Wednesday, February 24, 2010

मैं आप अपनी तलाश में हूँ.......

मेरी खामोशियों में भी फसाने ढूंढ लेती है,
बड़ी शातिर है ये दुनिया, बहाने ढूंढ लेती है।
कौन....... अरे... सुंदर लाल, मेरे भाई, अंदर आ जाओ। हाँ भाई,  तबियत ठीक नहीं है, पिछले कुछ दिनों से। नहीं भाई चिंता करने वाली बीमारी नहीं है, मौसम का मिजाज़ बदल रहा है, थोड़ी बहुत ठण्ड लग गयी है। थोड़ी लालटेन कि रौशनी बढ़ा दो। बिजली का बिल पे नहीं किया तो बिजली वाले खफा हो गए। आजकल खफा हो जाना बड़ा आसान है। खैर ....... जाने दो। तुम बताओ कैसे आना हुआ।हाँ.... तुमने बताया तो था। मैं ही भूल गया। जब से खोया गया है दिल अपना, चीज़ रखता हूँ, भूल जाता हूँ। एक लेख लिख रहा हूँ आजकल। तुम हँसना मत। नहीं, भाई अब मे वक़्त के उपर और लोगो के उपर नहीं लिखता। पिछली बार जब से तुम ने टोका था, मै सोच रहा था और मुझे ये लगा कि सबसे रोचक विषय तो मै खुद ही हूँ, क्यों न अपने उपर लिखूं ..... दुसरो के उपर लिखने से क्या फायदा। भाई सुंदर लाल, मुझे भगवान् से कोई शिकायत अगर है तो सिर्फ इतनी है कि जब मुझे इस दुनिया में भेजा तो दिल क्यों दिया। क्योंकि यहाँ तो " हर धडकते हुए पत्थर को दिल समझते हैं, उमर बीत जाती है, दिल को दिल बनाने में "। तो मुझ को भी दिल को दिल बनाने का टाइम तो दिया होता। अपनी तरफ से दिल डाल के मुझे भेजना ही था, तो इंसानों के बीच में भेजना था। व्यापारियों के बीच में क्यों भेज दिया। लेकिन सुंदर लाल, जो भी मिलता है फरिश्तो कि तरह मिलता है, क्या तेरे शहर मे, इंसान नहीं हैं कोई। अरे... भाई मुझे फरिश्तो और परियों के बीच रहने की आदत नहीं है। मैं तो ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ, " या धरती के ज़ख्मो पर मरहम रख दे, या मेरा दिल पत्थर कर दे .....या अल्लाह...."। अच्छा.... मेरे जैसे लोगो को भगवान् दिल लगाने कि पूरी सजा देता है, और उन्ही के हांथो देता है, जिस से दिल लगाया। लेकिन ये सजा भी किस्मत वालों को मिलती है। जहाँ तक सजा कि बात है , मेरी तकदीर काफी बुलंद है।" दोस्तों से इस कदर सदमे उठाये जान पर, दिल से दुश्मन की अदावत का गिला जाता रहा". मैं एक लड़ाई लड़ रहा हूँ। औरो से नहीं भाई, अपने आप से। " हकीकत जिद किये बैठी है, चकनाचूर करने को, मगर मेरी आँख फिर सपना सुहाना ढूंढ लेती है।" वक़्त कह रहा है , कि अपने आप को बदलो, और जैसे और लोग है, वैसे तुम भी बनो। मगर माँ-बाप कि सीख फिर आड़े आ जाती है। कि जो वक़्त के साथ रंग बदलते हो, वो गिरगिट की तरह होते है। चट्टान की तरह बनो। बड़ी बड़ी लहरे भी चट्टान को तोड़ नहीं पाती है, बल्कि उस से टकराकर टूट जाती हैं, बिखर जाती हैं। विश्वास करो तो जम कर करो, नहीं तो मत करो। ये बीच का रास्ता मत अपनाओ । जैसा मौका , वैसा रूप, ये तरीका मुझे पसंद हैं, सुंदर लाल। जब तूफ़ान आता है तभी तो वक़्त होता है अपने अंदर के लोहे को जांचने का, अपने आप को परखने का। और जो प्यार करते है, उनका तो वक़्त हर मोड़ पे इम्तेहान लेता है। वही तो समय होता है, अपने आप को साबित करने का, अपने दिए हुए वचन और वादों को निभाने का, न कि हाँथ छोड़ देने। अरे बहाव के साथ तो हर आदमी तैरता है, हो बहाव के विरुद्ध तैर सके वही तो इंसान है। खैर.... ये बातें झूठी बातें हैं, ये लोगो ने फैलाई है। जब अपने उपर आंच आती है, तो जानवर भी बचता है। वो लोग किताबो और सिनेमा में ही होते "जो कह दिया , सो कह दिया"। प्राण जाए पर वचन न जाए। हंसो मत.... यार। मैं अपने आप से वैसे ही लड़ रहा हूँ, तुम मेरी बातो पे और हंस रहे हो। मुझे बिलकुल ऐसा लग रहा है, जैसे वक़्त मेरे अंदर सागर मंथन चल रहा , देखते हैं विष निकलता है या अमृत। सुंदर लाल, जरा एक गिलास पानी दे दो। प्यास लगी है। क्या कहा, रात बहुत बीत गयी..... अच्छा है भाई, सन्नाटे में कलम खूब चलती है। और मैं अपने आप से मिल तो सकता हूँ। तुम्हारे शहर में ये शोर सुन कर तो लगता है, कि इंसानों के जंगल में कोई हांका हुआ होगा। सुनो.... अगर उनसे मुलाक़ात हो, तो कहना में ठीक हूँ। मेरी चिंता न करे।

2 comments:

अनिल कान्त said...

एहसासों को लिखना बखूबी आता है आपको

Puneet said...

mein qatra hu mujhe aapna wazood maloom hai.. hua kare jo samandar meri talash mein hai..............