Friday, February 26, 2010

मैं कहूंगा तो रूठ जाओगे.....

यहाँ हर शख्स हर पल हादसा होने से डरता है,
खिलौना है जो मिटटी का, फ़ना होने से डरता है.
मेरे दिल के किसी कोने एक मासूम सा बच्चा,
बड़ो को देख कर दुनिया में, बड़ा होने से डरता है.
न बस मे जिन्दगी उसके, न काबू मौत पर उसका,
मगर इंसान फिर भी कब खुदा होने से डरता है.
अजब ये जिन्दगी कि कैद है, दुनिया का हर इंसा,

रिहाई माँगता है, और रिहा होने से डरता है.

Thursday, February 25, 2010

जय रघुनन्दन, जय सिया राम.....

ब्लोग्वानी के सभी पाठको को देवतोष का नमस्कार। साथियों मुझ से थोड़ी दूर ही रहे। मै दिल का इस्तेमाल ज्यादा करता हूँ, आम आदमी दिमाग का इस्तेमाल ज्यादा करता है। वो लोग सफल हैं और मैं खुश हूँ। मुझे याद आता है वसीम बरेलवी साहब का एक शेर " झूठ वाले कहीं से कहीं बढ़ गए, और मै था कि सच बोलता रह गया"। मेरे अब्बा हुज़ूर मुझे सीखा के गए कि दिमाग मतलब की बात करता है , लेकिन दिल हमेशा सच बोलता है। अगर खुश रहना है तो दिल कि सुनो। खुश रहने के साथ साथ सफल होना भी तो जरूरी है , सफल मतलब- गाड़ी, बंगला, रूतबा, पैसा और अंग्रेजी।

मेरा दिल बोलता बहुत है और मेरे हर निर्णय, हर बात मे टांग अड़ाता है इसीलिये मैं पीछे रह जाता हूँ। मैं दिल की सुनता हूँ और बाद मे चोट का दर्द महसूस करता हूँ। और कमबख्त फिर भी नहीं सीखता हूँ। तुरंत दिल आड़े आ जाता है, कि देवतोष, जो उसका स्तर था, उसने उस स्तर से काम किया, तुम अपना स्तर क्यों छोड़ रहे हो। देखा फिर मैं पीछे रह गया। अरे भाई " जिस के आगन मे अमीरी का शजर लगता है, उनका हर एब भी लोगो को हुनर लगता है"।

जय हो सुंदर लाल, बिना तुम्हारे तो मेरी कोई बात पूरी नहीं होती। अब तुम ही बताओ, कि इस दिल और दिमाग कि लड़ाई मै किस का साथ दूँ? अगर दिल का साथ नहीं देता तो लगता है कि खुद से बिछुड़ रहा हूँ और अगर दिमाग के हांथो बिका तो लगता है कि खुद को बेच दिया। मैं तो अख़लाक़ के हांथो ही बिका करता हूँ, वो और होंगे तेरे बाज़ार मे बिकने वाले। जब दुनिया को देखता हूँ तो खुद पे शर्म सी आती है। और कभी कभी तो सोचने पे मजबूर हो जाता हूँ कि क्या मेरे वालिद हुज़ूर मुझे सही सिखा के गए या गलत। क्योंकि भाई देखो , ईमानदारी से दो टाइम कि रोटी चल जाये वही बहुत है। उपर से आयकर......

अब कम से कम इस बात पे मेरा साथ दो, मेरे दोस्तों, कि मिला किसी को है क्या, सोचिए ये अमीरी से, दिल के शाह तो अक्सर फ़कीर होते है। और फकीरों से कौन दोस्ती करे। दुनिया माल की बात करती है और फ़कीर मौला की। दुनिया को जर और जोरू से फुरसत नहीं, फ़कीर को इसमे कोई दिलचस्पी नहीं। भाई इस्तेमाल करो और आगे बढ़ो।

कौन होता है यहाँ किसी का उमर भर के लिए,
लोग तो जनाज़े मे भी कंधा बदलते रहते हैं।

कोई शक ? सुंदर लाल

Wednesday, February 24, 2010

मैं आप अपनी तलाश में हूँ.......

