Tuesday, July 23, 2019

एक पुराना मौसम लौटा - 2

जैसा नाम वैसा स्वभाव और वैसा ही चरित्र।  बहुत मुश्किल है लेकिन फिर भी ऐसे लोग हैं। जो अपने लिए नहीं जीते हैं।

आप आनंद जी को कब से जानते हैं ? सुशीला का प्रश्न

बेटी जानता तो मैं इसको कई सालों से हूँ लेकिन पहचान पाने में बहुत देर लगी।

ये कैसे हो सकता है बाबा ? जिसको हम जानते हैं उसको पहचानते भी हैं ना।

नहीं बिटिया दोस्त होता नहीं हर हाथ मिलाने वाला।  हम बहुत से लोगों को जानते हैं लेकिन पहचानते कितनों को हैं या कितनों को पहचान पाते हैं ? अब आनंद को ही ले ले।  हाँ कई सालों से जानता हूँ।  गाँव का स्कूल उसके पिता जी का खुलवाया हुआ है।

बाबा अविनाश जी का घर कौन सा है गाँव में ?

यहां से दो ढाई कोस होगा।  तुझे राधा का घर पता है ?

हाँ बाबा

वहां से सौ  गज आगे, उलटे हाथ पर ।

अरे वो फूलों वाला।  जहां मालिन दादी रहती हैं।

हाँ बिटिया।

वो आनंद का ही घर है।  मालिन आनंद के घर पर सालों से काम कर रही हैं।

आनंद भी मंदिर से निकल कर ख़रामा ख़रामा चलता हुआ बढ़ चला।  उसकी चाल देख कर कोई भी भाँप सकता है कि वो सिर्फ चल रहा है कहाँ जा रहा है , मंज़िल कहाँ है पता नहीं। इंसान के दिमाग में क्या चल रहा है उसकी बॉडी language को देखकर न - न पढ़कर समझा जा सकता है।  लेकिन ये कला , ये विधा तो विधाता ने सबको दी लेकिन उसका इस्तेमाल सभी नहीं कर पाते हैं।  खैर साहब छोड़िये मैं भी कहाँ विधि और विधान ले कर बैठ गया।

आनंद ने मुड़कर देखा कि मंदिर से वो कितना आगे निकल आया है।  तसल्ली हो गयी कि हाँ खासी दूर हूँ तो जेब से चुरुट की डिब्बी निकाली और एक सिगरेट जला कर उसके कश लेते हुए चलता रहा।

आनंद भइया ..... राम राम ! बड़ी जानी पहचानी सी आवाज़।

कौन है भाई ?

अन्धेरा थोड़ा गहरा गया था इसलिए सूरत नहीं दिखाई पड़ रही थी।

भैया मैं कुंदन।

अरे कुंदन भाई , माफ़ करना अँधेरे की वजह से पहचान नहीं पाया।  कैसे हो ?

मैं बिलकुल ठीक हूँ।  आप कैसे हो और कब आये कहाँ थे ?

आनंद ने मन में सोचा कि ३ प्रश्नो का जवाब तो सबको देना ही पड़ेगा - कहाँ थे , कैसे हो और कब आये।

ठीक हूँ कुंदन और आये हुए अभी १ ही दिन हुआ है और कहाँ थे , बस ये न पूछो।

अच्छा अभी चलता हूँ भाई कुंदन।  कल दूकान पर आता हूँ।

ठीक है भैया।

आनंद आगे बढ़ गया।  कब घर पहुँच गया पता नहीं चला। आज दरवाजा खुला हुआ था।  घर के अंदर मद्धिम उजाला भी आ रहा था।  और हवा में एक अजीब सी महक भी।  दरवाजा खुला हुआ समझ में आता है मालिन माँ अंदर हैं इसलिए उजाला भी है अंदर लेकिन ये खुशबू !!!!!!

कुछ न कुछ तो जरूर होना है।

कैसे हो आनंद ! हवा में तैरती हुई एक सुरीली सी आवाज़।

आनंद ने सर उठा के देखा तो मूर्तिवत देखता ही रह गया।  
 



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