Thursday, April 8, 2010

चलो.. दिल से खेलें....

चलो.. दिल से खेलें....... अरे अपने नहीं , दूसरों के. पागल ...... तू भी न सीधी की सीधी रही. कैकयी बन, मंथरा बन.

इस खेल का न, मज़ा ही अलग है. हाँ री सखी हाँ. तू ठीक कह रही है. ये एक ऐसा खिलौना है जो मुफ्त में  मिलता है. और इसके अंदर काफी feelings, emotions, sentiments stuffed होते हैं. और एक - एक करके उनको तोड़ने का मज़ा, हाय अल्लाह..... मैं क्या बताऊँ.

और सुन सखी, इस खिलोने से खेलने मे हाँथ भी गंदे नहीं होते. क्योंकि ये दिखाई नहीं देता और रही बात अंतरात्मा या concious की उसकी आजकल के बाज़ार मे कोई कीमत नहीं है. हाँ, कुछ करना भी नहीं पड़ता है इसको तोड़ने में. सखी....... feelings, sentiments , emotions को पेरों तले रोंदने का मजा ............ न पूंछ सखी न पूंछ. और इस खेल का मज़ा तब और भी बढ़ जाता है, जब khiloney  का मालिक तुझ पर पूरी तरीके  से यकीन करने लगे. और जब तुझे लगे की अब तुने उसका विश्वास जीत लिया है, तभी वो समय होता है, सखी जब उसको तोड़ने का पूरा मज़ा आता है.

इस खेल को खेलने मे थोड़ी सावधानियां भी बरतनी पड़ती हैं. जैसे:- तुझे ये पूरा ध्यान रखना पड़ेगा की तेरा दिल उसके दिल से न मिले. हमेशा अपना दिमाग इस्तेमाल कर, सखी. और समय - समय पर ये ध्यान रख कि वो तुझ पर कितना भरोसा करता है. उसका भरोसा जीत, विश्वास जीत, जब तुझे लगे कि वो पूरी तरीके से तेरी बातों पे भरोसा करता है या करने लगा है........... बस यही मौका है जब उसको तोड़ और उससे मिलने वाले असीम सुख ka अनुभव कर.

अगर दिल , जिससे तुझे खेलना है, वो emotional है , तो तेरा काम जल्दी हो सकता है. क्योंकि ये जो emotional लोग होते हैं, ये बेवक़ूफ़ होते हैं, इनको backward class मे गिना जाता है. और ये दूसरे पे भरोसा करने कि गलती आमतोर पर और जल्दी करता है. . इसलिए  emotional शिकार ढूंढना...... सखी.

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