Saturday, November 6, 2010

दीपावली बीत गयी.........

दीपावली बीत  गयी.........

उजाला बहुत हुआ.... लेकिन अभी भी बहुत अन्धेरा है. शोर बहुत हुआ..... लेकिन अभी भी बहुत सन्नाटा है.... कुछ और शोर करो..... मुझको एहसास दिला दो कि मै ज़िंदा हूँ अभी. मेरे अंदर का शोर .... धीरे धीरे सन्नाटे मे बदलता जा रहा है..... कुछ करो.....और शोर करो......

याद करो...... मुझे  आये हुए... कितना वक़्त बीत गया.... लेकिन तुम्हारे पास तो वक़्त ही नहीं है.......याद आ रही है.... वो एक पुरानी सी शेर....

तुम्हे गैरों से कब फुर्सत, हम अपने गम से खाली,
चलो बस हो चुका मिलना, ना तुम खाली, ना हम खाली.

कितना शोर था मेरे अंदर अरमानो  का.......  सब शांत हो चला है...... शश्श्श्....... सोने दो मुझको...... अभी ताज़ी चोट है.... दर्द तो देगी ही......अभी आदत नहीं पड़ी ...... तुम अपने परिवार के साथ रह गए..... मै तुमको ढूंढता रह गया..... त्यौहार आया और चला गया... सब अपने अपने के हो लिए...... मै अपनों को ढूंढता रह गया....... सब अपने अपने चाहने वालों मे खो गए.

कभी तुमने अपने बगैर त्यौहार मनाया है...... इतना आसान नहीं हैं...... मै तो सारी परिधियों को तोड़ चुका....... तुम्हारी बातों में विरोधाभास......... उम्मीद नहीं थी..... तकलीफ हुई. आशा करता हूँ..... इस ज्वार से भी बाहर निकल जाऊँगा..... तुम वैद्य के पास भी गए..... मुझे पता चला..... लेकिन तुमने इस बात कि तरफ ध्यान नहीं दिया..... कि इसको भी चिंता होगी..... कि क्या हुआ......दोष तुम्हारा नहीं हैं...... मैं ही मुँह खोल कर कुछ बोल नहीं पाया.... और लोग मुझको क्या से क्या समझते रहे........तुम भी, हाँ तुम भी.... दीपावली बीत गयी......सब अपने अपने चाहने वालों मे खो गए.