अरे बातों बातों में वक़्त कितना निकल गया पता ही नहीं चला। घड़ी देख चौंकते हुए आनंद ने कहा। बिजली चमक रही है लगता है बारिश होने को है। अब चलूँगा। माता जी अभी आज्ञा दीजिये आप भी गंगा। और हाँ सेवक काका से कह दीजियेगा मंदिर में भूत नहीं मैं रह रहा हूँ फ़िलहाल।
एक ठहाका सबका।
भूत कैसा भूत ? माता जी का स्वाभाविक सा सवाल। स्वाभाविक यूँ कि उनको पिछली बातों का ज्ञान न था जो सेवक काका से हुई थीं , यहाँ आते वक़्त।
गंगा ने साड़ी बातें संक्षेप में माता जी को बता दीं।
अरे वो मुआ किस भूत से कम है। माता जी सीधा सा संवाद।
आनंद घर से निकल पड़ा १०० कदम भी न गया होगा की पीछे से किसी ने कंधे पर हाथ रखा।
कौन है !!!
मुड़कर देखा तो गंगा। डर गए न। लीजिये छाता लेते जाइये बारिश के आसार हैं और हाँ वापस देने खुद ही आइयेगा।
छाता ले आनंद चल पड़ा आगे। वो इतना तेज चल रहा था की जैसे वाकई डरा हुआ हो।
अरे आनंद बाबू !!! एक स्वर कानों से टकराया।
दाईं तरफ मुड़ के देखा तो किशोर था। किशोर माने पान की दूकान वाला।
अरे किशोर तुम यहां। आज दूकान बंद है।
हां बाबू आज जल्दी बंद कर दी मौसम खराब है कहीं झड़ी लग गयी तो घर तक पहुंचते पहुँचते छपर छपर हो जायेगी हालत। जेब से चुरुट का पैकेट निकाल कर आनंद से कहा " लो बाबू आज शाम आप आये नहीं और मुझे जल्दी निकलना था, सो सोचा की मंदिर जा कर दे दूँ , वहां पता चल की आप गंगा बिटिया के साथ गए हो, सो इधर से निकल रहा था की कहीं रास्ते में टकरा गए तो डिब्बी आपको दे दूँ।
अरे किशोर इतनी तकलीफ उठाने की क्या जरुरत थी? भाई तकलीफ के लिए माफ़ी।
अच्छा दखो बूंदाबादी शुरू हो गयी है। तुम भी चलो और मैं भी। और हाँ इसके पैसे कलआकर दे दूंगा।
ठीक है बाबू।
मंदिर के बरामदे में पहुँच कर घड़ी देखी अरे बाप रे २५ मिनट लग गए। दूर तो है।
कुर्ता उतार खूंटी पे टांग दिया और लालटेन की लौ थोड़ी बढ़ा दी। आनंद दीवार का सहारा ले मंदिर के बरामदे में बैठ गया और बारिश देखने लगा। हवा में झूमते चीड़ के पेड़। एक अजीब सा उल्लास , एक अजीब सी ख़ुशी। लेकिन सब कुछ सुंदर बहुत सुंदर। पहाड़ों में अन्धेरा जल्दी हो जाता है रात देर से होती है। पहाड़ खींचते हैं आनंद को अपनी ओर। वो यहाँ आता है अपने आप से भाग कर नहीं। कहीं आप ये राय न बना लें कि अपने आप से भागकर , जिम्मेदारियों से भाग कर यहाँ रह रहा है। न ऐसा कुछ नहीं है।
टाइम ज्यादा नहीं हुआ था करीब ८:३० बजे थे बारिश भी धीमी हो चली थी।
आनंद बाबू ऊपर वाले ने आज खाना तो अच्छा खिलवा दिया लेकिन चाय का इंतज़ाम तो खुद ही करना पड़ेगा प्यारे। वो उठा और चाय बनाने के लिए चूल्हा जलाया , पानी भी चढ़ा दिया। चाय का गिलास लेकर वो फिर बरामदे में आकर बैठ गया।