या दिशाहीन
Monday, September 16, 2019
Wednesday, September 4, 2019
गंगा
गंगा , हाँ गंगा ही तो हो तुम।
आप? आनंद हैं। न
जी हाँ। आपने कैसे पहचाना।
आप वो पहाड़ी वाले शिव मंदिर में रहतें हैं। सारा गाँव आपका ही चर्चा कर रहा है आजकल।
आप मुझे डरा रहीं हैं।
गंगा खिलखिला कर हँस पड़ी। अरे नहीं डरिये नहीं। मैं कोई डराने वाई चीज़ नहीं हूँ न ही डराने वाली कोई बात कह रही हूँ। लेकिन आप ने मुझे कैसे पहचाना ? सीधे नाम से पुकारा।
बच्चों से आपके बारे में सुना था।
कौन से बच्चे ? ओह हाँ कुछ बच्चों को आप मंदिर में पढ़ाते हैं , मैंने सुना।
जी हाँ।
क्या - क्या बताया बच्चों ने ? गंगा का सवाल।
अगर आप बुरा न माने तो हम कहीं बैठ कर बात करें। आनंद का आग्रह।
अरे हाँ। मैं तो भूल ही गयी। आइये मेरे घर चलते हैं। ईजा , बाबू जी भी आपसे मिल कर ख़ुश होंगे। यहीं पास में ही है मेरा घर।
चलिए।
दोनों चल पड़े। बच्चे कह रहे थे कि यहाँ स्कूल में पढ़ाती हैं।
जी।
कितने बच्चे हैं स्कूल में ? आनंद का सवाल।
होंगे करीब ४००।
तब तो अच्छा स्कूल होगा।
हाँ अच्छा है। यहाँ की पंचायत ही रन करती है स्कूल को। पास के गाँव से भी बच्चे आते हैं और अच्छी बात तो यह है की स्कूल में लड़कियाँ ज़्यादा हैं।
अरे वाह , यह तो वाकई अच्छी बात है।
आप? आनंद हैं। न
जी हाँ। आपने कैसे पहचाना।
आप वो पहाड़ी वाले शिव मंदिर में रहतें हैं। सारा गाँव आपका ही चर्चा कर रहा है आजकल।
आप मुझे डरा रहीं हैं।
गंगा खिलखिला कर हँस पड़ी। अरे नहीं डरिये नहीं। मैं कोई डराने वाई चीज़ नहीं हूँ न ही डराने वाली कोई बात कह रही हूँ। लेकिन आप ने मुझे कैसे पहचाना ? सीधे नाम से पुकारा।
बच्चों से आपके बारे में सुना था।
कौन से बच्चे ? ओह हाँ कुछ बच्चों को आप मंदिर में पढ़ाते हैं , मैंने सुना।
जी हाँ।
क्या - क्या बताया बच्चों ने ? गंगा का सवाल।
अगर आप बुरा न माने तो हम कहीं बैठ कर बात करें। आनंद का आग्रह।
अरे हाँ। मैं तो भूल ही गयी। आइये मेरे घर चलते हैं। ईजा , बाबू जी भी आपसे मिल कर ख़ुश होंगे। यहीं पास में ही है मेरा घर।
चलिए।
दोनों चल पड़े। बच्चे कह रहे थे कि यहाँ स्कूल में पढ़ाती हैं।
जी।
कितने बच्चे हैं स्कूल में ? आनंद का सवाल।
होंगे करीब ४००।
तब तो अच्छा स्कूल होगा।
हाँ अच्छा है। यहाँ की पंचायत ही रन करती है स्कूल को। पास के गाँव से भी बच्चे आते हैं और अच्छी बात तो यह है की स्कूल में लड़कियाँ ज़्यादा हैं।
अरे वाह , यह तो वाकई अच्छी बात है।
Friday, August 23, 2019
एक पुराना मौसम लौटा - 8
संन्यास !! क्यों तुमको ऐसा क्यों लगा ?
नहीं तुम्हारे जो लक्षण दिख रहे हैं वो तो उसी तरफ इशारा कर रहे हैं।
अच्छा साहब! ऐसे कौन से लक्षण देख लिए आपने मेरे अंदर ? ये पहनावा ? भाई अगर धोती कुर्ता पहन कर संन्यास लिया जाता है तब तो समझ लो आधे से ज़्यादा आदमी संन्यासी हो गया।
नहीं आनंद , मैं पहनावे की बात नहीं कर रहा हूँ। मैं तुम्हारे विचारों और तुम्हारे मनोविज्ञान को समझने की कोशिश कर रहा हूँ और ऐसा नहीं की इस तरह की बात तुम पहली बार कर रहे हो। तुम्हारे अंदर दर्शन भी है और पहले से है लेकिन इस बार जो शिद्दत देख रहा हूँ , उससे ऐसा लगा और भाई हाँ पहनावे का भी कुछ योगदान तो है ही।
सुंदर , संन्यास या विरक्ति ये तो नहीं जानता। लेकिन हाँ एक उचाटपन सा जरूर है। लेकिन जिम्मेदारियों से भाग कर नहीं। एक बड़ा अजीब सा परिवर्तन देख रहा हूँ अपने अंदर। लेकिन अच्छा सा परिवर्तन। मैं सब में हूँ लेकिन अलग भी हूँ। जब जिंदगी में हर चीज़ एक ड्यूटी की तरह ले लो न सुंदर , शायद तब ऐसा होता होगा। यहाँ तक की दुनिया में सबको प्यार करना , मुहब्बत बांटना , ये भी तो इंसान होने के नाते एक ड्यूटी ही तो है और जो आदमी मुहब्बत में डूबा सो गया काम से। बस भाई मेरे देखना यह होता है की किसकी मुहब्बत में डूबे ? इश्क़े -मजाज़ी या इश्क़े - हक़ीक़ी ? भाई दुनिया में इतना ढकोसला है , इतने hypocrates भरे हुए हैं कि भगवान् से प्रेम करो इसके ऊपर तो भाषण देते न थकते हैं ये लोग लेकिन उसी अल्लाह के बनाये हुए इंसान से नफ़रत।और अगर इंसान इंसान से मुहब्बत कर ले तो हाहाकार।
कृष्ण से मुहब्बत और कृष्णा से नफरत ? सुंदर की दार्शनिक जैसी टिप्पणी।
आनंद ने सुंदर की तरफ देखा और बोला - वाह सुंदर लेकिन ये सत्य है , यही हक़ीक़त है।
नहीं तुम्हारे जो लक्षण दिख रहे हैं वो तो उसी तरफ इशारा कर रहे हैं।
अच्छा साहब! ऐसे कौन से लक्षण देख लिए आपने मेरे अंदर ? ये पहनावा ? भाई अगर धोती कुर्ता पहन कर संन्यास लिया जाता है तब तो समझ लो आधे से ज़्यादा आदमी संन्यासी हो गया।
नहीं आनंद , मैं पहनावे की बात नहीं कर रहा हूँ। मैं तुम्हारे विचारों और तुम्हारे मनोविज्ञान को समझने की कोशिश कर रहा हूँ और ऐसा नहीं की इस तरह की बात तुम पहली बार कर रहे हो। तुम्हारे अंदर दर्शन भी है और पहले से है लेकिन इस बार जो शिद्दत देख रहा हूँ , उससे ऐसा लगा और भाई हाँ पहनावे का भी कुछ योगदान तो है ही।
सुंदर , संन्यास या विरक्ति ये तो नहीं जानता। लेकिन हाँ एक उचाटपन सा जरूर है। लेकिन जिम्मेदारियों से भाग कर नहीं। एक बड़ा अजीब सा परिवर्तन देख रहा हूँ अपने अंदर। लेकिन अच्छा सा परिवर्तन। मैं सब में हूँ लेकिन अलग भी हूँ। जब जिंदगी में हर चीज़ एक ड्यूटी की तरह ले लो न सुंदर , शायद तब ऐसा होता होगा। यहाँ तक की दुनिया में सबको प्यार करना , मुहब्बत बांटना , ये भी तो इंसान होने के नाते एक ड्यूटी ही तो है और जो आदमी मुहब्बत में डूबा सो गया काम से। बस भाई मेरे देखना यह होता है की किसकी मुहब्बत में डूबे ? इश्क़े -मजाज़ी या इश्क़े - हक़ीक़ी ? भाई दुनिया में इतना ढकोसला है , इतने hypocrates भरे हुए हैं कि भगवान् से प्रेम करो इसके ऊपर तो भाषण देते न थकते हैं ये लोग लेकिन उसी अल्लाह के बनाये हुए इंसान से नफ़रत।और अगर इंसान इंसान से मुहब्बत कर ले तो हाहाकार।
कृष्ण से मुहब्बत और कृष्णा से नफरत ? सुंदर की दार्शनिक जैसी टिप्पणी।
आनंद ने सुंदर की तरफ देखा और बोला - वाह सुंदर लेकिन ये सत्य है , यही हक़ीक़त है।
Tuesday, July 30, 2019
एक पुराना मौसम लौटा - 7
तो कहाँ थे साहब इतने साल ? सुंदर लाल का सवाल।
आनंद के चेहरे पे अजीब सा भाव।
नहीं बताना चाहते हो तो कोई जबरदस्ती नहीं है। परिस्थिति को परखते हुए सुंदर ने बात खत्म कर दी।
कल से हर आदमी यही जानना चाहता है सुंदर, तुम कोई पहले नहीं हो। ज़रा ठहरो , मैं तैयार होके आता हूँ, रास्ते चलते बाते करेंगे , रास्ता भी कट जाएगा।
लेकिन जाना कहाँ है ?
