उंगलियाँ जलती रहीं और हम हवन करते रहे..... कितने मजबूर होंगे वो...... जो खुद को जलाते रहते होंगे ताकि दूसरों को रौशनी मिलती रहे. और उपर से ये शर्त और भी है जमाने वालों की .... मुस्कराते रहो. काश !!! किसी को तो भगवान् ने दिल चीर कर देखने की ताकत दी होती. कोई देखता तो की उंगलियाँ जलती रही और हम हवन करते रहे का मतलब क्या होता है. धोखे पे धोखा, बेवफाई पे बेवफाई , चोट पे चोट...... और फिर भी मुस्कराने का कलेजा.......
फस्ले-गुल आई तो फिर एक बार असीराने-वफ़ा, अपने ही खून के दरिया में नहाने निकले.
1 comment:
बस यही कोई नही जान पाता दर्द का सैलाब बह रहा होता हैकहीं और कहीं जश्न मनाये जाते रहते हैं किसी की आहों की चिताओं पर्……॥
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