मेरी खामोशियों में भी फसाने ढूंढ लेती है,
बड़ी शातिर है ये दुनिया, बहाने ढूंढ लेती है।
कौन....... अरे... सुंदर लाल, मेरे भाई, अंदर आ जाओ। हाँ भाई,  तबियत ठीक नहीं है, पिछले कुछ दिनों से। नहीं भाई चिंता करने वाली बीमारी नहीं है, मौसम का मिजाज़ बदल रहा है, थोड़ी बहुत ठण्ड लग गयी है। थोड़ी लालटेन कि रौशनी बढ़ा दो। बिजली का बिल पे नहीं किया तो बिजली वाले खफा हो गए। आजकल खफा हो जाना बड़ा आसान है। खैर ....... जाने दो। तुम बताओ कैसे आना हुआ।हाँ.... तुमने बताया तो था। मैं ही भूल गया। जब से खोया गया है दिल अपना, चीज़ रखता हूँ, भूल जाता हूँ। एक लेख लिख रहा हूँ आजकल। तुम हँसना मत। नहीं, भाई अब मे वक़्त के उपर और लोगो के उपर नहीं लिखता। पिछली बार जब से तुम ने टोका था, मै सोच रहा था और मुझे ये लगा कि सबसे रोचक विषय तो मै खुद ही हूँ, क्यों न अपने उपर लिखूं ..... दुसरो के उपर लिखने से क्या फायदा। भाई सुंदर लाल, मुझे भगवान् से कोई शिकायत अगर है तो सिर्फ इतनी है कि जब मुझे इस दुनिया में भेजा तो दिल क्यों दिया। क्योंकि यहाँ तो " हर धडकते हुए पत्थर को दिल समझते हैं, उमर बीत जाती है, दिल को दिल बनाने में "। तो मुझ को भी दिल को दिल बनाने का टाइम तो दिया होता। अपनी तरफ से दिल डाल के मुझे भेजना ही था, तो इंसानों के बीच में भेजना था। व्यापारियों के बीच में क्यों भेज दिया। लेकिन सुंदर लाल, जो भी मिलता है फरिश्तो कि तरह मिलता है, क्या तेरे शहर मे, इंसान नहीं हैं कोई। अरे... भाई मुझे फरिश्तो और परियों के बीच रहने की आदत नहीं है। मैं तो ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ, " या धरती के ज़ख्मो पर मरहम रख दे, या मेरा दिल पत्थर कर दे .....या अल्लाह...."। अच्छा.... मेरे जैसे लोगो को भगवान् दिल लगाने कि पूरी सजा देता है, और उन्ही के हांथो देता है, जिस से दिल लगाया। लेकिन ये सजा भी किस्मत वालों को मिलती है। जहाँ तक सजा कि बात है , मेरी तकदीर काफी बुलंद है।" दोस्तों से इस कदर सदमे उठाये जान पर, दिल से दुश्मन की अदावत का गिला जाता रहा". मैं एक लड़ाई लड़ रहा हूँ। औरो से नहीं भाई, अपने आप से। " हकीकत जिद किये बैठी है, चकनाचूर करने को, मगर मेरी आँख फिर सपना सुहाना ढूंढ लेती है।" वक़्त कह रहा है , कि अपने आप को बदलो, और जैसे और लोग है, वैसे तुम भी बनो। मगर माँ-बाप कि सीख फिर आड़े आ जाती है। कि जो वक़्त के साथ रंग बदलते हो, वो गिरगिट की तरह होते है। चट्टान की तरह बनो। बड़ी बड़ी लहरे भी चट्टान को तोड़ नहीं पाती है, बल्कि उस से टकराकर टूट जाती हैं, बिखर जाती हैं। विश्वास करो तो जम कर करो, नहीं तो मत करो। ये बीच का रास्ता मत अपनाओ । जैसा मौका , वैसा रूप, ये तरीका मुझे पसंद हैं, सुंदर लाल। जब तूफ़ान आता है तभी तो वक़्त होता है अपने अंदर के लोहे को जांचने का, अपने आप को परखने का। और जो प्यार करते है, उनका तो वक़्त हर मोड़ पे इम्तेहान लेता है। वही तो समय होता है, अपने आप को साबित करने का, अपने दिए हुए वचन और वादों को निभाने का, न कि हाँथ छोड़ देने। अरे बहाव के साथ तो हर आदमी तैरता है, हो बहाव के विरुद्ध तैर सके वही तो इंसान है। खैर.... ये बातें झूठी बातें हैं, ये लोगो ने फैलाई है। जब अपने उपर आंच आती है, तो जानवर भी बचता है। वो लोग किताबो और सिनेमा में ही होते "जो कह दिया , सो कह दिया"। प्राण जाए पर वचन न जाए। हंसो मत.... यार। मैं अपने आप से वैसे ही लड़ रहा हूँ, तुम मेरी बातो पे और हंस रहे हो। मुझे बिलकुल ऐसा लग रहा है, जैसे वक़्त मेरे अंदर सागर मंथन चल रहा , देखते हैं विष निकलता है या अमृत। सुंदर लाल, जरा एक गिलास पानी दे दो। प्यास लगी है। क्या कहा, रात बहुत बीत गयी..... अच्छा है भाई, सन्नाटे में कलम खूब चलती है। और मैं अपने आप से मिल तो सकता हूँ। तुम्हारे शहर में ये शोर सुन कर तो लगता है, कि इंसानों के जंगल में कोई हांका हुआ होगा। सुनो.... अगर उनसे मुलाक़ात हो, तो कहना में ठीक हूँ। मेरी चिंता न करे।