स्कूल।
ओह हाँ। ठीक है आओ.
सुंदर ने बिना समय गवाए चाय पीना शुरू किया। और मालिन माँ २ प्लेट में पोहा रख गयीं।
आनंद सफ़ेद शफ़्फ़ाक़ धोती कुर्ते में। सुंदर ने उसे देखा और कसम से देखता ही रह गया। तुम्हारे इस नए पहनावे को देखकर इतना तो विश्वास से कह सकता हूँ कि तुम किसी गलत जगह नहीं गए थे। लेकिन बुरा मत मानना इस नए पहनावे को देखकर ये उत्कंठा अवश्य जाग रही है कि तुम थे कहाँ।
आओ नाश्ता कर लें। आनंद ने कहा। भाई भवाली के पास नल - दमयंती ताल का नाम सूना है ?
हाँ , है तो।
वहीँ जंगलों के बीच एक पुराना शिव का मंदिर है। वहीं रहा लगभग ६ महीने।
मंदिर में ?
हाँ।
और खाना पीना ?
आनंद मुस्करा दिया।
इस मुस्कराहट का अर्थ ?
भाई कुछ दिन तो वाकई कंद मूल फल खा कर रहा , फिर आसपास के गाँव वाली कुछ महिलायें जो जंगल में लकड़ी इकठी करने आती थीं , वो मंदिर में बैठकर कुछ आराम करती थीं और जो खाना वो अपने लिए लातीं थीं , उसमें से थोड़ा मुझे भी दे देती थीं।
फिर ?
इस तरह कुछ दिन चला फिर मैं भिक्षा मांगने के लिए गाँव में निकल पड़ा।
क्या कह रहे हो ?
हाँ सुंदर। दाढ़ी और बाल बढ़ ही गए थे। गले में रुद्राक्ष की माला और गेरुवा कपड़े। इसी वेशभूषा पर कोई न कोई खाना दे देता था और कोई चाय पानी।
तो मंदिर में करते क्या थे ?
आनंद ने नाश्ता खत्म किया और उठ खड़ा हुआ , चलो स्कूल चलते हैं। दोनों निकल पड़े स्कूल के रास्ते पर। तुम पूछ रहे थे न सुंदर कि मंदिर मैं क्या करता था। भाई मेरे मंदिर में कोई क्या करता है ?
लेकिन पूजा पाठ तो तुम करते नहीं
ध्यान तो करता हूँ।
हम्म्म्म और खर्चा पानी ? यहां से तो तुम मंगवाते नहीं थे।
सुंदर मंदिर में जो गाँव की औरतें आराम करने के लिए आतीं थी , उनसे मैंने बताया कि मैं बच्चो को पढ़ा सकता हूँ। और भिक्षा के लिए जब गांव जाता था तो ४ -५ बच्चे आ जाते थे , पढ़ने के लिए। उनको पढ़ा कर जो मिल जाता था काफी था। लेकिन सुंदर इन ६ महीनो में जो अनुभव हुए हैं उन्होंने मुझको खुद से जोड़ने में बहुत अहम् रोल अदा किया है। इन ६ महीनों में मैंने अपने आप को अंदर से प्रज्वालित करने की कोशिश की है।
संन्यास का इरादा तो नहीं है ?
आनंद के चेहरे पे अजीब सा भाव।
नहीं बताना चाहते हो तो कोई जबरदस्ती नहीं है। परिस्थिति को परखते हुए सुंदर ने बात खत्म कर दी।
कल से हर आदमी यही जानना चाहता है सुंदर, तुम कोई पहले नहीं हो। ज़रा ठहरो , मैं तैयार होके आता हूँ, रास्ते चलते बाते करेंगे , रास्ता भी कट जाएगा।
लेकिन जाना कहाँ है ?
स्कूल।
ओह हाँ। ठीक है आओ.
सुंदर ने बिना समय गवाए चाय पीना शुरू किया। और मालिन माँ २ प्लेट में पोहा रख गयीं।
आनंद सफ़ेद शफ़्फ़ाक़ धोती कुर्ते में। सुंदर ने उसे देखा और कसम से देखता ही रह गया। तुम्हारे इस नए पहनावे को देखकर इतना तो विश्वास से कह सकता हूँ कि तुम किसी गलत जगह नहीं गए थे। लेकिन बुरा मत मानना इस नए पहनावे को देखकर ये उत्कंठा अवश्य जाग रही है कि तुम थे कहाँ।
आओ नाश्ता कर लें। आनंद ने कहा। भाई भवाली के पास नल - दमयंती ताल का नाम सूना है ?
हाँ , है तो।
वहीँ जंगलों के बीच एक पुराना शिव का मंदिर है। वहीं रहा लगभग ६ महीने।
मंदिर में ?
हाँ।
और खाना पीना ?
आनंद मुस्करा दिया।
इस मुस्कराहट का अर्थ ?
भाई कुछ दिन तो वाकई कंद मूल फल खा कर रहा , फिर आसपास के गाँव वाली कुछ महिलायें जो जंगल में लकड़ी इकठी करने आती थीं , वो मंदिर में बैठकर कुछ आराम करती थीं और जो खाना वो अपने लिए लातीं थीं , उसमें से थोड़ा मुझे भी दे देती थीं।
फिर ?
इस तरह कुछ दिन चला फिर मैं भिक्षा मांगने के लिए गाँव में निकल पड़ा।
क्या कह रहे हो ?
हाँ सुंदर। दाढ़ी और बाल बढ़ ही गए थे। गले में रुद्राक्ष की माला और गेरुवा कपड़े। इसी वेशभूषा पर कोई न कोई खाना दे देता था और कोई चाय पानी।
तो मंदिर में करते क्या थे ?
आनंद ने नाश्ता खत्म किया और उठ खड़ा हुआ , चलो स्कूल चलते हैं। दोनों निकल पड़े स्कूल के रास्ते पर। तुम पूछ रहे थे न सुंदर कि मंदिर मैं क्या करता था। भाई मेरे मंदिर में कोई क्या करता है ?
लेकिन पूजा पाठ तो तुम करते नहीं
ध्यान तो करता हूँ।
हम्म्म्म और खर्चा पानी ? यहां से तो तुम मंगवाते नहीं थे।
सुंदर मंदिर में जो गाँव की औरतें आराम करने के लिए आतीं थी , उनसे मैंने बताया कि मैं बच्चो को पढ़ा सकता हूँ। और भिक्षा के लिए जब गांव जाता था तो ४ -५ बच्चे आ जाते थे , पढ़ने के लिए। उनको पढ़ा कर जो मिल जाता था काफी था। लेकिन सुंदर इन ६ महीनो में जो अनुभव हुए हैं उन्होंने मुझको खुद से जोड़ने में बहुत अहम् रोल अदा किया है। इन ६ महीनों में मैंने अपने आप को अंदर से प्रज्वालित करने की कोशिश की है।
संन्यास का इरादा तो नहीं है ?
Monday, July 29, 2019
एक पुराना मौसम लौटा - 6
कुछ सवाल ऐसे होते हैं जिनका जवाब नहीं होता, मानता हूँ। कुछ सवाल ऐसे भी या यूँ कहिये कुछ सवाल ऐसे होते हैं जिनका जवाब देना नहीं चाहते इसलिए उन सवालों से दूर भागते हैं। वो सवाल बहुत कठिन हों ऐसा जरुरी नहीं है लेकिन कम्बख़्त ऐसे सवाल उन हक़ीक़तों का सामना करवाते हैं , जिनको हम avoid करना चाहते हैं।
ज्योति को छोड़कर आनंद घर की तरफ लौट पड़ा। कभी - कभी इंसान बहुत कुछ सोचने को होते हुए भी कुछ भी नहीं सोचना चाहता है। आनंद की हालत भी कुछ ऐसी ही थी। रास्ते मैं भुवन की दूकान से एक पैकेट सिगरेट का लिया। चलो घर चलें। घर आया , कपडे बदले और लेटते ही नींद आ गयी। शायद थकान बहुत थी। और होना लाज़मी भी थी।
आनंद उठ बेटा , ले चाय रखी है। मालिन माँ की आवाज़।
चाय ???
