Friday, January 24, 2020


हम्म्म , बात तो आप ठीक कह रहे हैं। 

हां और मेरी बड़ी तमन्ना है गंगा की हमारे बच्चे पढ़ने की आदत डालें। 

बात तो सही है आनंद लेकिन एक बात है।

क्या ?

वातावरण , घर का वातावरण , परिवार का वातावरण।

हम्म्म , सही है गंगा , वातावरण तो मुख्य है।  तो क्या करें बताओ।

लीजिये घर आ गया।  आइये अंदर आइये।

आ गयी बेटी तू।  गंगा की माँ का स्वर।

हाँ माँ , इनसे मिल।

अरे आनंद जी।  माँ जी का स्वर पुन:

अब तू पूछेगी अरे माँ  तू जानती है इन्हें।  है न।

हाँ वो तो स्वाभाविक है। तू जानती है इन्हें ?

और आनंद जी आप भले ही कुछ बोल या पूछ न रहे हों लेकिन बेटा तेरी आँखें यही पूछ रहीं हैं। 

बैठ। 

गंगा और आनंद दोनों बैठ गए। 

माँ तू कैसे जानती है ?

अरे ये पुराने वाले शिव मंदिर में रहते हैं।  हैं न आनंद।

हाँ माँ जी। 

अरे इतनी हैरान परेशान करने वाली कोई बात नहीं है।  मंदिर के पास जो हाट लगती है , वहाँ गयी थी तो रामेसर की बहु भी साथ थी।  उसका बेटा पढ़ने जाता है इनके पास। उसी ने बताया था , हाट करने के बाद वो सुनील को लेने मंदिर गयी इनके पास तो मैं  भी साथ थी , वही देखा था।  मधु बता रही थी की बस ध्यान में बैठे रहते हैं।  कई दिन तो उसने  खाना भी भिजवाया है।  स्वामी जी को।  माँ हँस पड़ी। 

हाथ मुंह धो ले चाय बन गयी है। 

चाय !! अभी तो घर में घुसे १० मिनट भी न हुए तूने चाय भी बना ली !!!

हाँ मुझे मालूम था की तुम लोग आ रहे हो। 

अच्छा !!! अब ये किसने बताया तुझे।  गंगा का सवाल माँ से।

सेवक राम जी ने बताया होगा , जवाब आनंद का

सही जवाब ! माँ की स्वीकारोक्ति।

तीनो खिलखिला के हँस पड़े।  
  
 ले चाय ले।  तू गिलास में चाय पी लेगा न?

जी शौक से।

माँ कुछ खाने को लेने चौके में चली गयी।

आनंद हमारे यहां पहाड़ में तू करके बात करते हैं।  इसलिए बुरा न मानियेगा माँ आपको तू कह के सम्बोधित कर रही हैं। 

जी नहीं मानूँगा। बिलकुल नहीं मानूँगा , कतई नहीं मानूँगा। लेकिन आप की जानकारी के लिए बता दूँ कि मेरी पैदाइश पहाड़ की है और schooling भी।  अत: हे गंगे मुझे पहाड़ संस्कृति , रीति - रिवाज़ थोड़े बहुत पता हैं। 


No comments: