Thursday, August 26, 2010

एक सोच

ऐसा क्यों होता है की मुझे तुमसे ही बात करने का समय नहीं होता, या यूँ कहूँ की अपने आप से ही बात करने का समय नहीं होता, जबकि मै जानता हूँ की तुम मेरे साथ हमेशा रहते हो????

ये एक जायज सवाल पूंछा है तुमने..... ऐसा नहीं है की सिर्फ तुम बात करना चाहते हो. मै भी तुमसे बात करना चाहता हूँ और मै तो करता भी रहता हूँ........ अक्सर तुम मेरी आवाज़ सुनते भी हो.....लेकिन सुन के अनसुना कर देना, ये अब इंसान की फितरत बन गयी है. ...... तुम ने कभी ये सोचा की तुम सुन के अनसुना क्यों करते हो.......

क्यों भला....?

क्योंकि तुम डरते हो.........

क्या ..............................?

आश्चर्य  मत करो...........  ये भी एक सच्चाई  है.

किस से डरता हूँ मै..........?

सच से............

क्या बात कर रहे हो............

मेरी यही आदत है की मै सिर्फ सच बयान करता हूँ.......... और लोग अपनी आवाज़ सुनना नहीं चाहते हैं... क्योंकि सच किसी से बर्दाशत  नहीं होता...... और अगर मै ये कहूँ की लोग सच से डरते हैं..... तो कोई गलत बात नहीं होगी............. लेकिन तुम्हारा अहंकार तुमको ये बात मानने नहीं देता...... चलो.... ऐसे समझो..... रावण ने सीता का अपहरण किया..... तो ये उसका दिल भी जानता था की ये गलत है. और जिस-जिस ने उसको समझाने की कोशिश की... वो चाहे विभीषण हो ये कुम्भकरण....आगे तुम जानते हो...... ये सिर्फ उसका अहंकार ही था जिस ने सच्चाई को स्वीकार नहीं किया..... और परिणाम............ युद्ध. ............... दिल और दिमाग के बीच जब मै तुम सब लोगों को पिसता हुआ देखता हूँ...... तो अफ़सोस होता है....... इंसान को " अशरफुल मखलुकात" कहा जाता है अर्थात..... ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ रचना.... और उसका ये हाल.............

दिल और दिमाग.....?

क्यों मै गलत कह रहा हूँ क्या..?

नहीं गलत तो नहीं..... तो फिर ईश्वर ने दिमाग दिया क्यों...?

दिल.... गलत और सही का फर्क बताने के लिए..... और दिमाग जो सही है उसपर चलने के लिए....... मेरा काम जो सही है वो बताना है..... उस पर चलने के लिए.....कैसे चलना है, किस राह से बचना है, ये सब दिमाग का काम है. लेकिन तुम लोग दिमाग के काबू मे हो जाते हो..... बोलो मै गलत हूँ क्या?

अभी भी देर नहीं हुई है...... सिर्फ एक सोच की देर है.

किस सोच की...?

दिल की सुनो...... अगर ये बात मानते हो की दिल मे ईश्वर का निवास है.....तो.

Wednesday, August 25, 2010

खाली दिमाग... शैतान का घर -२

  मैं काफी दिनों से तुम्हारा इंतज़ार कर रहा था....... फिर वही आवाज़ (लेकिन मै चौंका  या डरा नहीं..... क्योंकि मुझको अंदाज हो गया है की दिल से भी आवाज़ आती है.)

हाँ........ मै भी आप से बात-चीत करना चाहता था, लेकिन कुछ व्यस्त था.

मै जानता हूँ.

आप तो सब जानते हैं.

आज काफी इज्ज़त दे कर बात कर रहे हो?

नहीं..... पहली बार मै समझ ही नहीं पाया था.

अरे.... मै तो तुम्हारा सब से अच्छा दोस्त हूँ, अगर तुम मंजूर करो तो.

मंजूर........ ये बात अब मै और भी अच्छी तरह से समझ गया हूँ. तुम मेरे पास होते हो, मेरे साथ होते जब कोई दूसरा नहीं होता.

क्या बात है.... बातों मे कुछ उदासी झलक रही है.

उदासी..... हाँ.... आप कह सकते हैं.

भला क्यों?

जब अपनों से दूरियां बनती हैं तो दर्द स्वाभाविक है.

दूरियां............... तो तब बनती हैं जब नजदीकियां रही हों?

क्या मतलब......

अरे भाई..... नजदीक यहाँ कोई किसी के नहीं होता. जिसको तुम नजदीकियां समझते हो... मात्र छलावा है. यही बात तो तुम लोग समझते नहीं हो.

मतलब... की कोई किसी के नजदीक नहीं है.