हाँ चाय ही बोला मैंने।
कितने बज हैं ? आनंद का स्वयं से प्रश्न। ८:३० बज गए। आज तो काफी देर हो गयी। उठा नित्यकर्म से निवृत होकर , आराम कुर्सी पे बैठ चाय की चुस्की ली। छप्पर का बरामदा आज भी आनंद का पसंदीदा स्थान है। लगता है रात काफी बारिश हुई थी. ज़मीन गीली थी। घास पर बारिश की बूंदें अभी भी चमक रहीं थीं। लेकिन साहब चीड़ के पेड़ों से आती हुई , महकती हुई हवा का कोई जवाब आज तक नहीं है। बरामदे में रखे हुए गमले में पानी से बचाव करती हुई गिलहरी कैसे टुकुर - टुकुर देख रही है। सिटोल का जोड़ा , गौरैया सबके लिए छप्पर का बरामदा पनाहगाह बन जाता है , बारिश में और जाड़े में।
आनंद बाबू घर में रखे हैं क्या ?
ये कौन मुआ आन पड़ा सवेरे सवेरे। मालिन की मालिन वाली भाषा। मालूम है कौन है। वही मरा सुंदर आया है।कोई आराम न करने देना आनंद को।
मालिन माँ राम - राम ! अभी तक हो ? मेरा मतलब कैसी हो ? सुंदर ने आग में घी डालने का काम किया।
हाँ हूँ और अच्छी हूँ।
जनाब कहाँ हैं ?
कहाँ मतलब क्या , बरामदे में है।
अच्छा - अच्छा ज्यादा गर्म न हो इसके बदले एक कप गर्म गर्म चाय मिल जाए , तुम्हारे हाथ की , तो जिंदगी बन जाए।
जा बैठ लाती हूँ।
और अदरक वाली हो तो अच्छा है।
मालिन ने लगभा दौड़ा ही लिया था सुंदर को। खुद जाता है कि ले जाया जाएगा।
आनंद बरामदे में बैठा ये morning show देख रहा था।
आओ सुंदर ! आनंद ने सुंदर को गले से लगा लिया।
साले तू ज़िंदा है !! सुंदर ने आनंद के गले लगते हुए कहा.
ओह, सूंदर का परिचय तो दिया ही नहीं। जी सूंदर का असली नाम है अविनाश श्रीवास्तव। कायस्थ है तो रंग भी कायस्थों वाला है। यानी सांवला। और पान के ऐसे शौकीन की होंठ के किनारे लाल रहते हैं। इसलिए आनंद ने उसका नाम रखा है सुंदर लाल "कटीला " .
ज्योति को छोड़कर आनंद घर की तरफ लौट पड़ा। कभी - कभी इंसान बहुत कुछ सोचने को होते हुए भी कुछ भी नहीं सोचना चाहता है। आनंद की हालत भी कुछ ऐसी ही थी। रास्ते मैं भुवन की दूकान से एक पैकेट सिगरेट का लिया। चलो घर चलें। घर आया , कपडे बदले और लेटते ही नींद आ गयी। शायद थकान बहुत थी। और होना लाज़मी भी थी।
आनंद उठ बेटा , ले चाय रखी है। मालिन माँ की आवाज़।
चाय ???
हाँ चाय ही बोला मैंने।
कितने बज हैं ? आनंद का स्वयं से प्रश्न। ८:३० बज गए। आज तो काफी देर हो गयी। उठा नित्यकर्म से निवृत होकर , आराम कुर्सी पे बैठ चाय की चुस्की ली। छप्पर का बरामदा आज भी आनंद का पसंदीदा स्थान है। लगता है रात काफी बारिश हुई थी. ज़मीन गीली थी। घास पर बारिश की बूंदें अभी भी चमक रहीं थीं। लेकिन साहब चीड़ के पेड़ों से आती हुई , महकती हुई हवा का कोई जवाब आज तक नहीं है। बरामदे में रखे हुए गमले में पानी से बचाव करती हुई गिलहरी कैसे टुकुर - टुकुर देख रही है। सिटोल का जोड़ा , गौरैया सबके लिए छप्पर का बरामदा पनाहगाह बन जाता है , बारिश में और जाड़े में।
आनंद बाबू घर में रखे हैं क्या ?
ये कौन मुआ आन पड़ा सवेरे सवेरे। मालिन की मालिन वाली भाषा। मालूम है कौन है। वही मरा सुंदर आया है।कोई आराम न करने देना आनंद को।
मालिन माँ राम - राम ! अभी तक हो ? मेरा मतलब कैसी हो ? सुंदर ने आग में घी डालने का काम किया।
हाँ हूँ और अच्छी हूँ।
जनाब कहाँ हैं ?
कहाँ मतलब क्या , बरामदे में है।
अच्छा - अच्छा ज्यादा गर्म न हो इसके बदले एक कप गर्म गर्म चाय मिल जाए , तुम्हारे हाथ की , तो जिंदगी बन जाए।
जा बैठ लाती हूँ।
और अदरक वाली हो तो अच्छा है।
मालिन ने लगभा दौड़ा ही लिया था सुंदर को। खुद जाता है कि ले जाया जाएगा।
आनंद बरामदे में बैठा ये morning show देख रहा था।
आओ सुंदर ! आनंद ने सुंदर को गले से लगा लिया।
साले तू ज़िंदा है !! सुंदर ने आनंद के गले लगते हुए कहा.
ओह, सूंदर का परिचय तो दिया ही नहीं। जी सूंदर का असली नाम है अविनाश श्रीवास्तव। कायस्थ है तो रंग भी कायस्थों वाला है। यानी सांवला। और पान के ऐसे शौकीन की होंठ के किनारे लाल रहते हैं। इसलिए आनंद ने उसका नाम रखा है सुंदर लाल "कटीला " .
Friday, July 26, 2019
एक पुराना मौसम लौटा - 5
चलो खाना खा लो दोनों , मालिन माँ का आदेशात्मक आग्रह।
खाना !!! अरे बाप रे ९:३० बज गए। पता नहीं समय के पर क्यों लग जाते हैं जब कोई अपनों के साथ होता है।
महीने वस्ल के घड़ियों की सूरत उड़ते जातें हैं
मगर घड़ियाँ जुदाई की गुजरतीं हैं महीनों में।
चलिए खाना खा लिया जाए , आनंद ने ज्योति से कहा।
अरे मालिन माँ , यहीं खाना नहीं खा सकते हैं क्या ? क्यों गरीब को उठने की ज़हमत देती हो।
बैठा रह , बैठा रह , देती हूँ। उफ्फ्फ , कैसा आदमी है ये। कम्बख्त को कुछ कह भी नहीं सकती।
जैसी उम्मीद थी , ना , ना , उम्मीद कहना गलत होगा। खाने की उम्मीद नहीं थी लेकिन जब मालिन माँ बहुत प्यार से बनातीं हैं तो हरी मटर का गरम गरम पुलाव ही बनातीं हैं , ये उनकी ख़ास डिश है। और साथ में नींबू प्याज, हरी मिर्च और अदरख के टुकड़े। जन्नत इसके आगे खत्म।
खाना खत्म होते होते आनंद ने ज्योति से पूछा कि चाची को पता है न कि तुम कहाँ हो ?
हाँ , हाँ पता है , मैं तुम्हारी तरह नहीं हूँ कि ....... चलो जाने दो।
ठीक है, ठीक है......... चलो तुमको घर छोड़ दूँ।
शाल लेकर आनंद और ज्योति बाहर आये , तो हवा के पहले झोंके ने हल्की हल्की बूंदो से स्वागत किया।
लो बारिश भी होने को है। रुको मैं छाता लेकर आता हूँ।
तुम रुको आनंद , मैं लाती हूँ।
ज्योति छाता लेकर आई। लकड़ी की मूठ वाला वाला छाता। आनंद ने छाता खोला और दोनों चलने लगे। ख़ामोशी दोनों के दरमियान। कभी कभी कुछ पल ऐसे होते हैं जिनको सिर्फ महसूस करना ज़्यादा अच्छा लगता है। कोई शब्द नहीं, कोई बातचीत नहीं। ये वो पल था जहाँ पर कई पिछली यादें दोनों के मनस पटल पर चल रहीं थीं।
आनंद......
