कुछ सवाल ऐसे होते हैं जिनका जवाब नहीं होता, मानता हूँ। कुछ सवाल ऐसे भी या यूँ कहिये कुछ सवाल ऐसे होते हैं जिनका जवाब देना नहीं चाहते इसलिए उन सवालों से दूर भागते हैं। वो सवाल बहुत कठिन हों ऐसा जरुरी नहीं है लेकिन कम्बख़्त ऐसे सवाल उन हक़ीक़तों का सामना करवाते हैं , जिनको हम avoid करना चाहते हैं।
ज्योति को छोड़कर आनंद घर की तरफ लौट पड़ा। कभी - कभी इंसान बहुत कुछ सोचने को होते हुए भी कुछ भी नहीं सोचना चाहता है। आनंद की हालत भी कुछ ऐसी ही थी। रास्ते मैं भुवन की दूकान से एक पैकेट सिगरेट का लिया। चलो घर चलें। घर आया , कपडे बदले और लेटते ही नींद आ गयी। शायद थकान बहुत थी। और होना लाज़मी भी थी।
आनंद उठ बेटा , ले चाय रखी है। मालिन माँ की आवाज़।
चाय ???
हाँ चाय ही बोला मैंने।
कितने बज हैं ? आनंद का स्वयं से प्रश्न। ८:३० बज गए। आज तो काफी देर हो गयी। उठा नित्यकर्म से निवृत होकर , आराम कुर्सी पे बैठ चाय की चुस्की ली। छप्पर का बरामदा आज भी आनंद का पसंदीदा स्थान है। लगता है रात काफी बारिश हुई थी. ज़मीन गीली थी। घास पर बारिश की बूंदें अभी भी चमक रहीं थीं। लेकिन साहब चीड़ के पेड़ों से आती हुई , महकती हुई हवा का कोई जवाब आज तक नहीं है। बरामदे में रखे हुए गमले में पानी से बचाव करती हुई गिलहरी कैसे टुकुर - टुकुर देख रही है। सिटोल का जोड़ा , गौरैया सबके लिए छप्पर का बरामदा पनाहगाह बन जाता है , बारिश में और जाड़े में।
आनंद बाबू घर में रखे हैं क्या ?
ये कौन मुआ आन पड़ा सवेरे सवेरे। मालिन की मालिन वाली भाषा। मालूम है कौन है। वही मरा सुंदर आया है।कोई आराम न करने देना आनंद को।
मालिन माँ राम - राम ! अभी तक हो ? मेरा मतलब कैसी हो ? सुंदर ने आग में घी डालने का काम किया।
हाँ हूँ और अच्छी हूँ।
जनाब कहाँ हैं ?
कहाँ मतलब क्या , बरामदे में है।
अच्छा - अच्छा ज्यादा गर्म न हो इसके बदले एक कप गर्म गर्म चाय मिल जाए , तुम्हारे हाथ की , तो जिंदगी बन जाए।
जा बैठ लाती हूँ।
और अदरक वाली हो तो अच्छा है।
मालिन ने लगभा दौड़ा ही लिया था सुंदर को। खुद जाता है कि ले जाया जाएगा।
आनंद बरामदे में बैठा ये morning show देख रहा था।
आओ सुंदर ! आनंद ने सुंदर को गले से लगा लिया।
साले तू ज़िंदा है !! सुंदर ने आनंद के गले लगते हुए कहा.
ओह, सूंदर का परिचय तो दिया ही नहीं। जी सूंदर का असली नाम है अविनाश श्रीवास्तव। कायस्थ है तो रंग भी कायस्थों वाला है। यानी सांवला। और पान के ऐसे शौकीन की होंठ के किनारे लाल रहते हैं। इसलिए आनंद ने उसका नाम रखा है सुंदर लाल "कटीला " .
ज्योति को छोड़कर आनंद घर की तरफ लौट पड़ा। कभी - कभी इंसान बहुत कुछ सोचने को होते हुए भी कुछ भी नहीं सोचना चाहता है। आनंद की हालत भी कुछ ऐसी ही थी। रास्ते मैं भुवन की दूकान से एक पैकेट सिगरेट का लिया। चलो घर चलें। घर आया , कपडे बदले और लेटते ही नींद आ गयी। शायद थकान बहुत थी। और होना लाज़मी भी थी।
आनंद उठ बेटा , ले चाय रखी है। मालिन माँ की आवाज़।
चाय ???
हाँ चाय ही बोला मैंने।
कितने बज हैं ? आनंद का स्वयं से प्रश्न। ८:३० बज गए। आज तो काफी देर हो गयी। उठा नित्यकर्म से निवृत होकर , आराम कुर्सी पे बैठ चाय की चुस्की ली। छप्पर का बरामदा आज भी आनंद का पसंदीदा स्थान है। लगता है रात काफी बारिश हुई थी. ज़मीन गीली थी। घास पर बारिश की बूंदें अभी भी चमक रहीं थीं। लेकिन साहब चीड़ के पेड़ों से आती हुई , महकती हुई हवा का कोई जवाब आज तक नहीं है। बरामदे में रखे हुए गमले में पानी से बचाव करती हुई गिलहरी कैसे टुकुर - टुकुर देख रही है। सिटोल का जोड़ा , गौरैया सबके लिए छप्पर का बरामदा पनाहगाह बन जाता है , बारिश में और जाड़े में।
आनंद बाबू घर में रखे हैं क्या ?
ये कौन मुआ आन पड़ा सवेरे सवेरे। मालिन की मालिन वाली भाषा। मालूम है कौन है। वही मरा सुंदर आया है।कोई आराम न करने देना आनंद को।
मालिन माँ राम - राम ! अभी तक हो ? मेरा मतलब कैसी हो ? सुंदर ने आग में घी डालने का काम किया।
हाँ हूँ और अच्छी हूँ।
जनाब कहाँ हैं ?
कहाँ मतलब क्या , बरामदे में है।
अच्छा - अच्छा ज्यादा गर्म न हो इसके बदले एक कप गर्म गर्म चाय मिल जाए , तुम्हारे हाथ की , तो जिंदगी बन जाए।
जा बैठ लाती हूँ।
और अदरक वाली हो तो अच्छा है।
मालिन ने लगभा दौड़ा ही लिया था सुंदर को। खुद जाता है कि ले जाया जाएगा।
आनंद बरामदे में बैठा ये morning show देख रहा था।
आओ सुंदर ! आनंद ने सुंदर को गले से लगा लिया।
साले तू ज़िंदा है !! सुंदर ने आनंद के गले लगते हुए कहा.
ओह, सूंदर का परिचय तो दिया ही नहीं। जी सूंदर का असली नाम है अविनाश श्रीवास्तव। कायस्थ है तो रंग भी कायस्थों वाला है। यानी सांवला। और पान के ऐसे शौकीन की होंठ के किनारे लाल रहते हैं। इसलिए आनंद ने उसका नाम रखा है सुंदर लाल "कटीला " .
No comments:
Post a Comment