai....sheher me sab banavti....

http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/

संजय @ मो सम कौन... said...

हम थक चुके हैं जी शहर से, और आपके गांव की बात सुनकर लग रहा हि कि वो अभी तक गांव ही है। हमें ले चलेंगे अपने गांव? पर आपने तो यह प्रश्न किसी विशिष्ट इंसान से किया था। कोई बात नहीं, ईश्वर करे वे आपकी बात मान लें।

बहुत अच्छा लगा।

आभार।

just explore me said...

Hindustaan hi Gaaon ka desh hai . chaliye hum bhi gaaon chale is sehri jeevan ko alvida kehtey hai ! bahut khoob rachna hai aapki

Puneet said...

ye sach hai k har kisi ka apna ganv/ghar use humesha yaad rehta hai... humney bhi kuch aisa hi bachpan bitaya tha...

aapney hume aaj phir us ganv se bahut door honey ka ehsas kara diya..

aaj bhi jub kubhi hum apney ghar jate hai to waps aatey samay humari palko k kinaro par ek chota sa sammandar rehta hai.. par hum ise kubhi dikha nahi sakte ...............