चलो खाना खा लो दोनों , मालिन माँ का आदेशात्मक आग्रह।
खाना !!! अरे बाप रे ९:३० बज गए। पता नहीं समय के पर क्यों लग जाते हैं जब कोई अपनों के साथ होता है।
महीने वस्ल के घड़ियों की सूरत उड़ते जातें हैं
मगर घड़ियाँ जुदाई की गुजरतीं हैं महीनों में।
चलिए खाना खा लिया जाए , आनंद ने ज्योति से कहा।
अरे मालिन माँ , यहीं खाना नहीं खा सकते हैं क्या ? क्यों गरीब को उठने की ज़हमत देती हो।
बैठा रह , बैठा रह , देती हूँ। उफ्फ्फ , कैसा आदमी है ये। कम्बख्त को कुछ कह भी नहीं सकती।
जैसी उम्मीद थी , ना , ना , उम्मीद कहना गलत होगा। खाने की उम्मीद नहीं थी लेकिन जब मालिन माँ बहुत प्यार से बनातीं हैं तो हरी मटर का गरम गरम पुलाव ही बनातीं हैं , ये उनकी ख़ास डिश है। और साथ में नींबू प्याज, हरी मिर्च और अदरख के टुकड़े। जन्नत इसके आगे खत्म।
खाना खत्म होते होते आनंद ने ज्योति से पूछा कि चाची को पता है न कि तुम कहाँ हो ?
हाँ , हाँ पता है , मैं तुम्हारी तरह नहीं हूँ कि ....... चलो जाने दो।
ठीक है, ठीक है......... चलो तुमको घर छोड़ दूँ।
शाल लेकर आनंद और ज्योति बाहर आये , तो हवा के पहले झोंके ने हल्की हल्की बूंदो से स्वागत किया।
लो बारिश भी होने को है। रुको मैं छाता लेकर आता हूँ।
तुम रुको आनंद , मैं लाती हूँ।
ज्योति छाता लेकर आई। लकड़ी की मूठ वाला वाला छाता। आनंद ने छाता खोला और दोनों चलने लगे। ख़ामोशी दोनों के दरमियान। कभी कभी कुछ पल ऐसे होते हैं जिनको सिर्फ महसूस करना ज़्यादा अच्छा लगता है। कोई शब्द नहीं, कोई बातचीत नहीं। ये वो पल था जहाँ पर कई पिछली यादें दोनों के मनस पटल पर चल रहीं थीं।
आनंद......
हम्म्म। .....
अब रुकोगे न !
_____
कोई जवाब नहीं दे रहे हो इसका अर्थ ?
क्या जवाब दूँ , ज्योति !
वहशी को सुकूं से क्या मतलब , जोगी का नगर में ठिकाना क्या।
ये तो कोई बात नहीं हुई, आनंद।
ज्योति , मुझे बाँध के मत रखो। मैं बन्धनों से परे जाना चाहता हूँ। मैं सबके बीच भी अकेले रहता हूँ। तुमसे एक बात कहूं ज्योति या एक बात बताऊँ।
बोलो न।
मेरे और तुम्हारे बीच एक सम्बन्ध है। जिसका आधार प्रेम है और प्रेम सारे सम्बन्धो का आधार होता है या होना ही चाहिए। लेकिन मैंने पहली बार प्रेम और इश्क़ में फर्क जाना है।
क्या बात है आनंद , तो साहब को किसी से इश्क़ हुआ है , चलो हुआ तो सही।
तुमको बुरा नहीं लगा ?
बुरा क्यों कर लगेगा आनंद ? ये मैं बहुत अच्छी तरह से समझती हूँ कि हमारे बीच प्रेम का सम्बन्ध है लेकिन मुहब्बत या इश्क़ नहीं है। हमारी आपस की अंडरस्टैंडिंग बहुत मज़बूत है और परिपक़्व है। तुम मेरे सबसे अच्छे, सबसे पहले और प्रिय मित्र हो, मित्र नहीं सखा और ऐसे ही तुम मुझको देखते हो , ये मैं जानती हूँ, आनंद और आज से नहीं कई सालों से। तुम्हारे साथ मैं अपने आप को सुरक्षित महसूस करती हूँ। क्या मित्रता का आधार प्रेम नहीं होना चाहिए ? मैं जानती हूँ आनंद तुम्हारे अंदर बंध के रहने का गुण नहीं है। तुम्हारी आत्मा स्वछंद और मुक्त है। और तुमको इसी गुण के साथ स्वीकार किया है। मुझे बहुत अच्छा लगता है जब गाँव वाले, स्कूल वाले , मंदिर के पंडित जी, सब तुम्हारी तारीफ़ करते हैं , मुझे गर्व होता है।
आनंद अवाक् सा आज ज्योति को सुन रहा था , देख रहा था। लो तुम्हारा घर आ गया , आनंद ने बात काटते हुए कहा।
आओ अंदर आओ, माँ से मिल लो , रामू काका से भी मिल लो।
आनंद ने कुछ देर सोचा और बोला - कल आऊं ज्योति ? रात काफी हो गयी है और बरसात भी न जाने कब जोर पकड़ ले। कल तो स्कूल होगा न ?
हाँ , और तुम कल स्कूल आ रहे हो , समझे।
ठीक है तो कल रात का खाना तुम्हारे यहां।
ठीक, अच्छा अब तुम भी चलो.
राम - राम।
आनंद वापस चल पड़ा। लेकिन एक interesting प्रश्न उसके दिमाग में उठा - क्या प्रेम और इश्क़ में अंतर है ?
बूझो तो।
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