Tuesday, February 23, 2010

मेरे खुदा, मेरे मौला.............

वो फिराक हो, या विसाल हो, तेरी याद महकेगी एक दिन ,
वो गुलाब बन के खिलेगा क्या, जो चिराग बन के जला न हो.
कभी धूप दे कभी बदलियाँ , दिल-ओ-जान से दोनों क़ुबूल हैं.
मगर उस नज़र में न क़ैद कर , जहाँ जिन्दगी कि हवा न हो।

Monday, February 22, 2010

मैं आप अपनी तलाश मैं हूँ....

मेरी खामोशियों में भी फसाने ढूंढ लेती है,
बड़ी शातिर है ये दुनिया, बहाने ढूंढ लेती है।
कौन....... अरे... सुंदर लाल, मेरे भाई, अंदर आ जाओ।
हाँ भाई, कुछ तबियत ठीक नहीं है, पिछले कुछ दिनों से। नहीं भाई चिंता करने वाली बीमारी नहीं है, मौसम का मिजाज़ बदल रहा है, थोड़ी बहुत ठण्ड लग गयी है। थोड़ी लालटेन कि रौशनी बढ़ा दो। बिजली का बिल पे नहीं किया तो बिजली वाले खफा हो गए। आजकल खफा हो जाना बड़ा आसान है। खैर ....... जाने दो। तुम बताओ कैसे आना हुआ।
हाँ.... तुमने बताया तो था। मैं ही भूल गया। जब से खोया गया है दिल अपना, चीज़ रखता हूँ, भूल जाता हूँ। एक लेख लिख रहा हूँ आजकल। तुम हँसना मत। नहीं, भाई अब मे वक़्त के उपर और लोगो के उपर नहीं लिखता। पिछली बार जब से तुम ने टोका था, मै सोच रहा था और मुझे ये लगा कि सबसे रोचक विषय तो मै खुद ही हूँ, क्यों न अपने उपर लिखूं ..... दुसरो के उपर लिखने से क्या फायदा। भाई सुंदर लाल, मुझे भगवान् से कोई शिकायत अगर है तो सिर्फ इतनी है कि जब मुझे इस दुनिया मै भेजा तो दिल क्यों दिया। क्योंकि यहाँ तो " हर धडकते हुए पत्थर को दिल समझते हैं, उमर बीत जाती है, दिल को दिल बनाने मैं"। तो मुझ को भी दिल को दिल बनाने का टाइम तो दिया होता। पानी तरफ से दिल डाल के मुझे भेजना ही था, तो इंसानों के बीच मै भेजना था। व्यापारियों के बीच मे क्यों भेज दिया।