हम्म्म। .....
अब रुकोगे न !
_____
कोई जवाब नहीं दे रहे हो इसका अर्थ ?
क्या जवाब दूँ , ज्योति !
वहशी को सुकूं से क्या मतलब , जोगी का नगर में ठिकाना क्या।
ये तो कोई बात नहीं हुई, आनंद।
ज्योति , मुझे बाँध के मत रखो। मैं बन्धनों से परे जाना चाहता हूँ। मैं सबके बीच भी अकेले रहता हूँ। तुमसे एक बात कहूं ज्योति या एक बात बताऊँ।
बोलो न।
मेरे और तुम्हारे बीच एक सम्बन्ध है। जिसका आधार प्रेम है और प्रेम सारे सम्बन्धो का आधार होता है या होना ही चाहिए। लेकिन मैंने पहली बार प्रेम और इश्क़ में फर्क जाना है।
क्या बात है आनंद , तो साहब को किसी से इश्क़ हुआ है , चलो हुआ तो सही।
तुमको बुरा नहीं लगा ?
बुरा क्यों कर लगेगा आनंद ? ये मैं बहुत अच्छी तरह से समझती हूँ कि हमारे बीच प्रेम का सम्बन्ध है लेकिन मुहब्बत या इश्क़ नहीं है। हमारी आपस की अंडरस्टैंडिंग बहुत मज़बूत है और परिपक़्व है। तुम मेरे सबसे अच्छे, सबसे पहले और प्रिय मित्र हो, मित्र नहीं सखा और ऐसे ही तुम मुझको देखते हो , ये मैं जानती हूँ, आनंद और आज से नहीं कई सालों से। तुम्हारे साथ मैं अपने आप को सुरक्षित महसूस करती हूँ। क्या मित्रता का आधार प्रेम नहीं होना चाहिए ? मैं जानती हूँ आनंद तुम्हारे अंदर बंध के रहने का गुण नहीं है। तुम्हारी आत्मा स्वछंद और मुक्त है। और तुमको इसी गुण के साथ स्वीकार किया है। मुझे बहुत अच्छा लगता है जब गाँव वाले, स्कूल वाले , मंदिर के पंडित जी, सब तुम्हारी तारीफ़ करते हैं , मुझे गर्व होता है।
आनंद अवाक् सा आज ज्योति को सुन रहा था , देख रहा था। लो तुम्हारा घर आ गया , आनंद ने बात काटते हुए कहा।
आओ अंदर आओ, माँ से मिल लो , रामू काका से भी मिल लो।
आनंद ने कुछ देर सोचा और बोला - कल आऊं ज्योति ? रात काफी हो गयी है और बरसात भी न जाने कब जोर पकड़ ले। कल तो स्कूल होगा न ?
हाँ , और तुम कल स्कूल आ रहे हो , समझे।
ठीक है तो कल रात का खाना तुम्हारे यहां।
ठीक, अच्छा अब तुम भी चलो.
राम - राम।
आनंद वापस चल पड़ा। लेकिन एक interesting प्रश्न उसके दिमाग में उठा - क्या प्रेम और इश्क़ में अंतर है ?
बूझो तो।
एक पुराना मौसम लौटा - 4
अब तुमने मना किया कि वो तीन सवाल न पूछे जाएँ तो नहीं पूछतीं हूँ। लेकिन ये तो जान सकती हूँ कैसी रही यायावरी ? क्योंकि तुम्हारा स्वभाव एक जगह टिक के रहने का तो है नहीं , इसलिए ये सवाल तो लाज़मी है।
बिलकुल लाज़मी है। लेकिन इसका जवाब क्या दूँ। किसी से हम मिले नही किसी से दिल मिला नहीं। सिगरेट का एक लंबा कश ले कर आनंद का जवाब। लेकिन एक बात बताऊँ ज्योति, इस घुम्मकड़ स्वभाव ने बहुत दुनियाबी बना दिया। समझ में तो आया कि दुनिया में रहना है दिल नहीं दिमाग का भी इस्तेमाल करना चाहिए और ज़्यादा करना चाहिए।
चलो देर से ही सही तुम्हारी समझ में ये तो आ गया। ज्योति ने एक संतोष की सांस ले कर कहा।
लेकिन मोहतरमा एक बात और जान लीजिये लगे हांथो कि जीत कह लो या संतोष, वो उन्हीं को होता है जो दिल की सुनते हैं। हाँ उनको सफर बहुत करना पड़ता है। लेकिन शायद ये भी नियति का निर्धारण होता है कि कौन दिमागी होगा और कौन दिल वाला। दिमाग वालों के पास पद , पैसा , गाडी , बँगला होता है।
और दिल वालों के पास। ...... ज्योति का प्रश्न
दिल वालों के पास......
गम मुझे हसरत मुझे वहशत मुझे सौदा मुझे
एक दिल दे कर ख़ुदा ने दे दिया क्या क्या मुझे।
हम्म्म्म। ........
ये गाने और ढोलक की थापों की आवाज़ कहाँ से आ रही है, आनंद ने दरवाजे के ओर देखते हुए पूछा।
अरे वो जनार्दन के घर में जलसा है। उसकी बेटी का रोका है , लड़के वाले आये हैं। मुझे भी जाना है , तुम चलोगे ? ज्योति का आनंद से अनअपेक्षित सवाल। आनंद ने ज्योति की तरफ ऐसे देखा जैसे "क्या कह रही हो तुम" .
नहीं।
वो तो मुझे मालूम है।
अरे जब मैं invited नहीं हूँ तो कैसे जाऊं। और रोका है , शादी होती तो छुपते छुपाते घुस जाता और खाना खा के चला आता।
अच्छा जी। जैसे वो आपको आने देते इतनी आसानी से। देवकी की १० वी में 2nd पोजीशन आने में किसका हाथ था , किसकी मेहनत थी , वो जब उसको पता चला , तो जमीन में गड़ के रह गया। घर आया था , मां से कह रहा था कि आनंद बाबू ने बिटिया को अव्वल नंबर लाने के लिए अपने कर दिए और मैं सरे पंचायत उनका अपमान कर आया।
Really !! लेकिन देवकी के रिजल्ट के वजह से ही दूर दराज गाँवों के बच्चे स्कूल आने लगे।
हमारे जुनु का नतीजा जरूर निकलेगा
इसी स्याह समुन्दर से नूर निकलेगा।
बिलकुल लाज़मी है। लेकिन इसका जवाब क्या दूँ। किसी से हम मिले नही किसी से दिल मिला नहीं। सिगरेट का एक लंबा कश ले कर आनंद का जवाब। लेकिन एक बात बताऊँ ज्योति, इस घुम्मकड़ स्वभाव ने बहुत दुनियाबी बना दिया। समझ में तो आया कि दुनिया में रहना है दिल नहीं दिमाग का भी इस्तेमाल करना चाहिए और ज़्यादा करना चाहिए।
चलो देर से ही सही तुम्हारी समझ में ये तो आ गया। ज्योति ने एक संतोष की सांस ले कर कहा।
लेकिन मोहतरमा एक बात और जान लीजिये लगे हांथो कि जीत कह लो या संतोष, वो उन्हीं को होता है जो दिल की सुनते हैं। हाँ उनको सफर बहुत करना पड़ता है। लेकिन शायद ये भी नियति का निर्धारण होता है कि कौन दिमागी होगा और कौन दिल वाला। दिमाग वालों के पास पद , पैसा , गाडी , बँगला होता है।
और दिल वालों के पास। ...... ज्योति का प्रश्न
दिल वालों के पास......
गम मुझे हसरत मुझे वहशत मुझे सौदा मुझे
एक दिल दे कर ख़ुदा ने दे दिया क्या क्या मुझे।
हम्म्म्म। ........
ये गाने और ढोलक की थापों की आवाज़ कहाँ से आ रही है, आनंद ने दरवाजे के ओर देखते हुए पूछा।
अरे वो जनार्दन के घर में जलसा है। उसकी बेटी का रोका है , लड़के वाले आये हैं। मुझे भी जाना है , तुम चलोगे ? ज्योति का आनंद से अनअपेक्षित सवाल। आनंद ने ज्योति की तरफ ऐसे देखा जैसे "क्या कह रही हो तुम" .
नहीं।
वो तो मुझे मालूम है।
अरे जब मैं invited नहीं हूँ तो कैसे जाऊं। और रोका है , शादी होती तो छुपते छुपाते घुस जाता और खाना खा के चला आता।
अच्छा जी। जैसे वो आपको आने देते इतनी आसानी से। देवकी की १० वी में 2nd पोजीशन आने में किसका हाथ था , किसकी मेहनत थी , वो जब उसको पता चला , तो जमीन में गड़ के रह गया। घर आया था , मां से कह रहा था कि आनंद बाबू ने बिटिया को अव्वल नंबर लाने के लिए अपने कर दिए और मैं सरे पंचायत उनका अपमान कर आया।
Really !! लेकिन देवकी के रिजल्ट के वजह से ही दूर दराज गाँवों के बच्चे स्कूल आने लगे।
हमारे जुनु का नतीजा जरूर निकलेगा
इसी स्याह समुन्दर से नूर निकलेगा।
Wednesday, July 24, 2019
एक पुराना मौसम लौटा - ३
कुछ पल ऐसे होते हैं या जिंदगी में ऐसे आते हैं जहाँ पर आदमी की समझ में नहीं आता कि क्या बोले , क्या - क्या बोले, बोले की न बोले और बोले तो क्या बोले। जहां पर अल्फ़ाज़ और ख़्याल में तालमेल नहीं बैठ पाता ऐसी हालत में चुप रह जाना बेहतर होता है। आँखें जो देखतीं हैं जुबाँ उसको बयाँ नहीं कर पाती। दिल जो महसूस करता है जुबाँ उसे भी बयान नहीं कर पाती। शायद यही हालत आनंद की थी जब उसने अपने घर की दहलीज़ पर उसको खड़ा देखा। नहीं नहीं इंतज़ार करता पाया। चंद लम्हों में कटा है मुद्दतों का फ़ासला। सच में कुछ चेहरे ऐसे होते हैं, कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनके पास होने पर वक़्त भी ठहर जाया करता है।
अरे ज्योति , बस यही निकल पाया मुंह से।
ले बिटिया आ गया तेरा आनंद। ज्योति के पीछे से आती हुई मालिन माँ के आवाज़। सवेरे निकल गया था सामान घर में रख कर अब लौटा है। गोधूलि के समय लौटा है पता नहीं दिन में कुछ खाया भी है या नहीं।
तीनों ने घर के अंदर प्रवेश किया। तुम दोनों बैठो। मैं चाय बना के लाती हूँ। खाने का टेम हो गया है लेकिन साहब को तो चाय चाहिए होगी। और अब चाय\पियेगा खाना पता नहीं कब खायेगा। कोई सुधरा ही नहीं है। मालिन बड़बड़ाती हुई चौके में गयीं।
मालिन ने आनंद की आराम कुर्सी के पास लकड़ी वाली कुर्सी घसीट के रख दी। जैसे सालों से उन्हें पता हो की आनंद अगर आराम कुर्सी पर बैठता था तो ज्योति लकड़ी वाली कुर्सी वहीँ रख के बैठती थी।
आनंद ने शाल और झोला खुटी पर टांग दिया। बैठो ज्योति खड़ी क्यों हो ? अदब -आदाब में तो नहीं खड़ी हो कि ये बैठें तो मैं बैठूं। कहते हुए आनंद आरामकुर्सी पर बैठ गया अब आप भी तशरीफ़फ़र्मा हो जाइये। ज्योति आनंद की तरफ लगातार देख रही थी कुर्सी पर बैठते हुए बोली आनंद तुम बिलकुल नहीं बदले। बहुत अच्छा लगा ये देख कर , बड़ी खुशी हुई ये देखकर।
"उनको दुनिया कहेगी दीवाना , ऋतु बदलती है जो बदलते नहीं"। आनंद का अपने लहज़े में सटीक जवाब। लेकिन एक दया करोगी , ज्योति ?
हाय राम कैसी बात करते हैं। दया कैसी। बोलिये।
कहाँ थे , कैसे हो , कब आये बस इन सवालों से बात मत शुरू करना। सवेरे से इनका जवाब देते देते कसम से जुबान का स्वाद कसैला हो गया है।
बाप रे आने तो डरा ही दिया था। पता नहीं क्या कहना चाहते हैं , दया करो।
तो और क्या करूँ ज्योति ? चाची कैसी हैं? अब तो बुढ़ा गयीं होंगी। आनंद का अपना लहज़ा।
माँ ठीक हैं हाँ बूढ़ा तो गयीं हैं।
तुमने एक बात गौर करी , ज्योति ?
कौन सी ?
मैंने अभी तक ये नहीं पूछा कि तुम कैसी हो।
बड़ी मेहरबानी की आपने।
नहीं नहीं मेहरबानी कैसी। हाथ कंगन को आरसी क्या। सामने देख रहा हूँ और देखता ही जा रहा हूँ और अब समझ में आ रहा है कि पुराने चावल और पुरानी शराब क्यों बेहरतीन मानी जातीं हैं।
क्या मतलब मैं चावल दिखती हूँ आपको ?
तुम्हारे सोचने का स्तर अभी वही है। दाल चावल तक।
उफ्फ्फ तो मैं शराब दिखती हूँ आपको।
लो चाय पियो , मालिन माँ की एंट्री।
लो देख लो मालिन माँ कौन सा बदल गयीं। अभी भी गलत समय पर एंट्री करने की आदत बरक़रार है।
मालिन माँ , आनंद को उनको सम्बोधन।
क्या हुआ ?
आप अभी भी यही चाहती हो न कि मेरे और ज्योति के बीच कोई नोक झोंक न हो।
हाँ क्यों ?
नहीं दो गिलास चाय और साथ में सिर्फ तो मठरियां एक एक खा लो। अगर तीन रख देतीं तो शायद तीसरी कौन खाये इस के ऊपर हमारी नोंक झोंक हो जाती।
हे राम , इसके दिमाग में तो बातें पता नहीं कहाँ से आतीं हैं। और मालिन माँ हसँते हुए चली गयीं। आज घर में शोर है। हँसी का शोर। काफी दिनों बाद सुना और अच्छा लगा।
स्कूल कैसा चल रहा है ज्योति ?
हाँ बताना भूल गया ज्योति आनंद के स्कूल में अब तो vice principal है।
अच्छा चल रहा है। आसपास के गाँव से भी काफी बच्चे आने लगे हैं अब तो।
ये तो अच्छी बात है। लेकिन उससे भी अच्छी एक बात और है।
वो क्या है भला ?
मेरी गैरहाज़िरी में तुम यहाँ आती रहीं।
अच्छा ये आपसे किसने कह दिया ?
बाहर खिले हुए गुलाब बता रहें हैं। झूमते हुए गुलदाउदी के फूल बता रहें हैं। डहेलिया का झुण्ड बता रहा है।
ओह। .......
अरे ज्योति , बस यही निकल पाया मुंह से।
ले बिटिया आ गया तेरा आनंद। ज्योति के पीछे से आती हुई मालिन माँ के आवाज़। सवेरे निकल गया था सामान घर में रख कर अब लौटा है। गोधूलि के समय लौटा है पता नहीं दिन में कुछ खाया भी है या नहीं।
तीनों ने घर के अंदर प्रवेश किया। तुम दोनों बैठो। मैं चाय बना के लाती हूँ। खाने का टेम हो गया है लेकिन साहब को तो चाय चाहिए होगी। और अब चाय\पियेगा खाना पता नहीं कब खायेगा। कोई सुधरा ही नहीं है। मालिन बड़बड़ाती हुई चौके में गयीं।
मालिन ने आनंद की आराम कुर्सी के पास लकड़ी वाली कुर्सी घसीट के रख दी। जैसे सालों से उन्हें पता हो की आनंद अगर आराम कुर्सी पर बैठता था तो ज्योति लकड़ी वाली कुर्सी वहीँ रख के बैठती थी।
आनंद ने शाल और झोला खुटी पर टांग दिया। बैठो ज्योति खड़ी क्यों हो ? अदब -आदाब में तो नहीं खड़ी हो कि ये बैठें तो मैं बैठूं। कहते हुए आनंद आरामकुर्सी पर बैठ गया अब आप भी तशरीफ़फ़र्मा हो जाइये। ज्योति आनंद की तरफ लगातार देख रही थी कुर्सी पर बैठते हुए बोली आनंद तुम बिलकुल नहीं बदले। बहुत अच्छा लगा ये देख कर , बड़ी खुशी हुई ये देखकर।
"उनको दुनिया कहेगी दीवाना , ऋतु बदलती है जो बदलते नहीं"। आनंद का अपने लहज़े में सटीक जवाब। लेकिन एक दया करोगी , ज्योति ?
