Thursday, February 25, 2010

जय रघुनन्दन, जय सिया राम.....

ब्लोग्वानी के सभी पाठको को देवतोष का नमस्कार। साथियों मुझ से थोड़ी दूर ही रहे। मै दिल का इस्तेमाल ज्यादा करता हूँ, आम आदमी दिमाग का इस्तेमाल ज्यादा करता है। वो लोग सफल हैं और मैं खुश हूँ। मुझे याद आता है वसीम बरेलवी साहब का एक शेर " झूठ वाले कहीं से कहीं बढ़ गए, और मै था कि सच बोलता रह गया"। मेरे अब्बा हुज़ूर मुझे सीखा के गए कि दिमाग मतलब की बात करता है , लेकिन दिल हमेशा सच बोलता है। अगर खुश रहना है तो दिल कि सुनो। खुश रहने के साथ साथ सफल होना भी तो जरूरी है , सफल मतलब- गाड़ी, बंगला, रूतबा, पैसा और अंग्रेजी।

मेरा दिल बोलता बहुत है और मेरे हर निर्णय, हर बात मे टांग अड़ाता है इसीलिये मैं पीछे रह जाता हूँ। मैं दिल की सुनता हूँ और बाद मे चोट का दर्द महसूस करता हूँ। और कमबख्त फिर भी नहीं सीखता हूँ। तुरंत दिल आड़े आ जाता है, कि देवतोष, जो उसका स्तर था, उसने उस स्तर से काम किया, तुम अपना स्तर क्यों छोड़ रहे हो। देखा फिर मैं पीछे रह गया। अरे भाई " जिस के आगन मे अमीरी का शजर लगता है, उनका हर एब भी लोगो को हुनर लगता है"।

जय हो सुंदर लाल, बिना तुम्हारे तो मेरी कोई बात पूरी नहीं होती। अब तुम ही बताओ, कि इस दिल और दिमाग कि लड़ाई मै किस का साथ दूँ? अगर दिल का साथ नहीं देता तो लगता है कि खुद से बिछुड़ रहा हूँ और अगर दिमाग के हांथो बिका तो लगता है कि खुद को बेच दिया। मैं तो अख़लाक़ के हांथो ही बिका करता हूँ, वो और होंगे तेरे बाज़ार मे बिकने वाले। जब दुनिया को देखता हूँ तो खुद पे शर्म सी आती है। और कभी कभी तो सोचने पे मजबूर हो जाता हूँ कि क्या मेरे वालिद हुज़ूर मुझे सही सिखा के गए या गलत। क्योंकि भाई देखो , ईमानदारी से दो टाइम कि रोटी चल जाये वही बहुत है। उपर से आयकर......

अब कम से कम इस बात पे मेरा साथ दो, मेरे दोस्तों, कि मिला किसी को है क्या, सोचिए ये अमीरी से, दिल के शाह तो अक्सर फ़कीर होते है। और फकीरों से कौन दोस्ती करे। दुनिया माल की बात करती है और फ़कीर मौला की। दुनिया को जर और जोरू से फुरसत नहीं, फ़कीर को इसमे कोई दिलचस्पी नहीं। भाई इस्तेमाल करो और आगे बढ़ो।

कौन होता है यहाँ किसी का उमर भर के लिए,
लोग तो जनाज़े मे भी कंधा बदलते रहते हैं।

कोई शक ? सुंदर लाल

1 comment:

निर्मला कपिला said...

कौन होता है यहाँ किसी का उमर भर के लिए,
लोग तो जनाजे मे भी कंधा बदलते रहते हैं।
बिलकुल सही कहा सार्थक आलेख है शुभकामनायें