कारण ! कारण ! कारण !
जिंदगी cause and effect ही है या इन्हीं पे चलती है।
क्योंकि बादल आये इसलिए बारिश हुई।
क्योंकि उसने बुरा किया इसलिए उसका बुरा हुआ।
दुनिया में आये हैं तो जीना ही पड़ेगा।
नहीं गंगा मैं २ महीने से मंदिर में रह रहा हूँ तो इसलिए नहीं मैं किसी चीज़ से भाग रहा हूँ या भाग कर यहाँ हूँ। ऐसा नहीं है। शहर की भाग दौड़ , जिम्मेदारियों का बोझ , कुछ इधर की कुछ उधर की इन सब के बीच हम खुद को खो देते हैं हाँ सच में हम खुद को खो देते हैं. हम ये भूल जाते हैं की हम भी कुछ हैं , हम को अपने लिए भी जीना चाहिए। खुद को भी वक़्त देना चाहिए। स्वयं सेवा बहुत जरुरी है अगर किसी और की या औरों की सेवा करनी है। वो क्या है न-
अक्ल कहती है दुनिया मिलती है बाज़ार में ,
दिल मगर ये कहता है कुछ और बेहतर देखिये।
तो बस यूँ समझ लो की दिल की सुन लेता हूँ और स्वयं से सम्पर्क स्थापित करने , उसको सुचारु रूप से चलने देने के लिए , खुद से मुलाक़ात करने के लिए यहां आता हूँ। प्रकृति के साथ भी अपना सामंजस्य खूब बैठता है।
बात करते करते दोनों कितनी दूर निकल आये ये पता ही नहीं चला। जब तक कानों में मंदिर से आ रही आरती की आवाज़ नहीं पड़ी।
लेकिन गंगा आप से ईर्ष्या होती है।
मुझसे !!! वो भला क्यों ?
ये जगह जहां आप रहती हैं , ये हरे भरे पहाड़, ये चीड़ के पेड़ों के जंगल, ये बुरांस के फूलों के जंगल , वो देख रही हो झरना , और ये गदेरा !!!! कुदरत ने दामन भर दिया है।
जिंदगी cause and effect ही है या इन्हीं पे चलती है।
क्योंकि बादल आये इसलिए बारिश हुई।
क्योंकि उसने बुरा किया इसलिए उसका बुरा हुआ।
दुनिया में आये हैं तो जीना ही पड़ेगा।
नहीं गंगा मैं २ महीने से मंदिर में रह रहा हूँ तो इसलिए नहीं मैं किसी चीज़ से भाग रहा हूँ या भाग कर यहाँ हूँ। ऐसा नहीं है। शहर की भाग दौड़ , जिम्मेदारियों का बोझ , कुछ इधर की कुछ उधर की इन सब के बीच हम खुद को खो देते हैं हाँ सच में हम खुद को खो देते हैं. हम ये भूल जाते हैं की हम भी कुछ हैं , हम को अपने लिए भी जीना चाहिए। खुद को भी वक़्त देना चाहिए। स्वयं सेवा बहुत जरुरी है अगर किसी और की या औरों की सेवा करनी है। वो क्या है न-
अक्ल कहती है दुनिया मिलती है बाज़ार में ,
दिल मगर ये कहता है कुछ और बेहतर देखिये।
तो बस यूँ समझ लो की दिल की सुन लेता हूँ और स्वयं से सम्पर्क स्थापित करने , उसको सुचारु रूप से चलने देने के लिए , खुद से मुलाक़ात करने के लिए यहां आता हूँ। प्रकृति के साथ भी अपना सामंजस्य खूब बैठता है।
बात करते करते दोनों कितनी दूर निकल आये ये पता ही नहीं चला। जब तक कानों में मंदिर से आ रही आरती की आवाज़ नहीं पड़ी।
लेकिन गंगा आप से ईर्ष्या होती है।
मुझसे !!! वो भला क्यों ?
ये जगह जहां आप रहती हैं , ये हरे भरे पहाड़, ये चीड़ के पेड़ों के जंगल, ये बुरांस के फूलों के जंगल , वो देख रही हो झरना , और ये गदेरा !!!! कुदरत ने दामन भर दिया है।
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