Tuesday, January 21, 2020

 तो आप भी यहीं रह जाइये , गंगा का एक मासूमियत सा जवाब।

जी रह तो जाता लेकिन वहशीं को सुकूँ से क्या मतलब, जोगी का नगर में ठिकाना क्या। 

ओह तो आप जोगी हैं !!

अरे जोगी जी धीरे - धीरे , सामने पड़े बड़े से पत्थर से बचने की सलाह देते हुए गंगा ने आनंद से इक ठिठोली की। 
आनंद  गंगा की तरफ देखा कर मुस्करा पड़ा। 

O , hello श्रीमान जोगी जी ऐसा क्या कह दिया मैंने जो श्रीमान को हंसी आ गयी।  भलाई का तो ज़माना ही नहीं रहा , बाई गॉड। 

अरे नहीं गंगा जी !!!

क्या नहीं गंगा जी ! हमारी समझ में नहीं आता है क्या? ये शहर वाले पता नहीं अपने आप को क्या समझते हैं ! अपने आप को क्या समझते हैं, मेरी बला से लेकिन हम लोगो को बेवकूफ जरूर समझते हैं।

तुम रायते की तरह फ़ैल क्यों रही हो।  गंगा की भाषा में आनंद ने गंगा से पूछा। 

तो आप हँसे क्यों ?

अरे तो हँसना अपराध हो गया , उईईई मेरी अम्माँ। 

आनंद के इस जवाब पर गंगा हंस पड़ी। 

गंगा आप कब से इस स्कूल में पढ़ा रहीं हैं ?

२ साल हो गए। 

सरकारी स्कूल है ?

जी।  कौन अम्बानी या अडानी यहाँ  स्कूल खोलेगा ?

हम्म्म्म ये तो है।

लेकिन पढ़ना पढ़ाना मुझे अच्छा लगता है , एक सुख की अनुभूति देता है ये पेशा मुझको।  मैं जब किसी बच्चे को देखती हूँ तो ये विचार कौंधता है मेरे ज़हन में कि मैं इसकी भविष्य की निर्माता हूँ।  वो ठीक है हर बच्चा अपनी किस्मत लेकर आता है , वो स्वयं ही भविष्य का  है लेकिन जिस उम्र उसके मां -बाप स्कूल में हमारे पास छोड़ के जाते हैं तो उनकी भी कुछ तो उम्मीदें होती होंगी।  कुछ तो सपने होते होंगे उनके भी।  और उस उम्र का बच्चा कच्ची मिटटी की तरह होता है , जिस रूप और आकार में गढ़ दो , वो वैसा ही बन जायगा। 

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