हाय राम कैसी बात करते हैं। दया कैसी। बोलिये।
कहाँ थे , कैसे हो , कब आये बस इन सवालों से बात मत शुरू करना। सवेरे से इनका जवाब देते देते कसम से जुबान का स्वाद कसैला हो गया है।
बाप रे आने तो डरा ही दिया था। पता नहीं क्या कहना चाहते हैं , दया करो।
तो और क्या करूँ ज्योति ? चाची कैसी हैं? अब तो बुढ़ा गयीं होंगी। आनंद का अपना लहज़ा।
माँ ठीक हैं हाँ बूढ़ा तो गयीं हैं।
तुमने एक बात गौर करी , ज्योति ?
कौन सी ?
मैंने अभी तक ये नहीं पूछा कि तुम कैसी हो।
बड़ी मेहरबानी की आपने।
नहीं नहीं मेहरबानी कैसी। हाथ कंगन को आरसी क्या। सामने देख रहा हूँ और देखता ही जा रहा हूँ और अब समझ में आ रहा है कि पुराने चावल और पुरानी शराब क्यों बेहरतीन मानी जातीं हैं।
क्या मतलब मैं चावल दिखती हूँ आपको ?
तुम्हारे सोचने का स्तर अभी वही है। दाल चावल तक।
उफ्फ्फ तो मैं शराब दिखती हूँ आपको।
लो चाय पियो , मालिन माँ की एंट्री।
लो देख लो मालिन माँ कौन सा बदल गयीं। अभी भी गलत समय पर एंट्री करने की आदत बरक़रार है।
मालिन माँ , आनंद को उनको सम्बोधन।
क्या हुआ ?
आप अभी भी यही चाहती हो न कि मेरे और ज्योति के बीच कोई नोक झोंक न हो।
हाँ क्यों ?
नहीं दो गिलास चाय और साथ में सिर्फ तो मठरियां एक एक खा लो। अगर तीन रख देतीं तो शायद तीसरी कौन खाये इस के ऊपर हमारी नोंक झोंक हो जाती।
हे राम , इसके दिमाग में तो बातें पता नहीं कहाँ से आतीं हैं। और मालिन माँ हसँते हुए चली गयीं। आज घर में शोर है। हँसी का शोर। काफी दिनों बाद सुना और अच्छा लगा।
स्कूल कैसा चल रहा है ज्योति ?
हाँ बताना भूल गया ज्योति आनंद के स्कूल में अब तो vice principal है।
अच्छा चल रहा है। आसपास के गाँव से भी काफी बच्चे आने लगे हैं अब तो।
ये तो अच्छी बात है। लेकिन उससे भी अच्छी एक बात और है।
वो क्या है भला ?
मेरी गैरहाज़िरी में तुम यहाँ आती रहीं।
अच्छा ये आपसे किसने कह दिया ?
बाहर खिले हुए गुलाब बता रहें हैं। झूमते हुए गुलदाउदी के फूल बता रहें हैं। डहेलिया का झुण्ड बता रहा है।
ओह। .......
Tuesday, July 23, 2019
एक पुराना मौसम लौटा - 2
जैसा नाम वैसा स्वभाव और वैसा ही चरित्र। बहुत मुश्किल है लेकिन फिर भी ऐसे लोग हैं। जो अपने लिए नहीं जीते हैं।
आप आनंद जी को कब से जानते हैं ? सुशीला का प्रश्न
बेटी जानता तो मैं इसको कई सालों से हूँ लेकिन पहचान पाने में बहुत देर लगी।
ये कैसे हो सकता है बाबा ? जिसको हम जानते हैं उसको पहचानते भी हैं ना।
नहीं बिटिया दोस्त होता नहीं हर हाथ मिलाने वाला। हम बहुत से लोगों को जानते हैं लेकिन पहचानते कितनों को हैं या कितनों को पहचान पाते हैं ? अब आनंद को ही ले ले। हाँ कई सालों से जानता हूँ। गाँव का स्कूल उसके पिता जी का खुलवाया हुआ है।
बाबा अविनाश जी का घर कौन सा है गाँव में ?
यहां से दो ढाई कोस होगा। तुझे राधा का घर पता है ?
हाँ बाबा
वहां से सौ गज आगे, उलटे हाथ पर ।
अरे वो फूलों वाला। जहां मालिन दादी रहती हैं।
हाँ बिटिया।
वो आनंद का ही घर है। मालिन आनंद के घर पर सालों से काम कर रही हैं।
आनंद भी मंदिर से निकल कर ख़रामा ख़रामा चलता हुआ बढ़ चला। उसकी चाल देख कर कोई भी भाँप सकता है कि वो सिर्फ चल रहा है कहाँ जा रहा है , मंज़िल कहाँ है पता नहीं। इंसान के दिमाग में क्या चल रहा है उसकी बॉडी language को देखकर न - न पढ़कर समझा जा सकता है। लेकिन ये कला , ये विधा तो विधाता ने सबको दी लेकिन उसका इस्तेमाल सभी नहीं कर पाते हैं। खैर साहब छोड़िये मैं भी कहाँ विधि और विधान ले कर बैठ गया।
आनंद ने मुड़कर देखा कि मंदिर से वो कितना आगे निकल आया है। तसल्ली हो गयी कि हाँ खासी दूर हूँ तो जेब से चुरुट की डिब्बी निकाली और एक सिगरेट जला कर उसके कश लेते हुए चलता रहा।
आनंद भइया ..... राम राम ! बड़ी जानी पहचानी सी आवाज़।
कौन है भाई ?
अन्धेरा थोड़ा गहरा गया था इसलिए सूरत नहीं दिखाई पड़ रही थी।
भैया मैं कुंदन।
अरे कुंदन भाई , माफ़ करना अँधेरे की वजह से पहचान नहीं पाया। कैसे हो ?
मैं बिलकुल ठीक हूँ। आप कैसे हो और कब आये कहाँ थे ?
आनंद ने मन में सोचा कि ३ प्रश्नो का जवाब तो सबको देना ही पड़ेगा - कहाँ थे , कैसे हो और कब आये।
ठीक हूँ कुंदन और आये हुए अभी १ ही दिन हुआ है और कहाँ थे , बस ये न पूछो।
अच्छा अभी चलता हूँ भाई कुंदन। कल दूकान पर आता हूँ।
ठीक है भैया।
आनंद आगे बढ़ गया। कब घर पहुँच गया पता नहीं चला। आज दरवाजा खुला हुआ था। घर के अंदर मद्धिम उजाला भी आ रहा था। और हवा में एक अजीब सी महक भी। दरवाजा खुला हुआ समझ में आता है मालिन माँ अंदर हैं इसलिए उजाला भी है अंदर लेकिन ये खुशबू !!!!!!
कुछ न कुछ तो जरूर होना है।
कैसे हो आनंद ! हवा में तैरती हुई एक सुरीली सी आवाज़।
आनंद ने सर उठा के देखा तो मूर्तिवत देखता ही रह गया।
आप आनंद जी को कब से जानते हैं ? सुशीला का प्रश्न
बेटी जानता तो मैं इसको कई सालों से हूँ लेकिन पहचान पाने में बहुत देर लगी।
ये कैसे हो सकता है बाबा ? जिसको हम जानते हैं उसको पहचानते भी हैं ना।
नहीं बिटिया दोस्त होता नहीं हर हाथ मिलाने वाला। हम बहुत से लोगों को जानते हैं लेकिन पहचानते कितनों को हैं या कितनों को पहचान पाते हैं ? अब आनंद को ही ले ले। हाँ कई सालों से जानता हूँ। गाँव का स्कूल उसके पिता जी का खुलवाया हुआ है।
बाबा अविनाश जी का घर कौन सा है गाँव में ?
यहां से दो ढाई कोस होगा। तुझे राधा का घर पता है ?
हाँ बाबा
वहां से सौ गज आगे, उलटे हाथ पर ।
अरे वो फूलों वाला। जहां मालिन दादी रहती हैं।
हाँ बिटिया।
वो आनंद का ही घर है। मालिन आनंद के घर पर सालों से काम कर रही हैं।
आनंद भी मंदिर से निकल कर ख़रामा ख़रामा चलता हुआ बढ़ चला। उसकी चाल देख कर कोई भी भाँप सकता है कि वो सिर्फ चल रहा है कहाँ जा रहा है , मंज़िल कहाँ है पता नहीं। इंसान के दिमाग में क्या चल रहा है उसकी बॉडी language को देखकर न - न पढ़कर समझा जा सकता है। लेकिन ये कला , ये विधा तो विधाता ने सबको दी लेकिन उसका इस्तेमाल सभी नहीं कर पाते हैं। खैर साहब छोड़िये मैं भी कहाँ विधि और विधान ले कर बैठ गया।
आनंद ने मुड़कर देखा कि मंदिर से वो कितना आगे निकल आया है। तसल्ली हो गयी कि हाँ खासी दूर हूँ तो जेब से चुरुट की डिब्बी निकाली और एक सिगरेट जला कर उसके कश लेते हुए चलता रहा।
आनंद भइया ..... राम राम ! बड़ी जानी पहचानी सी आवाज़।
कौन है भाई ?
