Thursday, October 28, 2010

पंछी ऐसे आते हैं.....

कितने हंसमुख थे..... बात  बात पर शेर, बात बात पर चुटकुला... और कितने रंगीले इंसान और अब खामोश. अच्छी नहीं लगती चुप्पी तुम्हारे चेहरे पर..... हंसो .... खूब हंसो.... मुझे तुम्हारी हंसी सुननी है.. मै तो पागल हो गयी हूँ.... किस से बात कर रही हूँ...?

दीदी, दीदी.....

क्या हैं..... हांफ क्यों रही है...... बाबा तो ठीक  हैं...?

हाँ.... सब ठीक है..... फ़कीर आया है....

आया है नहीं .... पगली आयें हैं... बोलते हैं... तुझ से बड़े हैं की नहीं.....

हाँ दीदी.... मुँह से निकल गया.

कहाँ हैं...... फ़कीर.

मंदिर मे हैं..

अच्छा..... तो तू मुझे क्यों बताने आई है.....

पता नहीं दीदी.... जो मुझे लगा अगर वो बोलूं तो आप मारोगे....

अच्छा..... क्या लगा तुझे बता तो...

दीदी, मुझे ये महसूस हुआ की आप से फ़कीर की तरफ कोई लो जाती है. अब इस का मतलब ना पूंछना , जो लगा सो बोल दिया.... हाँ.

मै कुछ देर उसका चेहरा देखती रह गयी. शायद इसकी संवेदनशीलता , हम सब से ज्यादा है.

आप आओगे ना मंदिर.... , दीदी.

क्या जवाब दूँ इसको..... सोचने लगी मैं.

ठीक तो हैं ना तेरे फ़कीर..... मैने बात को मोड़ने के लिए पूंछा.

उपर से तो ठीक ही लगते हैं.....

अच्छा... तुझे  उपर का और अंदर का बड़ा अंदाज है. दादी माँ जैसी बात ना किया कर.

वो चली गयी...... मुझे उहापोह मे छोड़कर.

जाऊं.... ना जाऊं..... लेकिन एक बार सब कुछ जान ने का मन तो है.... की आखिर हुआ क्या....?

मैं मंदिर चल पड़ी...... आज तो तय कर लिया था की सब कुछ उगलवा लुंगी.... विश्वास था. क्योंकि वो किस तपस्वनी की बात कर रहे थे..... मैं जानती हूँ. मेरी बात वो टालेंगे नहीं या टाल पायेंगे नहीं...... ये विश्वास था.

कब मंदिर आ गया .... पता नहीं चला. दोपहर का वक़्त... मंदिर मे कोई ख़ास हलचल नहीं.... पंडित जी शायद आराम कर रहे थे....

दीदी............... मै जानती थी आप आओगे..... अंजलि बच्चों.... की तरह खुश थी.... जैसे ... फ़कीर नहीं... उसका अपना ही कोई आ गया हो.

लो वो फ़कीर ..... बरगद के नीचे बैठे हैं..... मैं आप के लिए पानी लाती हूँ...... और बिना मेरे जवाब का इंतज़ार लिए.... भाग गयी.

मैं क्या करूँ....... वो बरगद के नीचे ध्यान मे.....

मै वहीं जा कर बैठ गयी...... शायद..... उनका ध्यान भंग हुआ...... और उन्होंने आँख खोली..... मुझे सामने देखा ....... तो शांत..... कोई हलचल नहीं, शांत.

कैसी  हो.......तपस्वनी? शांत सा सवाल.

ठीक हूँ..... आप कैसे हो, ये क्या हाल है, कहाँ थे, सब लोग कहाँ हैं.....ये फ़कीर क्यों.... सवालों की झड़ी मेरी तरफ से.

हलकी सी मुस्कान के साथ बोले..... सब ठीक हैं. माता-पिता जी अब नहीं हैं. भाई - बहन सब अपने अपने परिवारों के साथ सुख से हैं.

और आप.....

मैं आप के सामने हूँ..... स्वस्थ हूँ.

दीदी या  भाईसाहब, भाभी  , किसी ने चिंता नहीं करी की आप कहाँ हो?

सब सुख से हैं ना.... और क्या चाहिए. हम जिस को प्रेम करेती हैं... वो सुख से होना चाहिए.

अरे..... मैने तो पूंछा ही नहीं..... आप सुख से हैं ना..... फ़कीर का सवाल.

हाँ..... सुख से हूँ. यही सुनना चाहते हैं, ना आप. मुस्कराओ  मत.....क्यों सब कुछ छोड़ दिया.....

कहाँ छोड़ दिया..... अगर छोड़ दिया होता तो इस गाँव मे क्यों आता...? मै पंछी  हूँ..... अब कोई बंधन नहीं.....
तुमने २२ साल तपस्या करी .... मुझे  तो अभी बहुत  आगे , बहुत दूर जाना है...... देखो पंछी ऐसे आते हैं..... और खुश रहना. मै आज धनुषकोटि जा रहा हूँ......

बता रहें हैं या आज्ञा मांग रहे हैं.....

आज भी तुम्हारी वाक्पटुता का जवाब नहीं है...

अच्छा ....... कहीं घर नहीं बनाया.... कहाँ रहते हैं?

घर.......? सब कुछ जान कर ऐसा प्रश्न , क्या सार्थक है?

देखो  मैं, सब कुछ छोड़ कर, परिव्राजक  बन चुका हूँ.....अब घर , रिश्तों की बाते बेमानी लगती हैं.....

तबियत कैसी रहती है, अब आपकी....?

जेहि विधि raakhey  राम, तेहि विधि रहिये.

क्या मेरा कसूर था.....

नहीं.... इस दोष के साथ मत रहना. किसी का दोष नहीं. अच्छा लगा तुमसे बात करके.

भाई-बहन के साथ सम्बन्ध हैं.....? किसी को पता है की आप कहाँ है.....

एक गहरी सांस....... देखो.... माता-पिता एक वृत्त की तरह होते हैं.... जब वो नहीं होते तो वो वृत्त , जो सब को बाँध के रखता था, खत्म हो जाता है. सब अपनी-अपनी दिशा पकडते हैं... वो भी इतनी जल्दी... की जैसे इंतज़ार कर रहे हो.

यहाँ कब तक हो....?

पता नहीं.....

जेब मे कुछ पैसे हैं....मै आप को जानती हूँ, इसलिए पूंछ रही हूँ. बुरा ना मानियेगा.

नहीं.... मै बुरा क्यों मानूंगा...?

आप कितने लापरवाह हैं, मालूम है. किसी को देना होगा तो पैसे का इंतजाम कर के भी उसकी मदद करेंगे, लेकिन खुद के लिए....... कुछ खाने - पीने का हिसाब है....?

पैसे की जरुरत नहीं रहती. तपस्वनी, जो मिल जाता है..... अच्छा है.

इतने साल से घूम रहे हो.... कहीं तो ठिकाना बनाया होता.....

तुम जब इस तरह के सवाल करती हो तो मै क्या जवाब दूँ....?

अच्छा तुम जाओ..... शाम हो रही है...... मेरी चिंता ना करना. जाते जाते आज एक शेर की मांग नहीं करोगी......

इंतज़ार कर रही हूँ.....

जहाँ मैं कैद से छुटू , कहीं पर मिल जाना,
अभी ना मिलना अभी ज़िन्दगी की  कैद मे हूँ.

अपना ध्यान रखना... और आते रहना .... क्या कसम उठाओगे.....?

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