Saturday, October 23, 2010

हे नाथ, तू ही मनुष्य जीवन का ध्येय है

बहुत बैचनी है इन दिनों. कुछ समझ मे नहीं आता की क्या बात है, क्यों ये बैचनी. कुछ अधूरा सा लगता , कुछ पाने की तमन्ना , एक रिक्तता अपने अंदर महसूस करता हूँ....... तुम सुन रहे हो ना..... कभी कभी मन करता है की परिव्राजक बन जाऊं और निकल पडून उसे खोजने जिस की कमी मै महसूस करता हूँ, जिस से मिलने को मन व्याकुल है, जिस के पास जाने के लिए मेरा अंतर मुझे अपने आप से बगावत करने पर मजबूर कर रहा है........

कहीं मेरी हालत उस हिरन जैसी तो नहीं... जिसके नाभि मे ही कस्तूरी होती है , लेकिन वो उसकी खुशबू मे पागल हो कर उसको जंगल - जंगल ढूंढता रहता है. पता नहीं...... मुझे कुछ समझ मे नहीं आता. मेरा मन सम्पूर्णता चाहता है..... या तो इस दुनिया मे या तो उस दुनिया , लेकिन सम्पूर्णता. आधी अधूरी....ज़िन्दगी..... ना और नहीं......

कहते हैं.... ईश्वर जिसको चाहता है..... उसको कोई चीज़ पूरी नहीं देता. अगर वो पूरी दे देगा.... तो शायद .... हम उस तक ना पहुँच पायें.... ऐसी मेरी सोच है. उसने सब कुछ दिया..... जितनी मेरी जरुरत है.... उससे ज्यादा दिया.....जितना के मै काबिल हूँ... उससे ज्यादा दिया......लेकिन फिर भी .......... अब मै तेरे पास आना चाहता हूँ.
हाँ.... तेरे पास. जहाँ ना कमी है... ना भरपूर. जहाँ ना अच्छाई है, ना बुराई. जहाँ ना रात हो, ना दिन. जहाँ ना ये हो, ना वो. वहाँ पर बस.......ज़िन्दगी हो.

कुछ तो अंदाजा लग रहा है मुझको..... आजकल मै दिल और दिमाग, इस दुनिया और उस दुनिया के बीच मे फंसा हुआ हूँ.   दिमाग पूरी ताकत लगा कर मुझको इस दुनिया के आकर्षणों मे खींच लाने को आमादा है.... तो दिल अंदर से चीख चीख कर मुझे सावधान करता रहता है. दिमाग पल भर के आनंद की वकालत करता है, तो दिल शाश्वत आनंद की तरफ मुझे ले जाना चाहता है. दिमाग कहता है.... तू है..... दिल कहता है..... तू वो नहीं है.... जो तुझे होना चाहिए.

जैसे सांप अपनी केचुल छोड़ता है, उसी तरह मुझे भी ये केचुल छोडनी है....... तो साथ क्या जाएगा......जो पल तेरी याद मे गुजर रहे हैं... वही तो मै जी  रहा हूँ..... बाकी तो मैने समय नष्ट ही किया है....... जी हाँ. जो समय उसके साथ गुजरे (मै उसको महबूब कहता हूँ) , वही तो जिए हैं मैने. उन पलों मे, सब कुछ वैसा ही तो बीता था, जैसा मे चाहता हूँ....... तो फिर ये अंतर्द्वंद क्यों........ जब राह दिख रही तो आगे बढ़ो , मंजिल पर पहुँचो और पा लो उसे...... वो भी तो तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहा है.

तुम तो सब जानते ही हो...... हे नाथ, तू ही मनुष्य जीवन का ध्येय है. हमारी इच्छाओं की गुलामी ही हमारी उन्नति मे बाधक है. तू ही हमारा एक मात्र स्वामी और इष्ट है, बिना तेरी सहायता तेरी प्राप्ति असंभव है........... बिना तेरी सहायता....... जानकीनाथ.  जानकी पूत.

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