सेवक काका , हँसी मजाक अपनी जगह लेकिन मुझको ऐसा कुछ भी महसूस नहीं हुआ इसके उल्टे मुझे तो बहुत शांत जगह लगी वो।
ठीक है आनंद बाबू , आप लोग शहर के पढ़े लिखे लोग हैं , आप ज्यादा उचित समझते हैं। अच्छा मुझे आज्ञा दीजिये। राम - राम गंगा बिटिया।
और सेवक काका सीधे जा कर दाएं मुड़ गए।
अच्छा गंगा , अब मैं भी चलूँगा।
अरे घर जाने का तय हुआ था और खाना वही खा कर आप जाएंगे। ये गंगा का आग्रह था या आदेश , आनंद यही नहीं समझ पा रहा था। यदि ये आग्रह था तो इतना वास्तविक था कि उसको मना करने का साहस नहीं था और यदि ये आदेश था तो एक अधिकारपूर्ण आदेश था।
आनंद गंगा की तरफ देखता रहा फिर कहा - इस सादगी पे कौन न मर जाए ए ख़ुदा , लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं।
अच्छा तो जनाब शायरी में भी दखल रखते हैं।
नहीं दखल - वखल कुछ नहीं , बस ऐसे ही कुछ याद रह जातीं हैं.
पढ़ना -पढ़ाना आपकी हॉबी है क्या ? आनंद का सवाल
हाँ , मुझे अच्छा लगता है। क्योंकि आजकल के समय में यह एक आदत है जो हमको टाइम पास के साथ - साथ मेंटली enrich कर देती है , ऐसा मेरा सोचना है। क्या ऐसा नहीं है?
नहीं - नहीं मैं इत्तेफाक रखता हूँ आपसे और यह बहुत सही एप्रोच है। लेकिन एक बात है गंगा।
क्या?
आजकल हम सब में - बच्चे , बूढ़े और जवान सब किताबों से पढ़ने की आदत से दूर होते जा रहे हैं और ये मेरे लिए एक चिंता का विषय है।
सो तो है।
क्या हम इस आदत को वापस लाने का प्रयत्न कर रहे हैं ? या कर सकते हैं?
आनंद , बहुत माक़ूल बात है और बहुत माक़ूल सवाल। लेकिन इस इंटरनेट ने किसी को अछूता नहीं छोड़ा है। ये तो मानते हैं न आप।
न मानने का तो प्रश्न ही नहीं है, गंगा। लेकिन एक बात कहूं - इंटरनेट पे लोग भगवान् के दर्शन भी कर सकते हैं, on line दान दक्षिणा भी दे सकते हैं, भजन कीर्तन भी सिन सकते हैं और यदि समय हो तो यू tube पर उसको चल कर उसमें शिरकत भी फरमा सकते हैं। है न?
हाँ वो तो है।
लेकिन फिर भी भगवान् दर्शन के लिए मंदिर ही जाते हैं चाहे कितनी दूर हो या कितना पास। ऐसा क्यों?
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