हाँ.... यही सच है. कडुवा है न. लेकिन सच है. जब तक तुम अपने आप को रख कर तोलते रहोगे, दुखी ही रहोगे. सिर्फ सोच को बदलो और दुनिया कितनी रंगीन है वो देखो.

कैसी सोच.....

जहाँ पर तुम अपने आप को रखते हो, वहाँ पर दूसरे को रख कर देखो. तुम कभी भी वो व्यहार नहीं करोगे जो तुम्हे पसंद नहीं है. लेकिन............ तुम्हारी............ तेरी और मेरी ............ इस सोच ने दुनिया को ही नहीं बांटा, इंसान के भी टुकड़े - टुकड़े  कर दिए. लेकिन ..... मै तो हंसता रहता हूँ की इसके बाद भी तुम लोगों को कोई दुःख, पछतावा, ग्लानी नहीं होती. बल्कि गर्व होता है. अरे..... मूर्ख.... मेरा कुछ नहीं बिगड़ता , बिखरते तुम लोग हो. मैने तुमको बुद्धि दी.... वो तुमने दूसरों के घर गिरवी रख दी. जो दूसरों के कहने पर अपने रिश्ते बनता और बिगाड़ता हो... उसका तो अल्लाह ही हाफ़िज़ है. तुम्हारी तो सोचने और समझने की शक्ति कुंद हो गयी है.

तो क्या करें..... दूसरों को सुने नहीं. 

सुनो.... कान इसीलिए हैं. लेकिन बुद्धि भी है.....

आप ठीक कह रहे हैं....

चलो तुम ने माना तो.

लेकिन.......

फिर लेकिन... कितने but , किन्तु परन्तु, लेकिन, हैं तुम्हारे पास.

देखो.... आधी अधूरी ज़िन्दगी मत जियो. ज़िन्दगी को ifs and buts मे मत बांटो. खाना तो कभी आधा पेट नहीं खाते हो, कपड़े अधूरे नहीं पहनते हो... तो फिर ज़िन्दगी को अधूरी क्यों जीते हो......... क्या ज़िन्दगी जीने के लिए तुमको पैसे खर्च करने पड़ते है....... नहीं. ये तो मुफ्त है... तो अधूरी क्यों.

दुनिया का क्या करूँ...?

अरे.... दुनिया तो तुम्हारे घर का drawing room है...... सजा हुआ, संवारा हुआ. इसको तितर - बितर किसने किया?  रही बात दुनिया वालों की....? वो तो जोकर हैं....... हँसने- हँसाने के लिए हैं. उनको वहीं तक रहने दो. पैर की धूल को  माथे पे नहीं लगते........ हाँ किसके पैर की धूल है.... ये जरुर ध्यान रखना.

दुनिया वालों की फ़िक्र करोगे तो ये तुम्हे जीने नहीं दंगे..... अगर आज तुम परेशान हो..... इसके जिम्मेदार तो तुम खुद ही हो.

प्रेम..... प्रेम के बारे मे क्या सोचते हैं आप.....?

मै सोच रहा था..... की तुम अभी तक मुद्दे पे क्यों नहीं आ रहे हो. क्या जानना चाहते हो प्रेम के बारे मे......

इसके खिलाफ क्यों हैं सब........

कौन है....... इसके खिलाफ. कोई भी तो नहीं.

क्या बात करते  हो.....

अरे भाई... मे ठीक कह रहा हूँ. कोई भी इसके खिलाफ नहीं है, क्योंकि  ये तो सब की जरुरत है..... हाँ प्रेम बिना तो ज़िन्दगी वैसी ही है जैसे बिना नमक का समोसा.

वाह.... क्या मिसाल दी है.

आम चीजों की मिसाल जल्दी समझ मे आती है. हाँ..... तो प्रेम सब की जरुरत है. इसके खिलाफ सिर्फ वही होते हैं जिनको ये नहीं मिलता, या को लोग ये नहीं समझते की प्रेम क्या है. प्रेम.... ध्यान दो "प्रेम" शरीर से परे होता है. लैला मंजनू की कहानी आज भी दोहराई जाती है...... क्योंकि वो प्रेम था. अपने आप को प्रेम के तराजू पर तोलो. अगर अपने अलावा सिर्फ प्रेम का लक्ष्य नज़र आता है, अपने बारे मे सोचने से पहले जिसको प्रेम करते हो, उसका ख्याल आता है......लेने के लिए नहीं.... हाँथ देने के लिए उठते हो.... तब समझ लेना की प्रेम है.... और इसकी खिलाफत नहीं होती.

अच्छा...... वक़्त काफी हो गया है. आज बस करें?

जैसी तुम्हारी मर्जी.      मेरे पास तो उतना वक़्त है... जितना तुम अपने आप को देना चाहो.

Thursday, August 19, 2010

सन्नाटा....

मै किस पर लिखूं....?

तुम पर.....? न बाबा न. जब नाम तेरा प्यार से लिखतीं हैं उंगलियाँ, मेरी तरफ जमाने की उठतीं हैं उंगलियाँ.

समाज पर लिखूं.........अंधो के शहर मे आइने बेचने जैसा है.

नेताओं पर लिखूं.......? कीचड़ मे पत्थर फेंकू क्या...?

अब बचा कौन......मै खुद. मेरी कलम पर जमाने की गर्द ऐसी थी, मै अपने बारे मे कुछ भी न लिख सका यारों.

अब एक और है जिस पर मै कुछ लिख सकता हूँ........तन्हाई. तन्हाई  की अपनी एक आवाज़ होती है. कभी कभी ये सांय- सांय की आवाज़ मे होती है...... लेकिन मुझे अक्सर अपनी ही आवाज़ सन्नाटे की आवाज़ लगती है. सन्नाटा तो मैने कभी सुना ही नहीं. अपने अंदर इतनी आवाजें आती हैं की सन्नाटा तो अजनबी बन गया है.

मेरी तन्हाई , तुम ही लगा लो मुझको सीने से, की मै उकता गया हूँ इस तरह घुट घुट के जीने से.

आप ने दीवारों के बारे मे कभी कुछ सोचा है.......नहीं न.

दीवारों के कान तो होते हैं... सब जानते हैं. मगर दीवारों के मुँह भी होना चाहिये..... हर वो शख्स जो अपने आप को चार दीवारों के बीच पाता होगा, और वो भी तनहा.... वो मेरी इस बात से जरुर इतेफाक रखेगा. के दीवारों के मुँह भी होना चाहिए. आखिर कभी कोई तो हो हम से भी चार बाते करने को. हमारी सुनने को.......कहाँ तक कोई अपने आप को किताबो के बीच गला दे... कहाँ तक. किताबी कीड़ा बनना , मुझे शुरू से ही नामंजूर था. मुझे ये बात नागवार गुजरती है है क्योंकि किताब पर किताबे, किताब पर किताब पढते रहने से, मुझे तो ये भी समझ मे नहीं आता की जो मे सोच रहा हूँ, ये मेरी अपनी सोच है , या किसी किताब से उधार ली हुई. क्या मेरी सोच भी मेरी न रही. ये तो अकेलापन की तरफ एक और कदम बढ़ गया मैं. ...... आप क्या सोचते हैं.

और मजा देखिये.... मेरे इस अकेलापन का फायदा उठा कर..... यादों का और विचारों का तो मेला लग जाता है. एक का बाद एक.... मेरे सीने पर इनकी दस्तक सुनाई पड़ती रहती है..... और मै एक के लिए बार बार उठ कर कहाँ तक दिल का दरवाजा खोलूं.....इसलिए दरवाजा खुला ही रखता हूँ. और यादे..... मुझे  अकेला   पा कर डुबो देना चाहती हैं, और वही डूबते हुए मन को सहारा भी देतीं हैं....... सारे ख्याल तुम्हारे ..... सारी यादें तुम्हारी..... मै तो सागर के लहरों पर जैसे डूबता और उतराता रहता हूँ....... दिल एक खेल का मैदान बन जाता है..... अकेलेपन मे. ....... मानते हो न.

कल मै कुछ देर के लिए अपने आप से दूर चला गया...... और वो अकेलापन अजीब ही था.... भयावह.... क्योंकि वहाँ पर तुम नहीं थे. तब महसूस किया की जब तुम साथ होते हो.....

अब उस शेर की कीमत समझ मे आई......

तुम मेरे पास होते हो गोया, जब कोई दूसरा नहीं होता.

मै भी खामोश होता जा रहा हूँ.... क्योंकि मेरे पास बात करने को कई लोग हैं......लेकिन तुम नहीं. और मै एक दिन खामोश हो जाऊँगा. मै जब चुप हो जाऊं... तो तुम तुम दुनिया से ये जरुर कहना.......

क्या बताऊँ कैसे उसने दर बदर खुद को किया,
उम्र भर किस किस के हिस्से का सफ़र उसने किया.
तुम तो नफरत भी न कर पाओगी, इस शिद्दत के साथ,
किस बला का प्यार उसने बेखबर तुझको  किया.

देखा..... अकेलापन कितना छा जाता है मुझ पर. और फिर मै जब एहबाब के बीच जाता हूँ.....तो खुद को कैसे पेश करूँ...... ये एक नयी समस्या.