लेकिन सुंदर लाल, जो भी मिलता है फरिश्तो कि तरह मिलता है, क्या तेरे शहर मे, इंसान नहीं हैं कोई। अरे... भाई मुझे फरिश्तो और परियों के बीच रहने कि आदत नहीं है। मे तो ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ, " या धरती के ज़ख्मो पर मरहम रख दे, या मेरा दिल पत्थर कर दे या अल्लाह...."। अच्छा.... मेरे जैसे लोगो को भगवान् दिल लगाने कि पूरी सजा देता है, और उन्ही के हांथो देता है, जिस से दिल लगाया। लेकिन ये सजा भी किस्मत वालों को मिलती है। जहाँ तक सजा कि बात है , मेरी तकदीर काफी बुलंद है।
" दोस्तों से इस कदर सदमे उठाएय जान पर, दिल से दुश्मन कि अदावत का गिला जाता रहा"। मे एक लड़ाई लड़ रहा हूँ। ओरो से नहीं भाई, अपने आप से। " हकीकत जिद किये बैठी है, चकनाचूर करने को, मगर मेरी आँख फिर सपना सुहाना ढूंढ लेती है।" वक़्त कह रहा है , कि अपने आप को बदलो, और जैसे और लोग है, वैसे तुम भी बनो। मगर माँ-बाप कि सीख फिर आड़े आ जाती है। कि जो वक़्त के साथ रंग बदलते हो, वो गिरगिट कि तरह होते है। चट्टान कि तरह बनो। बड़ी बड़ी लहरे भी चट्टान को तोड़ नहीं पाती है, बल्कि उस से टकराकर टूट जाती हैं, बिखर जाती हैं। विश्वास करो तो जम कर करो, नहीं तो मत करो। ये बीच का रास्ता मत अपनाओ । जैसा मौका , वैसा रूप, ये तरीका मुझे पसंद हैं, सुंदर लाल।
जब तूफ़ान आता है तभी तो वक़्त होता है अपने अंदर के लोहे को जांचने का, अपनी आप को परखने का। और जो प्यार करते है, उनका तो वक़्त हर मोड़ पे इम्तेहान लेता है। वही तो समय होता है, अपने आप को साबित करने का, अपने दिए हुए वचन और वादों को निभाने का, न कि हाँथ छोड़ देने। अरे बहाव के साथ तो हर आदमी तैरता है, हो बहाव के विरुद्ध तैर सके वही तो इंसान है।

खैर.... ये बातें झूठी बातें हैं, ये लोगो ने फैलाई है। जब अपने उपर आंच आती है, तो जानवर भी बचता है। वो लोग किताबो और सिनेमा मे ही होते "जो कह दिया , सो कह दिया"। प्राण जाए पर वचन न जाए। हंसो मत.... यार। मैं अपने आप से वैसे ही लड़ रहा हूँ, तुम मेरी बातो पे और हंस रहे हो। मुझे बिलकुल ऐसा लग रहा है, जैसे वक़्त मेरे अंदर सागर मंथन चल रहा , देखते हैं विष निकलता है या अमृत।
सुंदर लाल, जरा एक गिलास पानी दे दो। प्यास लगी है। क्या कहा, रात बहुत बीत गयी..... अच्छा है भाई, सन्नाटे मैं कलम खूब चलती है। और मे अपने आप से मिल तो सकता हूँ। तुम्हारे शहर में ये शोर सुन कर तो लगता है,कि इंसानों के जंगल में कोई हांका हुआ होगा। सुनो.... अगर उनसे मुलाक़ात हो, तो कहना मे ठीक हूँ। मेरी चिंता न करे।

