Wednesday, July 24, 2019

एक पुराना मौसम लौटा - ३

कुछ पल ऐसे होते हैं या जिंदगी में ऐसे आते हैं जहाँ पर आदमी की समझ में नहीं आता कि क्या बोले , क्या - क्या बोले, बोले की न बोले और बोले तो क्या बोले। जहां पर अल्फ़ाज़ और ख़्याल में तालमेल नहीं बैठ पाता ऐसी हालत में चुप रह जाना बेहतर होता है।  आँखें जो देखतीं हैं जुबाँ उसको बयाँ नहीं कर पाती।  दिल जो महसूस करता है जुबाँ उसे भी बयान नहीं कर पाती।  शायद यही हालत आनंद की थी जब उसने अपने घर की दहलीज़ पर उसको खड़ा देखा।  नहीं नहीं इंतज़ार करता पाया।  चंद लम्हों में कटा है मुद्दतों  का फ़ासला। सच में कुछ चेहरे ऐसे होते हैं, कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनके पास होने पर वक़्त भी ठहर जाया करता है। 

अरे ज्योति , बस यही निकल पाया मुंह से। 

ले बिटिया आ गया तेरा आनंद।  ज्योति के पीछे से आती हुई मालिन माँ के आवाज़।  सवेरे निकल गया था सामान घर में रख कर अब लौटा है।  गोधूलि के समय लौटा है   पता नहीं दिन में कुछ खाया भी है या नहीं। 

तीनों ने घर के अंदर प्रवेश किया।  तुम दोनों बैठो।  मैं चाय बना के लाती हूँ।  खाने का टेम हो गया है लेकिन साहब को तो चाय चाहिए होगी।  और अब चाय\पियेगा खाना पता नहीं कब खायेगा। कोई सुधरा ही नहीं है।  मालिन बड़बड़ाती हुई चौके में गयीं। 

मालिन ने आनंद की आराम कुर्सी के पास लकड़ी वाली कुर्सी घसीट के रख दी।  जैसे सालों से उन्हें पता हो की आनंद अगर आराम कुर्सी पर बैठता था तो ज्योति लकड़ी वाली कुर्सी वहीँ रख के बैठती थी।   

आनंद ने शाल और झोला खुटी पर टांग दिया।  बैठो ज्योति खड़ी क्यों हो ?  अदब -आदाब में तो नहीं खड़ी हो कि ये बैठें तो मैं बैठूं।  कहते हुए आनंद आरामकुर्सी पर बैठ गया अब आप भी तशरीफ़फ़र्मा हो जाइये।  ज्योति आनंद की तरफ लगातार देख रही थी कुर्सी पर बैठते हुए बोली आनंद तुम बिलकुल नहीं बदले।  बहुत अच्छा लगा ये देख कर , बड़ी खुशी हुई ये देखकर।

"उनको दुनिया कहेगी दीवाना , ऋतु बदलती है जो बदलते नहीं"। आनंद का अपने लहज़े में सटीक जवाब।  लेकिन एक दया करोगी , ज्योति ?

हाय राम कैसी बात करते हैं।  दया कैसी।  बोलिये।

कहाँ थे , कैसे हो , कब आये बस इन सवालों से बात मत शुरू करना।  सवेरे से इनका जवाब देते देते कसम से जुबान का स्वाद कसैला हो गया है।  

बाप रे आने तो डरा ही दिया था।  पता नहीं क्या कहना चाहते हैं , दया करो। 

तो और क्या करूँ ज्योति ? चाची कैसी हैं? अब तो बुढ़ा  गयीं होंगी।  आनंद का अपना लहज़ा। 

माँ ठीक हैं  हाँ बूढ़ा तो गयीं हैं। 

तुमने एक बात गौर करी , ज्योति ?

कौन सी ?

मैंने अभी तक ये नहीं पूछा कि   तुम कैसी हो।

बड़ी मेहरबानी की आपने।

नहीं नहीं मेहरबानी कैसी।  हाथ कंगन को आरसी क्या।  सामने देख रहा हूँ और देखता ही जा रहा हूँ और अब समझ में आ रहा है कि पुराने चावल और पुरानी शराब क्यों बेहरतीन मानी जातीं हैं। 

क्या मतलब मैं चावल दिखती हूँ आपको ?

तुम्हारे सोचने का स्तर अभी वही है।  दाल चावल तक। 

उफ्फ्फ तो मैं शराब दिखती हूँ आपको।

लो चाय पियो , मालिन माँ की एंट्री। 

लो देख लो मालिन माँ कौन सा बदल गयीं।  अभी भी गलत समय पर एंट्री करने की आदत बरक़रार  है। 

मालिन माँ , आनंद को उनको सम्बोधन।

क्या  हुआ ?

आप अभी भी यही चाहती हो न कि मेरे और ज्योति के बीच कोई नोक झोंक न हो।

हाँ क्यों ?

नहीं दो गिलास चाय और साथ में सिर्फ तो मठरियां  एक एक खा लो।  अगर तीन रख देतीं तो शायद तीसरी कौन खाये इस के ऊपर हमारी नोंक झोंक हो जाती।

हे राम , इसके दिमाग में तो बातें पता नहीं कहाँ से आतीं हैं।  और मालिन माँ हसँते हुए चली गयीं।  आज घर में शोर है।  हँसी का शोर।  काफी दिनों बाद सुना और अच्छा लगा। 

स्कूल कैसा चल रहा है ज्योति ?

हाँ बताना भूल गया ज्योति आनंद के स्कूल में अब तो vice principal है। 

अच्छा चल रहा है। आसपास के गाँव से भी काफी बच्चे आने लगे हैं अब तो। 

ये तो अच्छी बात है।  लेकिन उससे भी अच्छी एक बात और है।

वो क्या है भला ?

मेरी गैरहाज़िरी में तुम यहाँ आती रहीं।

अच्छा ये आपसे किसने कह दिया ?

बाहर खिले हुए गुलाब बता रहें हैं।  झूमते हुए गुलदाउदी के फूल बता रहें हैं। डहेलिया का झुण्ड बता रहा है। 

ओह। .......  
  

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