तुम तो समझती ही होगी...... जैसा चाहो....... .और अकेलपन मे जब उसकी याद आती है, तो सच मानियेगा, फूल निकलते हैं शोलों से, चाहत आग लगाये तो. ये सिर्फ वो ही समझेगा.... जो खुद इस आग मे कभी जला हो. ये अजीब फासले होते हैं जो और करीब ला देते हैं... और करीब..... और करीब..... लीजिये बुला लिया आप को ख्याल में, अब तो देखिये हमें कोई देखता नहीं......

Tuesday, August 17, 2010

ये खुदा की नेमत है. ......मान ले मेरी बात

देख भाई, अब तू मेरी बात सुण. तू बहुत time से न परेसान सा लग रहा है. आ जहाँ बैठ. थोड़ी सांस ले ले. इसके कोई पैसे न लगे हैं.  अरे हाँ......... भाई..... मै मजाक न करे हूँ.............. मेरी उमर देख......... मजाक करने की लागे है तुझे...........  मै, न............ बड़ी लम्बे समय से तुम सब को देख रहा हूँ.............. और सब के सब अपनी ज़िन्दगी को कोसे हैं, गाली दे हैं.............. अरे काहे भाई. सब के सब भाग रहे हैं...... अरे मेरे भाई........... जिस ज़िन्दगी तू गाली दे है.............. उसकी सुन्दरता को भी देख ले. अच्छा.......... बोल ठीक है की न............

तूने बिजली का तार तो जरुर ही  देखा होयेगा........उसके अंदर कितना current बहता है, तू जाने है न..? लेकिन उपर एक परत चढ़ी होवे है जो झटके से बचावे है. ...... बुझात है न...... ये जो प्यार है न.... ये उसी परत की मानिंद है. जब ज़िन्दगी मे प्यार की परत चढ़ जावे है.....न, तब बहुत से झटके तो पता भी न चले हैं............... मान ले मेरी बात. हम सब ज़िन्दगी की भाग दौड़ मे सब कुछ याद रखे हैं, सिर्फ ये भूल जावे हैं की ज़िन्दगी कितनी आसान है.....कितनी सुंदर है. हम न...... अपने दुखों से उतने दुखी  नहीं जितना दूसरे के सुखी होने से दुखी है. कब तक देखेगा दूसरों की तरफ और परेशान रहेगा. ....... बोल प्यारे.

जब प्रेम की चीनी ज़िन्दगी के शरबत मे घुलती है न...... तो ज़िन्दगी ...ज़िन्दगी बनती है. प्यार बाँट... प्यार. और देख तुझे कितना प्यार मिले है. चल भाई..... मै तो तेरी तरह पढ़ा लिखा नहीं हूँ...... कबीर को देख.... कौन सा स्कूल ........ वो जो तेरे गुरु है....... क्या नाम ...... हाँ..... राम चंदर..... वो कौन सा स्कूल गए. फिर भी याद करे है  दुनिया उनको और राज करे हैं वो..... हमारे दिलों पर....... बोल प्यारे.... अरे ज़िन्दगी है ऊँच-नीच , सुख-दुःख, रोना-हँसना, तो लगा ही रहेगा. किन किन चीजों को लेकर कोसता रहेगा, किन किन चीज़ों को लेकर रोता रहेगा. हँसना सीख....... वो एक शायर ने कहा  है न......

हादसों की जद मे है , तो मुस्कराना छोड़ दें,
जलजलों के खौफ से , क्या घर बनाना छोड़ दें.

काहे तू अपनी ज़िन्दगी को दूसरे के तराजू पर तोले है. वो ऐसे हैं, उनके पास ये है, उनका बच्चा ऐसा है. जब तू तुलना करता रहेगा..... मान ले मेरी बात..... रोता रहेगा.  अरे तू भी किसी से कम न है.... ये बात क्यों नहीं समझता है..... रे.

तू न प्यार कर ले..... और नहीं कर सकता तो जो तुझे प्यार करता हो.... उसका होले. फिर देख ज़िन्दगी कितनी आसान हो जाती है.  लेकिन प्यार मे ये मत समझ लीजियो की मिलना ही प्यार की मंजिल है...... प्यार का अंजाम जाने है तू............ प्यार मे सर झुकाना पड़ता है, दर्द मे मुस्कराना पड़ता...... और .... मेरी जान.... फिर देख ज़िन्दगी ...... ज़िन्दगी तुझसे  जलने लगेगी.  ................ ज़िन्दगी से ज़िन्दगी का वास्ता जिन्दा रहे.