अन्धेरा थोड़ा गहरा गया था इसलिए सूरत नहीं दिखाई पड़ रही थी।
भैया मैं कुंदन।
अरे कुंदन भाई , माफ़ करना अँधेरे की वजह से पहचान नहीं पाया। कैसे हो ?
मैं बिलकुल ठीक हूँ। आप कैसे हो और कब आये कहाँ थे ?
आनंद ने मन में सोचा कि ३ प्रश्नो का जवाब तो सबको देना ही पड़ेगा - कहाँ थे , कैसे हो और कब आये।
ठीक हूँ कुंदन और आये हुए अभी १ ही दिन हुआ है और कहाँ थे , बस ये न पूछो।
अच्छा अभी चलता हूँ भाई कुंदन। कल दूकान पर आता हूँ।
ठीक है भैया।
आनंद आगे बढ़ गया। कब घर पहुँच गया पता नहीं चला। आज दरवाजा खुला हुआ था। घर के अंदर मद्धिम उजाला भी आ रहा था। और हवा में एक अजीब सी महक भी। दरवाजा खुला हुआ समझ में आता है मालिन माँ अंदर हैं इसलिए उजाला भी है अंदर लेकिन ये खुशबू !!!!!!
कुछ न कुछ तो जरूर होना है।
कैसे हो आनंद ! हवा में तैरती हुई एक सुरीली सी आवाज़।
आनंद ने सर उठा के देखा तो मूर्तिवत देखता ही रह गया।
Monday, July 22, 2019
एक पुराना मौसम लौटा- 1
शाम धीरे धीरे अपना साया बढ़ाती जा रही थी। मंदिर में आने जाने वाले भी काम हो रहे थे। कभी कभार कोई आकर मंदिर का घंटा बजाता जिसकी आवाज़ दूर दूर तक सुनाई पड़ रही थी।
प्रणाम बाबा ....... युवक ने पंडित जी का चरणों को स्पर्श किया।
खुश रह बेटा , पंडित जी इतना ही कह पाए। कहाँ था इतने साल ? कोई खोज खबर नहीं। घर में दिया बाती रोज़ होती रही। मालिन कहीं गयी नहीं। लेकिन तेरी कोई खबर उसको भी नहीं। कई बार मालिन यहां आई मैंने पूछा भी तेरे बारे में लेकिन उसके पास कोई जवाब नहीं।
बाबा, यायावरी में था। बहुत घूमा, बहुत जगह घूमा। इधर गया उधर गया। नगरी नगरी फिरा मुसाफ़िर। आनंद ने जवाब दिया। आवाज़ में एक अजीब सा निर्मोहीपन।
और ........ पंडित जी का एक सवाल।
और क्या बाबा।
गंगा कैसी है ? पंडित जी का सीधा सा सवाल।
बाबा ये रही चाय सुशीला थाली दो गिलास चाय और तश्तरी में चार बिस्कुट लेकर आई। आ बिटिया बैठ। आनंद ये सुशीला है अंजलि की बेटी। यहीं रहती है मेरे साथ। आनंद ने बड़े प्यार से उसके सर पर हाथ रखा और होंठ पर आशीर्वाद के बोल बुदबुदा के रह गए। चाय ख़तम कर के आनंद ने पंडित जी से चलने की आज्ञा मांगी। अभी तो रहेगा न यहां बेटा ? पंडित जी का स्वाभाविक सवाल। आनंद ने पंडित जी की तरफ देखा , मुस्कराया और स्वीकारोक्ति में सर हिलाया। सुशीला के हाथ में १०० रुपए रखे। और उसको आशीर्वाद देते हुए पंडित जी से विदा ली।
बाबा ये कौन हैं ? अब सुशीला का प्रश्न
बिटिया क्या जवाब दूँ तेरे सवाल का और कहाँ से शुरू करूँ।
एक पुराना मौसम लौटा। ये जो आया था इसका नाम है आनंद और जैसा इसका नाम वैसा ही इसका चरित्र।
लेकिन ......
सजदों के एवज फिरदौस मिले , ये बात मुझे मंज़ूर नहीं,
बेलौस ईबादत करता हूँ , बन्दा हूँ तेरा मजदूर नहीं।
प्रणाम बाबा ....... युवक ने पंडित जी का चरणों को स्पर्श किया।
खुश रह बेटा , पंडित जी इतना ही कह पाए। कहाँ था इतने साल ? कोई खोज खबर नहीं। घर में दिया बाती रोज़ होती रही। मालिन कहीं गयी नहीं। लेकिन तेरी कोई खबर उसको भी नहीं। कई बार मालिन यहां आई मैंने पूछा भी तेरे बारे में लेकिन उसके पास कोई जवाब नहीं।
बाबा, यायावरी में था। बहुत घूमा, बहुत जगह घूमा। इधर गया उधर गया। नगरी नगरी फिरा मुसाफ़िर। आनंद ने जवाब दिया। आवाज़ में एक अजीब सा निर्मोहीपन।
और ........ पंडित जी का एक सवाल।
और क्या बाबा।
गंगा कैसी है ? पंडित जी का सीधा सा सवाल।
बाबा ये रही चाय सुशीला थाली दो गिलास चाय और तश्तरी में चार बिस्कुट लेकर आई। आ बिटिया बैठ। आनंद ये सुशीला है अंजलि की बेटी। यहीं रहती है मेरे साथ। आनंद ने बड़े प्यार से उसके सर पर हाथ रखा और होंठ पर आशीर्वाद के बोल बुदबुदा के रह गए। चाय ख़तम कर के आनंद ने पंडित जी से चलने की आज्ञा मांगी। अभी तो रहेगा न यहां बेटा ? पंडित जी का स्वाभाविक सवाल। आनंद ने पंडित जी की तरफ देखा , मुस्कराया और स्वीकारोक्ति में सर हिलाया। सुशीला के हाथ में १०० रुपए रखे। और उसको आशीर्वाद देते हुए पंडित जी से विदा ली।
बाबा ये कौन हैं ? अब सुशीला का प्रश्न
बिटिया क्या जवाब दूँ तेरे सवाल का और कहाँ से शुरू करूँ।
एक पुराना मौसम लौटा। ये जो आया था इसका नाम है आनंद और जैसा इसका नाम वैसा ही इसका चरित्र।
लेकिन ......