Tuesday, February 16, 2010

चलते - फिरते पत्थर

अरे............... सुंदर लाल, बहुत दिनों बाद दिखे। क्या सिंगापुर चले गए थे?
नहीं भाई साहब, शहर से बाहर चला जाऊं वही बहुत है, आप तो सिंगापुर कहके मजाक उड़ा रहे है।
अरे न रे सुंदर लाल न। मजाक क्यों करूंगा। देखो एक बात को समझो। जब भी हम लोग बड़े बड़े लोगो के बीच में होंगे, तो अंग्रेजी मे बात करंगे, अमेरिका, इंग्लैंड और विदेश  की बात करंगे। और ये जो तुम्हे जोर जोर से हसने कि आदत है न, इसे बदलो। पढे लिखो लोगो के बीच मे इसे असभ्यता समझा जाता है। अरे..... हाँ, देखो टाई पहनने कि आदत भी हमको डालनी पड़गी, क्योंकि टाई पहन कर आदमी कि कीमत बढ़ जाती है। टाई पहनने वाले झूठ नहीं बोलते , वो लोग सभ्य होते हैं। क्या यार सुंदर लाल, इतना भी नहीं समझते हो। मै कहाँ तक हर बात तुमको समझाऊंगा।
हम जिस समाज मै रहते हैं, वहां इंसान कि नहीं, कपड़ो कि इज्ज़त होती है। तुम्हे याद नहीं है जब श्री गदाधर राव जी के बच्चे की पार्टी में गए थे। मैं अंदर चला गया था और तुमको दरबान ने बाहर ही रोक दिया था। नहीं , इसलिए नहीं कि तुम्हारे कपड़े गंदे थे, बल्की वो कीमती नहीं थे। और तुमने टाई नहीं बांधी थी।
अरे ठीक है तुम अच्छे आदमी हो, भले आदमी हो, लेकिन ये तुम्हारे माथे पे तो नहीं लिखा है, न। देखो मेरे प्यारे भाई सुंदर लाल, मुझे एक शेर याद आ रही है- " हर आदमी मे होते हैं दस बीस आदमी, जब भी किसी को देखना, कई बार देखना"। तुम बहुत सीधे आदमी हो, और दूसरों को भी अपना जैसा समझते हो। बस यही पर तुम बाज़ी हार जाते हो।
देखो हिंदी मे कहावत है -- " जैसा देश , वैसा भेष"। तो तुम वैसे क्यों नहीं बन सकते । अरे लोग तुम को इस्तेमाल करते है, तुम उनको इस्तेमाल करो। ये दुनिया का नियम है। तुम भी इसी दुनिया के हो, दूसरी दुनिया के तो नहीं हो। अरे..... माना कि हमारे माँ-बाप ने हमको ये नहीं सिखाया , लेकिन जो उन्होने सिखाया, वो भी याद है, जो ये दुनिया सीखा रही वो भी याद रखो। भाई- बहन, ये बाते झूठी बाते हैं , ये लोगो ने फैलाई हैं। पैसा, रूतबा, गाडी, बंगला - ये चार वो चीजे हैं, जिसके आगे दुनिया झुकती है।
अरे बाप रे बाप...प्यार .............. ये क्या कह रहे हो.................. अरे तुम मरोगे। भाई मेरे प्यार के नाम पर ही तो लोग इस्तेमाल करते हैं , और काम निकल जाने पे पेप्सी के प्लास्टिक के ग्लास कि तरह फ़ेंक देते है। अच्छा ये मिसाल तुम नहीं समझे... तुम कैसे समझोगे तुम तो प्रेमी हो। भाई काम निकल जाने पर लोग दूध मे मक्खी कि तरह निकाल कर फ़ेंक देते हैं। अच्छा... ये बताओ वो क्या गलत करते हैं?? अरे... काम निकल गया , चीज़ फ़ेंक दी। तुम न सुंदर लाल, किसी दिन ऐसा मरोगे कि रोने वाले भी किराए पे लाने पड़ेंगे। तुम ने कभी चलते फिरते पत्थर देखे हैं। अरे भाई में त्रेता युग कि बात नहीं कर रहाहूँ , जहाँ राम का नाम लिख कर पत्थर भी तैर जाते थे। मैं बात कर रहा हूँ इस युग कि, इस युग मे चलते फिरते पत्थर देखे हैं। नही न.... सरकार मेरे, मैं तो उन पत्थरों के बीच रहता हूँ और हर रविवार को उन पत्थरों से हाँथ भी मिलाता हूँ। और बात भी करता हूँ। देखता हूँ। खुद हैरान होता हूँ। ये पत्थर हँसते भी हैं, बोलते भी हैं, घडियाली आंसू भी बहते हैं, और मौका मिलते ही आस्तीन का सांप भी साबित होते है। देखो, प्यार करो तो उसको चमड़ी तक ही रखो , जिस दिन तुम ने दिल पे लिया, अपने दिन गिनना शुरू कर देना।
चलो एक प्रयोग करते हैं, एक पत्थर लो, उस पर अगर रस्सी से कुछ दिन घिसो, तो उस पे निशाँ पड़ जाता है, लेकिन इन चलते फिरते पत्थरों कि खासियत होती है, कि इन पे निशाँ नही पड़ता। ये पत्थर इतने दिखावटी होते हैं कि कभी कभी मन करता हैं कि इन पत्थरों को अपने बैठक मे सजा लूँ। ये प्यार से सर पर हाँथ फेरते हैं, और अपना बना कर पीठ पे चाक़ू से वार करते हैं। एक बार मैने इंसानों को ढूँढने कि कोशिश करी तो खुदा से मिला। अरे वो खुदा नहीं जो तुम समझ रहे हो, यहाँ हर इंसान खुदा से कम नही होता। " न बस में जिन्दगी उसके, न काबू मौत पे उसका, मगर इंसान फिर भी कब खुदा होने से डरता है"। हमने देखा कई ऐसे खुदाओ को यहाँ,सामने जिनके वो सुचमुच का खुदा कुछ भी नहीं।
अब बताओ हम करे तो क्या करे। भगववान ने चीजों को बनाया इस्तेमाल करने के लिए और इंसान को बनाया प्रेम करने के लिए। हम चीजों से प्यार करते हैं, और इंसान को इस्तेमाल।
जय हो भगवान् ................. या तो तू गलत या मैं।

Tuesday, February 9, 2010

भारत रत्न

"भारत रत्न" बहुत बड़ा पुरस्कार है, जानते हो न , सुंदर लाल। बिलकुल ठीक पहचाना। बड़े बड़े काम करने वालो को मिलता है ये। अब ये बड़ा काम क्या है, ये मेरी समझ मे आजतक नहीं आ पाया। अपनी जान पे खेलकर दूसरों की जान बचाना, एक बड़ा काम है। दूसरों के इलज़ाम अपने सर ले लेना , ये भी कम बड़ी बात नहीं है। अपने देश का नाम दुनिया मे रोशन करना, वाकई काफी बड़ा काम है।
लेकिन सुंदर लाल , एक बात बताओ...... हमारे देश मे जहाँ हर तरफ भ्रष्टाचार रग रग में समाया हुआ हैं, हमारा दूसरा स्वभाव बन गया है। हम अपना, असली स्वभाव तो खैर भूल ही गए हैं। मै ईमानदार हूँ, ये कहने मे शर्म, और मै बेईमान हूँ, ये सोचने में, वक़्त के साथ चलने वाला लगता हूँ। जहाँ महंगाई आसमान फाड़ कर उस से भी आगे निकल जाने को बेकरार है, जहाँ जिस अपराधी को पुलिस वाले जेल में बंद करते हैं और कुछ सालो बाद उसी को सलाम करते हैं, क्योंकि वो एक नेता या मंत्री बन जाता है। जहाँ स्वार्थ के लिए अपने अपनों को दगा देते हैं, ........ ऐसे देश मे, ऐसे माहौल में, अगर मैं अपने परिवार के साथ रह रहा हूँ और खुश भी दिखता हूँ । अरे............ में ये तो बताने भूल ही गया कि मेरे दो बेटियाँ हैं और उनके साथ में खुश रहता हूँ, दिल में डर ले कर भी, रात को सो जाता हूँ। तो क्या मैं भारत रत्न का हक़दार नहीं है???  कल सड़क पर एक गिलास पानी पिया तो उसने एक रुपए माँगा । मैने कहा भाई, ये तो बहुत महँगा है। तो उसने कहा बाबूजी, मेरा खून ले लो, आज कल सब से सस्ता वही है। और मैं चुप।
अरे.............. सुंदर लाल तुम तो सोच में पड़ गए । भाई, मैं तो अपने दिल कि बात कह रहा हूँ। कभी कभी मैं सोचता हूँ कि राजनीति में चला जाऊं, लेकिन ईमान को बेचना मेरे माँ-बाप ने सिखाया ही नहीं। और इसके बिना राजनीति नहीं होती। मेरे बच्चे जब सवेरे स्कूल जाते हैं तो मै गौर से उनको देखता हूँ, इस उम्मीद मै कि शाम को वे मुझे या मैं उन्हे देख पाऊं या नहीं, अरे भाई मै निराशावादी नहीं हूँ, लेकिन माहौल ऐसा है कि ....... राम राम ......