ज़िन्दगी को शर्तों पे जीना छोड़ दे..... वो किसी ने कहा है न....If you want to be happy....be. अब बता.... जिदगी को बेमज़ा किसने बनाया.  अरे प्यारे... खुश रहना चाहता है तो रह न..............किसने रोका. ...... तू ने खुद ने रोका... और फिर कोसता है................

न कर शुमार की हर शह गिनी नहीं जाती,
ये ज़िन्दगी है, हिसाबों से जी नहीं जाती.

जी... जितना चाहे उतना जी........
जैसे चाहे वैसी जी............
लेकिन ज़िन्दगी को जी.............. रो मत, कोस मत.

ये खुदा की नेमत है.

Saturday, August 14, 2010

सुनो......... उससे बच के रहना

सुनो......... उससे बच के रहना.

नहीं भाई नहीं ये मै नहीं कह रहा हूँ. मै तो सिर्फ वो कह रहा हूँ जो मेरे अभिन्न मित्र सुंदर लाल के बारे में लोग एक दूसरे से कह रहे हैं. आप ने कभी किसी के बारे में इस तरह अपने किसी प्रियजन को सावधान किया है? किया होगा या हो सकता है कि न भी किया हो. बेचारा सुंदर लाल. लेकिन सावधान जरूर कर दीजिएगा. क्योंकि जब मै आप को सावधान करूंगा तो निश्चित तौर पर आप मुझसे जानना चाहेगे   कि क्यों भाई और फिर मुझे एक और मौका मिलेगा अपनी दिल कि किसी अधूरी ख्वाहिश को पूरी करने का, सुंदर लाल के बहाने और फिर मै नमक मिर्च लगा कर आप को सुंदर लाल के बारे में बताउंगा. सुंदर लाल ऐसा है, सुंदर लाल वैसा है, सुंदर लाल का उससे चक्कर है आदि आदि.... You know. सुनो......... उससे बच के रहना


वैसे ये आदत है बड़ी , क्या कहूँ, अच्छी .... नहीं , नहीं रुचिकर. सच मे किसी के साथ बैठकर , किसी कि बुराई करना.... इस का अपना सुख होगा. अरे भाई  कोई सुख न हो..... तो... आदमी करे क्यों? बोलो तो. सास- बहू, भाभी- नन्द , ये सब जोड़िया तो मशहूर  हैं इस कम के लिए. और जिनकी ये जरूरत ( जरुरत शब्द पे ध्यान दीजियेगा) पूरी नहीं होती.... वो कुछ और , कहीं और अपनी निंदा व्याखान की आदत पूरी कर लेती हैं. और इसके लिए उनको श्रोता भी मिल जाते है. कुछ मज़बूरी मे सुनते हैं कुछ को इसमे बड़ा रस आता है. लेकिन सुनो....उससे बच के रहना.

निंदा.... सिर्फ कलयुग की कला नहीं है. ये तो राम के समय से चली आ रही है. जब त्रेता युग था. मंथरा ने काम तब किया था. तो मतलब ये कला कोई आज की नहीं हैं. बस होना इतना चाहिए की निंदा जिसकी करनी हो उसी से की जाये. तो सकारात्मक निंदा नहीं तो ...... आप लोग जानते ही हैं. अच्छा लोग सामने सामने निंदा क्यों नहीं करते ? ये भी एक सवाल है. शायद डर. जिसकी निंदा मे कर रहा हूँ , उसकी सामने अगर उसने कोई प्रतिक्रया कर दी तो.... ? प्रतिक्रया किसी भी तरह की हो सकती है. लेकिन सुनो......... उससे बच के रहना


आखिर क्यों.... क्यों ........ उससे बच के रहना ?
 
क्योंकि.... उसकी बातों मे है अजब सी खुशबू, वो शायद लबो पे गुलाब रखते है. 
 
इसलिए सुनो......... उससे बच के रहना



खुदा हाफ़िज़. ...... अब आप इनसे उजाला करे, या घर फूंके , चिराग़ बेचने वाले चिराग़ बेच गए.  

Thursday, August 5, 2010

जी बहुत चाहता है सच बोले

विश्वासघात.......... आप ने अविश्वास्घात सुना है? नहीं सुना होगा, क्योंकि ये होता ही नहीं है.  अविश्वास्घात तो केवल मूर्ख ही करते हैं. समझदार तो विश्वासघात करते हैं. अरे.... नहीं मै कोई व्यंग या तानाकशी नहीं कर रहा हूँ, सच  बोल रहा हूँ. मै अपने दोस्तों मे ज्यादा लोकप्रिय नहीं हूँ, क्यंकि मुझे सच बोलने की आदत, तो नहीं कह सकता, पर बीमारी है. और इसका पूरा भुगतान मैने किया है. जी हाँ सच बोलने का भुगतान...............

