Saturday, October 23, 2010

चरित्रहीन-2

पापा सुंदर लाल अंकल  आये हैं.... बिटिया ने दरवाजा खोल कर बोला.

अंदर बैठा दो.....

नमस्ते सुंदर लाल.... काफी दिन बाद नज़र आये.

हाँ भाई साहब .... थोड़ा व्यस्त था. इनसे मिलिए. ये हैं नरपत प्रसाद मिश्रा, संकटा प्रसाद चौरसिया, बसेसर सिंह.

आप सभी का स्वागत है.... आज मेरी कुटिया पर एकदम से धावा.......?

सुंदर लाल..... नहीं एक दम से नहीं..... काफी दिनों से मै सोच रहा था कि इन लोगों कि मुलाकात आप से करवा दूँ.... लेकिन कमबख्त वक़्त इज़ाज़त नहीं दे रहा था. आज अम्बेडकर जयंती कि छुट्टी थी तो आज निकल पड़ा.

अच्छा लिया..... अरे बिटिया .... जरा गुड़ और पानी तो लाना.

लाई पापा......

बोलिए मै क्या कर सकता हूँ.....

नरपत..... भाई साहब , हम सब बगावत करने के मूड में हैं......

अरे अरे..... क्या हुआ भाई.......?

गाँव कि चोपाल ने एक निर्णय दिया है , जिस से हम मे से कोई खुश नहीं है.....

कौन सा निर्णय ....... ?

संकटा..... लो आप ही नहीं जानते....

नहीं भाई..... अगर जानता तो पूँछता  क्यों.... क्या मेरे खिलाफ या मेरे बारे मे कोई निर्णय......? मैने हंसते हुआ पूंछा.

पल भर सन्नाटा......

सुंदर लाल....... भाई साहब क्या आप को वाकई नहीं पता..?

किस बारे मे भाई......?

मुखिया ने आप के खिलाफ फतवा जारी किया है........नरपत का जवाब.

किस बारे में..... सच बोलूं तो मुझे  ये भी पता नहीं है कि पंचायत मे है कौन कौन.

सुंदर लाल..... रामकृष्ण प्रसाद, सत्यनारायण गुप्ता, राजगोपाल सिंह, पद्दू, जीतेन्द्र ,  श्रीमती....


अच्छा - अच्छा..... तो फतवा किस बात पर..? क्या फतवा है.... ये बाद मे बताना......

हमारे समाज के एक अभिजात्य वर्ग ने पांचो से शिकायत करी कि आप प्यार का पैगाम बाँटते हैं......

कोई नया फतवा नहीं जारी किया.... सम्मानीय पंचों ने.....

सम्मानीय................. बसेसर का खीज भरा स्वर.

हाँ भाई......

भाई..... क्या आप सब लोगों को पता था कि में कहाँ रहता हूँ? मेरा सभी अतिथियों से सवाल?

नहीं.... सब का एक जवाब. सिर्फ सुंदर लाल जी को ही पता था कि आप कहाँ रह रहे हैं...... ये इलाका तो गाँव के जंगल मे गिना जाता है...... वही तो हम सब को लाये हैं.

सुंदर लाल.... तुमने  इन सब लोगों को बताया नहीं....?

देखो भाई लोगों.... आज आ गए हो..... लेकिन दुबारा ना आइयेगा....कीचड मे पत्थर मारोगे तो छींटे आप के दामन पर ही आयेंगे.....

कई साल पहले.... मुझे चरित्रहीन करार दे दिया गया था. हाँ .... लोगों कि ये शिकायत सही है कि मै प्यार बाँटता हूँ.... मै क्या करूँ.... जिसके पास जो होगा , वही तो देगा.....

नरपत...... तो आप ने आवाज़ क्यों नहीं उठाई.....

देखो भाई नरपत...... जीवन मे एक समय  होता है , जब हम कुछ भी बर्दाशत कर लेटया हिन्... और ईंट का जवाब पत्थर से देने का हौसला भी रखते हैं...... ये जो तीन बच्चे देख रहे आप..... इनको पहचानते है....

नहीं......

रमेश और इम्तियाज़ को तो जानते ही होंगे.....

हाँ- हाँ.... रमेश मोची और इम्तियाज़ ..... वो भडभूजा....