सजदों के एवज फिरदौस मिले , ये बात मुझे मंज़ूर नहीं,
बेलौस ईबादत करता हूँ , बन्दा हूँ तेरा मजदूर नहीं।
Thursday, July 18, 2019
एक पुराना मौसम लौटा
समय गुज़रता था समय गुज़रता है और समय गुज़र जाएगा ये उसकी की नियति है। काफी वक़्त हो चला। वक़्त के पुल के नीचे से समय का पानी काफी बह चुका। अब तो नई शुरुआत का समय है।
सावन का मौसम लग चुका है और बारिश की झड़ी लगी है। पेड़ पौधों पर जमी धूल बारिश के पानी से साफ़ हो चुकी है और पत्ता - पत्ता, बूटा - बूटा हरे रंग में चमक रहा है। इस बारिश में चलती हुई हवा में पेड़ तो ऐसे झूम रहे हैं जैसे कोई अल्हड़ अभी अभी जिंदगी के सोलवहें साल में प्रवेश कर रही हो। उसे जंगली गुलाब बहुत पसंद हैं क्योंकि वो झाड़ में लगते हैं और एक ही झाड़ में कई सारे गुलाब, बुराँस के पेड़ को देखा है कभी आपने ? नहीं न। मैं जानता हूँ बाबू , आपने नहीं देखा होगा। बुराँस के पेड़ पर जब जवानी आती है, तो कौन सी मदिरा उसके सामने टिक पाती है। ये लाल रंग कब मुझे छोड़ेगा। बस स्टैंड से थोड़ा ऊपर चलकर वो जो पानी का सोता है वहां पर कुंदन की चाय की दूकान है। न कुंदन बदला न ही उसकी दूकान। एक ट्रांजिस्टर सवेरे से बजना शरू होता है और जब तक दूकान बंद होने का समय न हो जाए बजता ही रहता है।
गाँव में अभी भी कुछ ज़्यादा नहीं बदला है। कुछ पक्के मकान जरूर बन गए हैं लेकिन कच्चे मकान अभी भी हैं। मिसर जी की दूकान के बायीं तरफ नीम का वो बड़ा पेड़ आज भी मौजूद है। रेलवे स्टेशन पार करके वो काली जी का पोखरा आज भी है। उसके किनारे पर कृष्ण जी का मंदिर आज भी है। और मंदिर के पास वो बरगद का पेड़ जी हाँ , अभी भी वहीं है। आज भी शाम के वक़्त मदिर से कीर्तन , घंटे - घड़ियालों की आवाज़ आती है , आज भी पोखरे में शाम की आरती के बाद तैरते हुए दिए दिखते हैं। कितना अद्भुत समां होता है। शाम गहराते हुए रात में बदल जाती है और मंदिर के पीछे एक छोटा सा घर जिसके बरामदे में एक बल्ब टिमटिमा रहा है और एक आराम कुर्सी पर एक बुज़ुर्गवार बैठे हुए नज़र आते हैं , जी हाँ ये बुज़ुर्गवार मंदिर के पंडित जी हैं नाम दशरथ चौबे है। उम्र बिला शक़ ७० से ऊपर है। चेहरे पर शान्ति, मन में स्थिरता और शून्य में देखती आँखें।
बाबा ......... पंडित जी की पोती ने आवाज़ दी। उसका नाम सुशीला है। उम्र अगर , चलिए हटाइये उम्र का ज़िक्र क्यों कर करें। बस यूँ समझ लीजिये बाबा की देखरेख और मंदिर की देखभाल का जिम्मा उसी के सर है। उसने सारा समय अपने बंसी बजैया को दे दिया।
क्या है बेटा....... पंडित जी ने बेटी की आवाज़ का जवाब दिया।
बाबा , आप से कोई मिलने आये हैं। सुशीला ने कहा
मुझसे ? पंडित जी का प्रश्न।
कौन हैं ? दूसरा प्रश्न।
बाबा कोई आनंद हैं।
कौन !!!! आनंद !!!!! ....... पण्डित जी का विस्मय और आश्चर्य से भरा स्वर। वो कुर्सी से ऐसे उठे कि जैसे कोई २० -२५ साल का लड़का और मंदिर की तरफ लगभग दौड़ पड़े। सुशीला ने पकड़ा नहीं तो लगभग गिर गए थे। वो पंडित जी को मंदिर तक ले गयी। और मंदिर में एक अधेड़ उम्र का आदमी खड़ा था। दोनों एक दूसरे को देखते रहे। कोई शब्द नहीं, कोई आवाज़ नहीं , ख़ामोशी कैसे बोलती है कोई यहां देखता। अचानक दोनों एक दूसरे की तरफ बढे और गले लग गए। अब आंसू बोल रहे थे शब्द नहीं। कौन कहता है की मौन बोलता नहीं है। कई बार जो बातें शब्द बयां नहीं कर पाते खामोशी कह जाती है।
सुशीला इस बात को लेकर आश्वस्त थी की कोई अपना ही है। पंडित जी उस आदमी के साथ मंदिर के बरामदे में ही बैठ गए।
सुशीला , बेटी ज़रा गुड़ और पानी तो ले आ। पंडित जी स्वर में आतिथ्य का भाव। अरी सुन, गुड़, अदरक और तुलसी डाल कर चाय बना दे बेटी और सुन ज़रा बसेसर की दुकान से देख तो अगर लड्डू हों तो ले आ
पंडित जी के स्वर से ऐसा तो निश्चित था कि कोई अपना ही है जो बरसों बाद आया है या मिला है।
ये कौन था ?
सावन का मौसम लग चुका है और बारिश की झड़ी लगी है। पेड़ पौधों पर जमी धूल बारिश के पानी से साफ़ हो चुकी है और पत्ता - पत्ता, बूटा - बूटा हरे रंग में चमक रहा है। इस बारिश में चलती हुई हवा में पेड़ तो ऐसे झूम रहे हैं जैसे कोई अल्हड़ अभी अभी जिंदगी के सोलवहें साल में प्रवेश कर रही हो। उसे जंगली गुलाब बहुत पसंद हैं क्योंकि वो झाड़ में लगते हैं और एक ही झाड़ में कई सारे गुलाब, बुराँस के पेड़ को देखा है कभी आपने ? नहीं न। मैं जानता हूँ बाबू , आपने नहीं देखा होगा। बुराँस के पेड़ पर जब जवानी आती है, तो कौन सी मदिरा उसके सामने टिक पाती है। ये लाल रंग कब मुझे छोड़ेगा। बस स्टैंड से थोड़ा ऊपर चलकर वो जो पानी का सोता है वहां पर कुंदन की चाय की दूकान है। न कुंदन बदला न ही उसकी दूकान। एक ट्रांजिस्टर सवेरे से बजना शरू होता है और जब तक दूकान बंद होने का समय न हो जाए बजता ही रहता है।
गाँव में अभी भी कुछ ज़्यादा नहीं बदला है। कुछ पक्के मकान जरूर बन गए हैं लेकिन कच्चे मकान अभी भी हैं। मिसर जी की दूकान के बायीं तरफ नीम का वो बड़ा पेड़ आज भी मौजूद है। रेलवे स्टेशन पार करके वो काली जी का पोखरा आज भी है। उसके किनारे पर कृष्ण जी का मंदिर आज भी है। और मंदिर के पास वो बरगद का पेड़ जी हाँ , अभी भी वहीं है। आज भी शाम के वक़्त मदिर से कीर्तन , घंटे - घड़ियालों की आवाज़ आती है , आज भी पोखरे में शाम की आरती के बाद तैरते हुए दिए दिखते हैं। कितना अद्भुत समां होता है। शाम गहराते हुए रात में बदल जाती है और मंदिर के पीछे एक छोटा सा घर जिसके बरामदे में एक बल्ब टिमटिमा रहा है और एक आराम कुर्सी पर एक बुज़ुर्गवार बैठे हुए नज़र आते हैं , जी हाँ ये बुज़ुर्गवार मंदिर के पंडित जी हैं नाम दशरथ चौबे है। उम्र बिला शक़ ७० से ऊपर है। चेहरे पर शान्ति, मन में स्थिरता और शून्य में देखती आँखें।
बाबा ......... पंडित जी की पोती ने आवाज़ दी। उसका नाम सुशीला है। उम्र अगर , चलिए हटाइये उम्र का ज़िक्र क्यों कर करें। बस यूँ समझ लीजिये बाबा की देखरेख और मंदिर की देखभाल का जिम्मा उसी के सर है। उसने सारा समय अपने बंसी बजैया को दे दिया।
क्या है बेटा....... पंडित जी ने बेटी की आवाज़ का जवाब दिया।
बाबा , आप से कोई मिलने आये हैं। सुशीला ने कहा
मुझसे ? पंडित जी का प्रश्न।
कौन हैं ? दूसरा प्रश्न।
बाबा कोई आनंद हैं।
कौन !!!! आनंद !!!!! ....... पण्डित जी का विस्मय और आश्चर्य से भरा स्वर। वो कुर्सी से ऐसे उठे कि जैसे कोई २० -२५ साल का लड़का और मंदिर की तरफ लगभग दौड़ पड़े। सुशीला ने पकड़ा नहीं तो लगभग गिर गए थे। वो पंडित जी को मंदिर तक ले गयी। और मंदिर में एक अधेड़ उम्र का आदमी खड़ा था। दोनों एक दूसरे को देखते रहे। कोई शब्द नहीं, कोई आवाज़ नहीं , ख़ामोशी कैसे बोलती है कोई यहां देखता। अचानक दोनों एक दूसरे की तरफ बढे और गले लग गए। अब आंसू बोल रहे थे शब्द नहीं। कौन कहता है की मौन बोलता नहीं है। कई बार जो बातें शब्द बयां नहीं कर पाते खामोशी कह जाती है।
सुशीला इस बात को लेकर आश्वस्त थी की कोई अपना ही है। पंडित जी उस आदमी के साथ मंदिर के बरामदे में ही बैठ गए।
सुशीला , बेटी ज़रा गुड़ और पानी तो ले आ। पंडित जी स्वर में आतिथ्य का भाव। अरी सुन, गुड़, अदरक और तुलसी डाल कर चाय बना दे बेटी और सुन ज़रा बसेसर की दुकान से देख तो अगर लड्डू हों तो ले आ
पंडित जी के स्वर से ऐसा तो निश्चित था कि कोई अपना ही है जो बरसों बाद आया है या मिला है।
ये कौन था ?
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