प्यार किया...........? ये सवाल किया गया

हाँ....... ये जवाब था. और क्या कहता कि नहीं किया. 

इसको सूली पर लटका दो. ............. ये फैसला था.

मंजूर है..............क्योंकि मैं ललो-चप्पो नहीं कर सकता.

आगे से ऐसा कुछ नहीं करोगे...... वर्ना..... एक धमकी भरा स्वर.

जी............. मन मे सोच कि क्या नहीं करूंगा, ये भी बता दो. प्रेम तो ह्रदय का स्वभाव है.

खैर........ जी बहुत चाहता है सच बोले , क्या करें हौसला नहीं होता. सच बोलने मे का डर नहीं है, सच को बर्दाशत करने का कलेजा सब के नहीं होता. वो अंग्रेजी मे कहावत है................ "if you want to make somebody angry , lie. If you want to make him more angry, tell the truth." अब आप ही राय दें , कि मै क्या करूँ? 

अगर आप इज़ाज़त दें तो जगजीत सिंह साहब कि मशहूर नज़्म को उद्धत करना चाहूँगा........

सच्ची बात कही थी मैने, लोगों ने सूली पे चढ़ाया,
मुझको  जहर का जाम पिलाया, फिर भी उनको चैन न आया.

विश्वासघात तो एक कला है, पता नहीं लोग इसको गिरी हुई नज़रों से क्यों देखतें हैं. जूडास ने कितनी खूबसूरती से ईसा मसीह का हाँथ चूम कर, दुश्मनों को ये बताया था, कि १२ लोगों मे ईसा मसीह कौन हैं. मै जिसके हाँथ मे एक फूल दे के आया था, उसी के हाँथ का पत्थर मेरी तलाश मे हैं. लोग कहते हैं वक़्त के साथ चलो, और सही भी है. तो विश्वासघात तो आज कल का चलन है.

ईमानदार............ को तो लोग शक कि निगाह से देखतें हैं.  उसे outdated , दकियानूस तरह-तरह के नामो से सजाया जाता है. ईमान तो सिर्फ बेईमान रखते हैं आज कल.   

लेकिन.............. उपर वाले कि लाठी मे आवाज़ नहीं होती. ऐसा मैने सुना है.

आप ने सुना है......................

चरित्रहीन

सारा जमाना उसे इसी नाम से जानता था. वो देखो जा रहा है....... चरित्रहीन.

 उसका कसूर ये था की वो प्यार करता था. दूसरों की  तकलीफ मे उसकी आँख नम होती थी. रात या दिन , सुबह या शाम,,,, ये नहीं देखा उसने. कहीं हो जलता मकान, उसे अपना घर लगता था. वो लुटा हुआ था, किसी ने उसके अंदर झांकने की भी तकलीफ न उठाई. बस चरित्रहीन करार दे दिया. उसने कभी अपनी ज़िन्दगी, अपने लिए नहीं जी. लेकिन वो चरित्रहीन है...... क्योंकि वो प्यार करता है............... प्यार बांटता है. उससे दूर रहो............... ये हिदायत है गाँव वालों को. कितना आसान है न किसी की तरफ  उंगली  उठाना. लेकिन आज भी जब कहीं तकलीफ है, वो सुनता है, तो सब से पहले पहुँचने वालों मे वो ही होता है.  क्योंकि वो चरित्रहीन है. उसके पास अब खोने के लिए कुछ नहीं बचा.

उसको गाँव मे रहने की इजाज़त नहीं है. वो अब गाँव से बाहर शिव मंदिर मे रहता है. क्या खाता है , क्या पीता है, भगवान् ही जाने. अपनी धुन मे रहता है. मैने एक दिन उस से बात करने की इच्छा प्रकट की, तो बोला...... अरे , मुझसे दूर रहो, क्योंकि मै चरित्रहीन हूँ. जानते नहीं हो क्या. क्यों बैठे बैठाये आफत मोल लेना चाहते हो.

मै तुम को समझना चाहता हूँ.

मुझको.......................?

हाँ तुमको.......

अरे......... मेरे बारे मे जानना हो तो गोपाल से पूंछो, श्रीमती जी से पूंछो. मेरे बारे मे वो लोग सब जानते है. राम और कृष्ण से पूंछो.

नहीं............. मुझे तुम से जानना है.

क्या जानना चाहते हो ?

तुम को सब गालियाँ देते हैं. फिर भी तुम सब के साथ खडे दिखते हो?

तो क्या करूँ?

विद्रोह क्यों नहीं करते?

विद्रोह............? किसके खिलाफ?

जो तुमको गालियाँ देते है.

नादान हो. वो सब मेरे शुभचिंतक हैं, मेरे प्रिय हैं. देखने का नजरिया बदलो. मुझे याद है जब हालातों के बहाव ने मुझे डुबो दिया था, तब एक भला इंसान मिला,  जिसने मेरे जख्मो पर हमदर्दी और प्रेम का मरहम लगाया. और मुझे खत्म होने से बचा लिया. और खेल देखो उपर वाले का , की जब मुझे होश आया तो वो भी मुझे छोड़ कर चल दिया. अब मै अकेला हूँ. न आगे नाथ, न पीछे पगहा, बीच बाज़ार मे नाचे गदहा. इस का भी अपना आनंद है.

मुझे प्रेम है उपर  वाले से. क्योंकि उसके पास मेरे लिए इतनी निराली निराली दवाएं है. .... जो एक अजीब सुख का अनुभव कराती हैं मुझको. क्या इतनी दया कम है उसकी मेरे उपर , की आज भी मै अपने धर्म से पीछे नहीं हटता.

आप अजीब हो....?

नहीं ..... मै प्रेमी हूँ. इसलिए चरित्रहीन हूँ.

मुझसे दूर रहो.

Tuesday, August 3, 2010

अब आगे............?

अब आगे............ क्या होगा? ये एक प्रश्न सभी के मन मे आता है, जब ज़िन्दगी किसी सिरे पर पहुंचती है या जब ज़िन्दगी मे कोई घुमाव आता है.  एक संवाद पेश करता हूँ:-

तुम तो चले जाओगे............ फिर?

फिर क्या.....................?

अनजान मत बनो. तुम जानते हो मै या कह रहा हूँ.

तुम से इस प्रश्न की उम्मीद नहीं थी. इसलिए पूंछा. क्या मै तुमको बताऊँ , या तुमको समझाऊं. तुमको कुछ समझाना, सूरज को चिराग दिखाने जैसा है.

बस करो..........सालों बाद अभी तो ज़िन्दगी को महसूस करना शुरू किया था कि.......

तुम तो जानते हो कि ज़िन्दगी की सबसे बड़ी ख़ूबसूरती क्या है. ये चलती रहती है. लोग उतरते  हैं, चढते हैं.. लेकिन ये चलती रहती हैं.......... हाँ, इस सफ़र मे कुछ लोग ऐसे मिलते हैं, जो अमिट छाप छोड़ जाते हैं. तुम्हे याद होगा मैने तुमको एक तपस्वनी के बारे में बताया था. ममता की मूर्ति, लेकिन जग से विरक्त. में जब जाऊँगा तो उसको अपने साथ ले कर जाऊँगा.

तो तुम भी तपस्वी बनोगे.................

हाँ...... मै भी तो देखूं की विरह की आग कैसी होती है. मन बावरा होता है, या साधु. एक बार फिर एकांत प्रवास का मौक़ा............ मेरे लिए प्रार्थना करना की जिस आग मैने अपने आप को जलाने का फैसला किया है....... उसमे से सोना बन के वापस आऊं, राख बन कर नहीं. 

राख.............. ऐसा मत बोलो. कुछ भी बोलते हो.

इतना डरो मत, टूटो मत. तुम अकेले तो नहीं हो. तुम मे तो हवन कुंड है. जिसमे तुम ने अपने आप को जलाया है. तुम सोना बन सकते हो.... तो मे क्यूँ नहीं.

बिलकुल.....

लेकिन क्या मुझे अपनी ज़िन्दगी जीने का हक नहीं है? क्या मै जो हूँ, वो बन कर नहीं रह सकता.

किसने रोका है तुमको....... दुनिया, समाज ये सब हमारे अकलेपन को खत्म करने की लिए हैं. इनकी चिंता मत करो. आगे बढ़ो. देखो एक नया सूरज तुम्हारा इंतज़ार कर रहा है. अपने अंदर की आग को ज़िंदा रखो. अभी दुनिया को तुम्हारी जरूरत है....... मै मजाक नहीं कर रहा, सच कह रहा हूँ. तुम कीमती हो, तुम्हारे विचार, दुनिया को हिलाने की ताकत रखते है. और फिर तुम तो कलम के जादूगर हो. अपने आप शब्दों मे उतारो, भावों मे लय कर लो. तुम से तो मैने तपस्या का मतलब सीखा है.

अच्छा अब बस करो.

मै कहीं नहीं जा रहा हूँ. देखो............... मै हूँ न..............   वहाँ.

सच बोलना..... हूँ या नहीं.... बिलकुल सच.



      

Monday, August 2, 2010

लेकिन फिर भी सुबह होती है..........

