आनंद घर आना . . .
निमंत्रण के लिए धन्याद . . .
धन्यवाद का मतलब , आप नहीं आओगे ?
अरे. हमने तो एक बात की, तुमने कमाल कर दिया।
अच्छा चलती हूँ।
और राधा चली गयी।
आनंद अकेला बैठा रहा और आनंद भी तो अकेले रहने में ही मिलता है। साथी होने पर मुझे अपने पर भी यकीन नहीं होता।
खाना खाने आओ भइया . . . अंजलि की गुहार।
आता हूँ।
पंडित जी भी बैठे . .. . आज कितने दिनों बाद आनंद खाना खा रहा हूँ।
पंडित जी और पंडित जी की बातें
भोजन से निपटकर आनंद ने विदा मांगी।
आ गया बेटा . . . . .
हाँ।
रामदीन ये चिट्ठी दे गया है।
चिट्ठी ?
और हाँथ में सैलाब था।
चिट्ठी ज्योति की है , ये आनंद को पता था.
आनंद ,
5 साल होने को हैं। माँ याद करती हैं पूंछती हैं की आनंद कहाँ है क्यों नहीं आता अब। बताओ मैं क्या जवाब दूँ ? क्या समझाऊँ उन्हे , क्या छुपाऊँ , क्या बताऊँ। अरे मैंने ये तो पूछा ही नहीं कि आप कैसे हो। चलो अब बता दो लेकिन जो कहोगे सच कहोगे।
कितनी अजीब सी बात हैं न, 5 साल बीत गए। कहाँ पाँच घंटे नहीं बीत पाते थे। वक़्त बदल गया या हम ,पता नहीं। या वक़्त के पाटों के बीच हम पिस गए। गाँव छोड़े हुए काफी वक़्त बीत गया , अम्मा भी अब साथ ही रहती हैं। लेकिन याद आता है गाँव का वो पनघट, वो स्कूल , वो मंदिर , वो नदी का किनारा , वो सरजू की नाव , सब याद आता है. मैं कुछ भी भूली नहीं हूँ आनंद.
वो चमन की सैर, वो फूलों का बिस्तर याद है,
हमको अपने दौर का इक इक मंज़र याद है।
लेकिन कहीं कुछ तो हुआ। ख़ैर मैं तो जानती हूँ लेकिन तुम बहुत सी बातों से अंजान हो। उठते होंगे प्रश्न तुम्हारे ज़हन में और लाज़मी भी हैं। शायद मुझसे तुम्हे कुछ शिकवा भी हो और गिला भी और शायद तुम मुझे गलत भी समझ रहे होगे।
कभी वक़्त मिलेगा तो समझाऊँगी। अभी रूकती हूँ। रामदीन काका गाँव वाले घर में ही रहते हैं. अगर समझो तो पत्र का जवाब उन्ही को दे देना।
क्या लिख के पत्र समाप्त करूँ , चलो
ज्योति।
आनंद ने पत्र को मेज पर रखा और चुरुट निकाली , जलाई और एक लंबा कश ले कर वही पास में पड़ी कुर्सी पर बैठ गया।
आये हैं समझाने लोग , हैं कितने दीवाने लोग.
वक़्त पे काम नहीं आते हैं , ये जाने पहचाने लोग।
क्रमश:
निमंत्रण के लिए धन्याद . . .
धन्यवाद का मतलब , आप नहीं आओगे ?
अरे. हमने तो एक बात की, तुमने कमाल कर दिया।
अच्छा चलती हूँ।
और राधा चली गयी।
आनंद अकेला बैठा रहा और आनंद भी तो अकेले रहने में ही मिलता है। साथी होने पर मुझे अपने पर भी यकीन नहीं होता।
खाना खाने आओ भइया . . . अंजलि की गुहार।
आता हूँ।
पंडित जी भी बैठे . .. . आज कितने दिनों बाद आनंद खाना खा रहा हूँ।
पंडित जी और पंडित जी की बातें
भोजन से निपटकर आनंद ने विदा मांगी।
आ गया बेटा . . . . .
हाँ।
रामदीन ये चिट्ठी दे गया है।
चिट्ठी ?
और हाँथ में सैलाब था।
चिट्ठी ज्योति की है , ये आनंद को पता था.
आनंद ,
5 साल होने को हैं। माँ याद करती हैं पूंछती हैं की आनंद कहाँ है क्यों नहीं आता अब। बताओ मैं क्या जवाब दूँ ? क्या समझाऊँ उन्हे , क्या छुपाऊँ , क्या बताऊँ। अरे मैंने ये तो पूछा ही नहीं कि आप कैसे हो। चलो अब बता दो लेकिन जो कहोगे सच कहोगे।
कितनी अजीब सी बात हैं न, 5 साल बीत गए। कहाँ पाँच घंटे नहीं बीत पाते थे। वक़्त बदल गया या हम ,पता नहीं। या वक़्त के पाटों के बीच हम पिस गए। गाँव छोड़े हुए काफी वक़्त बीत गया , अम्मा भी अब साथ ही रहती हैं। लेकिन याद आता है गाँव का वो पनघट, वो स्कूल , वो मंदिर , वो नदी का किनारा , वो सरजू की नाव , सब याद आता है. मैं कुछ भी भूली नहीं हूँ आनंद.
वो चमन की सैर, वो फूलों का बिस्तर याद है,
हमको अपने दौर का इक इक मंज़र याद है।
लेकिन कहीं कुछ तो हुआ। ख़ैर मैं तो जानती हूँ लेकिन तुम बहुत सी बातों से अंजान हो। उठते होंगे प्रश्न तुम्हारे ज़हन में और लाज़मी भी हैं। शायद मुझसे तुम्हे कुछ शिकवा भी हो और गिला भी और शायद तुम मुझे गलत भी समझ रहे होगे।
कभी वक़्त मिलेगा तो समझाऊँगी। अभी रूकती हूँ। रामदीन काका गाँव वाले घर में ही रहते हैं. अगर समझो तो पत्र का जवाब उन्ही को दे देना।
क्या लिख के पत्र समाप्त करूँ , चलो
ज्योति।
आनंद ने पत्र को मेज पर रखा और चुरुट निकाली , जलाई और एक लंबा कश ले कर वही पास में पड़ी कुर्सी पर बैठ गया।
आये हैं समझाने लोग , हैं कितने दीवाने लोग.
वक़्त पे काम नहीं आते हैं , ये जाने पहचाने लोग।
क्रमश: