चुप रहो.... सुंदर लाल. तुम को पता है तुम क्या कह रहे हो?
हाँ भाई साहब .... पता है और पूरे होशो-हवास मे आप से ये कह रहा हूँ. आप से ही सीखा है... जो तुम्हारी बुराई करो... उनकी खुशी के लिए प्रार्थना करो.
लेकिन ये क्या वसीयत है तुम्हारी..... मैने एक पेज उसके आगे रखा.
ये मेरी वसीयत है.... मेरे पास और तो कुछ नहीं है...... लेकिन मेरी दिल से ईश्वर से ये प्रार्थना है की मेरी ये वसीयत आप अमल मे ले कर आयें.
मै तुम्हारी वसीयत पढ़ सकता हूँ....... मेरी सुंदर लाल से दरख्वास्त.
जी.... आप को दरख्वास्त करने की जरुरत नहीं है.
" मै सुंदर लाल , अपने पूरे होशो-हवास मे, एक विनती करता हूँ की मेरे ना रहने की खबर , निम्नलिखित शाख्स्यितों को १ किलो मिठाई की डिब्बे के साथ दी जाएँ और इस बात के भी इत्मीनान कर लिया जाए की उनको कोई तकलीफ नहीं है.
१. श्री और श्रीमती राजगोपाल यादव.
२. जीतेन्द्र और श्री कृष्णराम
३. श्री सत्यनारायण चतुर्वेदी.
४. श्रीमती....... अरे क्या उनका नाम है........
श्री सत्यनारायण चतुर्वेदी साहब को sugarfree से बनी मिठाई दी जाए, ताकि वो इस ख़ुशी से वंचित ना रह जाएँ. "
......... ये क्या है... सुंदर लाल??? मेरा अटपटा सा सवाल....
यही मेरी वसीयत है.... जो मै आप के पास रखवाना चाहता हूँ.
वो तो ठीक है... लेकिन ऐसी अटपटी से वसीयत क्यों...?
सुंदर लाल..... कहीं खो गया......थोड़ी देर बाद बोला........
मेरे पूजन आराधन को, मेरे सम्पूर्ण समपरण को, मेरी कमजोरी कह कर मेरा पूजित पाषण हंसा, तब रोक ना पाया मै आंसू, जब दृगजल मे परिवर्तित हो, मुझ पर मेरा अरमान हंसा, तब रोक ना पाया मैं आंसू.
रात भर शहर की दीवारों पर गिरती रही ओस,
और सूरज को समुंदर से ही फुर्सत ना मिली.
सुंदर लाल..... मेरे स्वर मे कुछ नमी...ये है दुनिया यहाँ, कितने अहदे वफ़ा बेवफा हो गए देखते देखते....... उनके लिए क्यों दुखी होना.......
भाई साहब..... जिन पत्थरों को हमने अता की थीं धडकने, वो बालने लगे तो हमी पर बरस पड़े......
लेकिन मै निराश या दुखी नहीं हूँ..... मेरे हाँथो से तराशे हुए पत्थर के सनम, मेरे ही सामने भगवान् बने बैठे हैं.
ये दुनिया है.... सुंदर लाल..... यहाँ यही चलन है.
आप को सब पता है...... भाई साहब......
हाँ सुंदर लाल..... सब जानता हूँ. जिन जिन लोगों को तुमने मिठाई देने की बात लिखी है..... मैं उनको भी जानता हूँ.
भाई साहब..... मै सिर्फ इसलिए चुप हूँ....... की मुझको ये सिखाया गया की जिस को प्यार करो उस पर ज़िन्दगी कुर्बान कर दो........
सुंदर लाल...... तुम क्या समझते हो..... की जिस ने भी तुम्हारा ये हाल किया है..... वो आराम से होगा???????
मै नहीं जानता भाई साहब.....
मै जिस के हाँथ मे एक फूल दे के आया था,
उसी के हाँथ का पत्थर मेरी तलाश मे है......
मै तो ईमानदार था.
यहीं पर तो तुम गलती कर गए.
आप ही ने सिखाया था.....
मेरे दोस्त....कई चीजें मै बताता हूँ.... पर वो सिर्फ मेरे लिए होती हैं...... दर्द से मेरा पुराना रिश्ता है. उसको मेरे लिए छोड़ दो.
लेकिन आप मेरी वसीयत को तो अमल मे लायेंगे, ना?
तुम मुझे असमंजस मे डाल रहे हो... सुंदर लाल.
कोई असमंजस नहीं भैया.....
मे जो ख़ुशी अपने जीते जी नहीं देख पाया.... वो मेरे बाद उनको मिले.... यही दुआ है. मै सिर्फ इतना अर्ज़ करना चाहता हूँ..... की आज भी, इस घोर कलयुग मै भी......अगर कोई किसी से कहता है की मै तुम्हारे बिना नहीं जी सकता तो उसको, इस बात पर यकीन करना चाहिए.
लेकिन आप ने मुझे एक गलत बात सिखा दी.... भाई साहब????
वो क्या......?
आप ने कहा था की प्यार जब हद से बढ़ जाता है तो या वहशत बन जाता है , या पूजा. और मैने अपने प्यार को पूजा मै बदल लिया और उसका अंजाम.........
जिन पत्थरों को हमने अता की थीं धडकने, वो बालने लगे तो हमी पर बरस पड़े......
ये मेरी गलती है , सुंदर लाल.
नहीं भाई साहब , ऐसा ना कहिये.
आप ने तो प्यार करना सिखाया था ......... सौदा करना नहीं.
4 comments:
वसीयत पढ़ ले इक बार
फिर ज़िन्दगी में कोई वसीयत नहीं करेगा
शायद इन्सान इन्सान बन जाएगा
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (25/10/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
Vandana ji.... housla aafzai ke liye shukriya.
जिन पत्थरों को हमने अता की थीं धडकने, वो बालने लगे तो हमी पर बरस पड़े......
bahut sundar likha hai
vishist vasiyat!
जीवन को और प्रेम को जो इस तरह से ले ले...तब तो फिर कोई बात ही न बचे...
तू मुझे कांटे दे...पर मैं तो फूल ही दूंगा...इस फलसफे को कितने लोग जीवन में उतार पाते हैं ???
भावपूर्ण सुन्दर कथा रची आपने..
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