शाम धीरे धीरे अपना साया बढ़ाती जा रही थी। मंदिर में आने जाने वाले भी काम हो रहे थे। कभी कभार कोई आकर मंदिर का घंटा बजाता जिसकी आवाज़ दूर दूर तक सुनाई पड़ रही थी।
प्रणाम बाबा ....... युवक ने पंडित जी का चरणों को स्पर्श किया।
खुश रह बेटा , पंडित जी इतना ही कह पाए। कहाँ था इतने साल ? कोई खोज खबर नहीं। घर में दिया बाती रोज़ होती रही। मालिन कहीं गयी नहीं। लेकिन तेरी कोई खबर उसको भी नहीं। कई बार मालिन यहां आई मैंने पूछा भी तेरे बारे में लेकिन उसके पास कोई जवाब नहीं।
बाबा, यायावरी में था। बहुत घूमा, बहुत जगह घूमा। इधर गया उधर गया। नगरी नगरी फिरा मुसाफ़िर। आनंद ने जवाब दिया। आवाज़ में एक अजीब सा निर्मोहीपन।
और ........ पंडित जी का एक सवाल।
और क्या बाबा।
गंगा कैसी है ? पंडित जी का सीधा सा सवाल।
बाबा ये रही चाय सुशीला थाली दो गिलास चाय और तश्तरी में चार बिस्कुट लेकर आई। आ बिटिया बैठ। आनंद ये सुशीला है अंजलि की बेटी। यहीं रहती है मेरे साथ। आनंद ने बड़े प्यार से उसके सर पर हाथ रखा और होंठ पर आशीर्वाद के बोल बुदबुदा के रह गए। चाय ख़तम कर के आनंद ने पंडित जी से चलने की आज्ञा मांगी। अभी तो रहेगा न यहां बेटा ? पंडित जी का स्वाभाविक सवाल। आनंद ने पंडित जी की तरफ देखा , मुस्कराया और स्वीकारोक्ति में सर हिलाया। सुशीला के हाथ में १०० रुपए रखे। और उसको आशीर्वाद देते हुए पंडित जी से विदा ली।
बाबा ये कौन हैं ? अब सुशीला का प्रश्न
बिटिया क्या जवाब दूँ तेरे सवाल का और कहाँ से शुरू करूँ।
एक पुराना मौसम लौटा। ये जो आया था इसका नाम है आनंद और जैसा इसका नाम वैसा ही इसका चरित्र।
लेकिन ......
सजदों के एवज फिरदौस मिले , ये बात मुझे मंज़ूर नहीं,
बेलौस ईबादत करता हूँ , बन्दा हूँ तेरा मजदूर नहीं।
प्रणाम बाबा ....... युवक ने पंडित जी का चरणों को स्पर्श किया।
खुश रह बेटा , पंडित जी इतना ही कह पाए। कहाँ था इतने साल ? कोई खोज खबर नहीं। घर में दिया बाती रोज़ होती रही। मालिन कहीं गयी नहीं। लेकिन तेरी कोई खबर उसको भी नहीं। कई बार मालिन यहां आई मैंने पूछा भी तेरे बारे में लेकिन उसके पास कोई जवाब नहीं।
बाबा, यायावरी में था। बहुत घूमा, बहुत जगह घूमा। इधर गया उधर गया। नगरी नगरी फिरा मुसाफ़िर। आनंद ने जवाब दिया। आवाज़ में एक अजीब सा निर्मोहीपन।
और ........ पंडित जी का एक सवाल।
और क्या बाबा।
गंगा कैसी है ? पंडित जी का सीधा सा सवाल।
बाबा ये रही चाय सुशीला थाली दो गिलास चाय और तश्तरी में चार बिस्कुट लेकर आई। आ बिटिया बैठ। आनंद ये सुशीला है अंजलि की बेटी। यहीं रहती है मेरे साथ। आनंद ने बड़े प्यार से उसके सर पर हाथ रखा और होंठ पर आशीर्वाद के बोल बुदबुदा के रह गए। चाय ख़तम कर के आनंद ने पंडित जी से चलने की आज्ञा मांगी। अभी तो रहेगा न यहां बेटा ? पंडित जी का स्वाभाविक सवाल। आनंद ने पंडित जी की तरफ देखा , मुस्कराया और स्वीकारोक्ति में सर हिलाया। सुशीला के हाथ में १०० रुपए रखे। और उसको आशीर्वाद देते हुए पंडित जी से विदा ली।
बाबा ये कौन हैं ? अब सुशीला का प्रश्न
बिटिया क्या जवाब दूँ तेरे सवाल का और कहाँ से शुरू करूँ।
एक पुराना मौसम लौटा। ये जो आया था इसका नाम है आनंद और जैसा इसका नाम वैसा ही इसका चरित्र।
लेकिन ......
सजदों के एवज फिरदौस मिले , ये बात मुझे मंज़ूर नहीं,
बेलौस ईबादत करता हूँ , बन्दा हूँ तेरा मजदूर नहीं।
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