अच्छा........ अब बताओ, देखो भाई, इमानदारी से बताना कि क्या मैं भारत रत्न नहीं हूँ......... या भारत रत्न का हक़दार नहीं हूँ.... हर चीज़ जहाँ पैसो से नापी जाती , यहाँ तक कि आदमी कि इज्ज़त भी, वहां मैं अपनी दो बेटियों और पत्नी के साथ रहता हूँ और दो टाइम का खाना भी मिल जाता है। तो क्या मैं भारत रत्न का हक़दार नहीं हूँ.......
यहाँ हर शख्स हर पल हादसा होने से डरता है,
खिलौना है जो मिटटी का फ़ना होने से डरता है।
अजब कैद है ये दुनिया, यहाँ पर हर इंसा,
रिहाई मांगता है और रिहा होने से डरता है।
मैं भी भारत रत्न हूँ..................... सरकार माने या न माने.

Thursday, February 4, 2010

क्या जवाब है इसका

लोग हर मोड़ पे रुक रुक के सम्हलते क्यों हैं,
इतना डरते हैं, तो फिर घर से निकलते क्यों हैं।
मैं न जुगनू हूँ, न दिया हूँ, न कोई तारा हूँ,
रौशनी वाले मेरे नाम से जलते क्यों हैं।

Wednesday, February 3, 2010

सितारों से आगे जहाँ और भी हैं।

"सितारों से आगे जहाँ और भी हैं।"
जीवन एक ऐसी यात्रा है जो कभी भी खत्म नहीं होती। लोग चले जाते हैं लेकिन जिन्दगी चलती रहती है। बहुत किस्मत वाले होते हैं जो इस जीवन कि यात्रा में अपनी छाप छोड़ जाते हैं। और लोगो के दिलो में जिन्दा रहते हैं। मुझे याद आता है एक quotation " Winners don't do different things, they do the things differently". वो differently क्या चीज़ है।
जब हम सभी के पास ज्ञान है, शक्ति है और इच्छा भी है तो फिर चूक कहाँ पर है। शायद लगन कि कमी है, लक्ष्य के लिए पागलपन कि कमी है। जी हाँ, जब तक पागलपन सर चढ़ कर न बोले , तो फिर वो पागलपन ही क्या? बंदगी बा-कैदे होश, कुफ्र है बंदगी नहीं।

आइये हाँथ उठाये हम भी, हम जिन्हे रस्म-ऐ -दुआ याद नहीं।
हम जिन्हे सोज़-ऐ-मुहबत के सिवा, कोई बुत , कोई खुदा याद नहीं।


Here & Now

Time and tide wait for nothing. We all know this old dictum and agree also. But how many of us really ready to accept this truth by heart. Leave intellect aside. Wahtever has gone, can not be corrected and what is in future, nobody knows. We have present moment in hand and how to use it for our welfare that is wisdom. We all have different perception of looking at present. Somebody thinks how I can use it to multiply my wealth, somebody thinks how I can use it to maintain my physical fitness, a spiritual person thinks how he/ she can use the present for upliftment of his/ herself. So perception varies from person to person.

Our great rishis in past have given ample emhasis on present. Lamenting over what has been gone is of no use. Learning from our mistakes and not to repeat them is wisdom. Fools learn when it is must but wise men learn when they can. This is life and this is wisdom.

Beyond me..........

It is really difficult to give a title before writing. I have felt , at least with me, the best comes out when it spontanepous. Anyway.......
Life is the best teacher, we all have heard it and we all know it. But how many of have realized it? How circustances bring the real character of man and how circumstances change a person, is interesting. Everybody wants to save his or her skin when tough times comes.