जी हाँ.... गाँव मे जब हंगामा हुआ था राम - रहीम के नाम पर तो इन बच्चों के परिवार मे कोई नहीं बचा था... अभिजात्य वर्ग आया था..... पूरी और सड़ी हुई सब्जी के दो चार पकेट दे गया था , और दो कम्बल...... अभिजात्य वर्ग था.... तो टीवी वाले भी आये थे, फोटो वगैरह भी खींची थी.....

मैने अपने पंच श्री राजगोपाल सिंह जी से पूंछा कि इन बच्चों......

अरे- अरे बड़ा बुरा हुआ....... इन बचों.... के साथ.... देखो हम लोग प्रयत्न करेंगे कि सरकार कि तरफ से कोई रहत आ जाए.... ( वो यह  भूल गए कि राहत तो आ चूकी, उसी रहत से नया ट्रक्टर आया था) खैर.....

तब से ये तीनो बच्चे  मेरे साथ रहते हैं...... ईश्वर कि देन हैं.

अरे इंदिरा..... यहाँ आओ.... मैने बड़ी वाली बिटिया को बुलाया.

हाँ... पापा....

जाओ... जरा मुन्नी और रहमान को बुला लाओ...

जी अभी बुलाती हूँ......

ये बड़ी बिटिया है...... जिसका जो नाम था , वही है... मैने अपनी सहूलियत के लिए किसी का नाम नहीं बदला.

आओ.... बच्चों.... ये है इंदिरा..... ये आंठ्वी मे पढ़ती है, ये है मुन्नी ,. ये छठी मे पढ़ती है और ये हैं हमारे रहमान साहब , ये तीसरे मे पढते हैं.....

जाओ... जा कर अपना काम कर लो....... देखो कल स्कूल से कोई शिकायत ना आये....

जी  अब्बा.... रहमान ने बड़ी जिमेदारी से जवाब दिया.... और हवा कि तरह तीनो वहाँ से रफू चक्कर हो गए.

 बड़े प्यारे बच्चे  हैं..... संकटा की प्रतिक्रिया.

ईश्वर की देन है.....

ये कौन से स्कूल मे पढते है.... ? बसेसर का सवाल

ये सरकारी स्कूल मे पढते  हैं.... बक्शी का तालाब मे.

इतनी दूर..... यहाँ क्यों नहीं पढवाया.....? अब नरपत का सवाल

यहाँ ........ ये जो लालाजी का स्कूल है..... इसमे?

हाँ......

यहाँ पर एक अध्यापक हैं..... श्री जीतेन्द्र ...... उन्ही की कृपा से आज मे इस जंगल के मंदिर मे रह रहा हूँ......

कौन...... वो रामकृष्ण के जो मित्र हैं......

जी ..........

मैं आभारी हूँ आप सभी का की आप लोग आज यहाँ आये.... लेकिन आप की और आप के परिवार की भलाई के लिए दरख्वास्त करता हूँ..... की दुबारा यहाँ ना आइये.

भाई साहब..... सुंदर लाल की रोषपूर्ण आवाज़. ....

देखो सुंदर लाल...... तुम तो सब कुछ जानते हो... मेरे बारे मैं..... हाँ मै प्यार बाँटता हूँ, प्यार का पैगाम फैलाता हूँ...... तो मेरे खिलाफ अभिजात्य वर्ग ने जो दोष लगाये हैं वो सही हैं......

तुम क्या चाहते हो..... मै भी चापलूसों के वर्ग मे शामिल हो जाऊं....? नहीं भाई... ये मुझसे ना हो सकेगा......
मोमबत्ती भी खुद जलती , तब हम सब को रौशनी मिलती है, गाय जब तक दूध देती है, माता जानी जाती है, नहीं तो..... नचिकेता ने भी अपनी पिता से यही प्रश्न किया था.....

मै चरित्रहीन  हूँ..... तो ठीक है..... प्रेम करना अभिजात्य वर्ग का काम नहीं है....... उनके पास और भी बड़े बड़े काम हैं.... फैक्ट्री चलाना , स्कूल चलाना, स्कूल मे बच्चों को प्रेम की शिक्षा देना.......

इन तीन बच्चों के प्यार की ताकत जब तक मेरे साथ है.... मै दुनिया का सब से अमीर आदमी हूँ..... आप लोग क्या कहतें हैं.... बोलिए?

1 comment:

निर्मला कपिला said...

बहुत अच्छी कहानी। मगर शीर्शक के साथ दो का अर्थ नही समझी। पिछली पोस्ट देखी मगर इसका पहला भाग कहाँ है? धन्यवाद।