वो क्या हैं न, की मेरी लिखने की आदत तो अच्छी है, लेकिन कुछ भी लिख देने की आदत गन्दी है. सोच समझ कर लिखना चाहिये, ऐसा बड़े बुढे कह के गए हैं और मै उनसे इत्फ़ाक भी रखता हूँ. लेकिन सोच समझ कर लिखने मै स्वाभाविकता खत्म हो जाती है. ऐसा मेरा सोचना है. जो सोचते हो  वो लिखो, मेरा ये सिद्धांत  है.  और इस चक्कर मे, मैं कई बार मुँह की खा भी चुका हूँ. लेकिन वो क्या है न:-

हिम्मत से सच कहो तो बुरा मानते हैं लोग,
रो रो के बात कहने की आदत नहीं रही.

एक वक़्त था, जब कुछ भी लिखने से पहले, कुछ भी बोलने से पहले, मैं सोचता था की अमुक को कैसा लगेगा, अमुक क्या सोचेगा, अमुक को तकलीफ होगी आदि आदि ..... लेकिन मुझे हादसों ने सजा सजा कर बहुत हसीन बना दिया, मेरा दिल है जैसे किसी दुल्हन का हाँथ, मेहंदियों से रचा हुआ. दूसरों के बारे में  सोच सोच कर, इतने जख्म खाये , की इंसान के उपर से विश्वास ही उठ गया. अपने जख्मो के दाग गिन गिन कर, दोस्तों का हिसाब  रखते हैं. खैर, छोड़िए शिकवा- गिला.  

जो लोग दूर थे वो हमेशा दूर ही रहे,
जो पास थे उनसे मेरी तबियत न मिल सकी.

तन्हाई..... इस का अपना मजा है. खूब बाते होती हैं, तन्हाई में....... अपने आप से. आत्म-विश्लेषण का भरपूर मौका मिलता है. तन्हाई की अपनी आवाज़ होती है. जिसमे डूब कर पता चलता है.... की अरे ये तो मेरी ही आवाज़ है. कल मैने अपनी ज़िन्दगी से पूंछा ....... कुदरत के नियम इतने सख्त क्यों होते है?

कुदरत के नियम और सख्त? मेरी ज़िन्दगी ने मुझसे सवाल किया

हाँ......... क्या अपने आप को मिटाना इतना आसान है? मेरा सवाल.

क्या तुम थे? जिन्दगी का पलटवार.

मतलब????? मेरा अचरज

अरे तुम तो हो ही नहीं. इस हाड़- मांस को तुम खुद समझते हो? कितने नादान हो. ज़िन्दगी ने मेरा मजाक उड़ाया.

कुदरत कितनी मेहरबान है, इसका अंदाज तुम लगा ही नहीं सकते, क्योंकि तुम अपने बनाये हुए जालों से बाहर निकल ही नहीं पाते. तुम ने खुदा की दी हुई इस कुदरत के साथ इतना खिलवाड़ किया, तो अब क्या उसकी भरपाई नहीं करोगे? तुम्हारे अंदर खुदा खुद बैठा, ताकि तुम को अकेलापन न महसूस हो, लेकिन तुम................. छोड़ो.

लेकिन मै हार गया हूँ.

क्या.................................................?

हाँ....................... कब तक लडूं, अपने आप से और ओरों से. और फिर मुस्कराहट भी होनी चाहिये.

एक हंसी...... अपने आप को खुदा की औलाद भी कहते हो और हार भी मानते हो. ये बात कुछ जमी नहीं. 
पानी के बहाव के साथ तो कोई भी तैर सकता है, जो लहरों को चीर कर, बहाव के विरुद्ध तैरे, वो इंसान, कलेजे वाला होता है. अब तुम खुद सोचो..........

बाते करना , और , ज़िन्दगी जीना इसमे फर्क होता है.

कोई फर्क नहीं होता है. खुदा ने तुमको हर वो नेमत बक्शी है, जो तुम्हारे लिए जरूरी है, ज़िन्दगी जीने के लिए. तुम उसको न पहचानो, उसका इस्तेमाल भी न करो, तो बताओ गलत कौन? जो चलता है, वही गिरता है. जो पानी मे कूदता है, वही तैरना सीखता है. तुम क्या उम्मीद करते हो जब तैरना सीख लोगे, तभी पानी मे कूदोगे. तो किनारे बैठो.

ज़िन्दगी, अब बता कहाँ जाएँ, सारे रास्ते तो बंद नज़र आतें हैं........ मेरा एक सवाल.

अल्लाह-ताला से दुआ करो, और यकीन रखो. हर रात की सुबह होती है. कहीं रात बारह घंटे की होती है तो कही छह महीनो की, लेकिन फिर भी सुबह होती है..........