देखो ये मेरे ख्वाब थे, देखो ये मेरे ज़ख्म हैं ...........
लो ....एक और काग़ज ...अधलिखा ......अनपढ़ा ..............
क्या आनंद काग़ज पर जिन्दगी जीता था ...... अविनाश?
क्या बताऊँ .... राधा। .....सच में मैंने भी आनंद के चारों तरफ काग़ज , चुरुट और चाय ही देखी है। वो ग़ालिब की एक शेर हैं न ......
चंद हसीनो के बुताँ , चंद हसीनों के खुतूत,
बाद मरने के मेरे, घर से ये सामाँ निकला।
राधा हंस पड़ी अविनाश के जवाब पर। सही कह रहे हो अविनाश ...शायद उसकी जिन्दगी इस लिए आसान थी।
किसे पता राधा .....जिन्दगी आसान थी उसकी ..या नहीं। लेकिन जीता बड़ी आसानी से था। कुछ लोगों के लिए सांस लेना भी भारी होता है। ...............जिन्दगी ने जो दिया , वो उसने ले लिया ...मुस्करा दिया .... आगे बढ़ गया। उसका तो जिन्दगी जीने का फ़लसफ़ा साधारण था .... बहुत ही साधारण .....
हार में या जीत में , किंचित नहीं भयभीत मैं ,
संघर्ष पथ पर जो मिला , ये भी सही, वो भी सही।
जब अपने करने से कुछ न हो तो उसके हांथो में अपने आप को सौंप दो .....क्योंकि जो कुछ हुआ या हो रहा है या होने वाला है ....सब उसकी मर्जी से ही चलता है .....ये निजाम . आनंद कागज पर जिन्दगी नहीं जीता था ...बल्कि जो वो जीता था उसे कागज पर उतार देता था। उसने कभी प्रेम के बारे में खुले आम नहीं लिखा ..कुछ खुले आम नहीं कहा .....क्योंकि प्रेम को कौन कागज पर उतार पाया है आजतक , कौन शब्दों में बाँध पाया है आजतक .....प्रेम तो किया जा सकता है या जिया जा सकता है ......उसने दोनों किये।
अविनाश .......आनंद को लेकर इतनी भ्रांतियां क्यों हैं .... इतनी कहानियाँ क्यों है .....?
राधा .... आनंद ने जो जिन्दगी जी , उसने जितने घाव खाए .......और उसके बाद भी दुआ देता रहा। तो लोग confuse होते रहे। और कहानियाँ बनाते रहे। ...उस के संस्कार ऐसे थे .....
गुजरो जो बाग़ से तो दुआ मांगते चलो ,
जिसमे खिलें हो फूल वो डाली हरी रहे।
तुम आनंद से कितनी बार मिली हो ...राधा ..?
कई बार .....क्यों ..अविनाश?
कितनी बार उसने तुम्हारे सामने दूसरों की बात की है या बुराई की है ?
कभी नहीं ...... कभी मैंने खुद कोशिश भी की तो उसने discourage कर दिया .....उसका एक ही जवाब होता था ...जाने भी दो यारों ...एक बार मैंने उससे कहा की आनंद तुमको पता है की लोगतुम्हारे बारे में क्या क्या कहते हैं ....क्या क्या सोचते हैं .....तो बड़ी आसानी से उसने जवाब दिया " राधा .....लोग मेरे बारे क्या सोचते हैं ..ये problem है। मेरी नहीं।
लो ....एक और काग़ज ...अधलिखा ......अनपढ़ा ..............
क्या आनंद काग़ज पर जिन्दगी जीता था ...... अविनाश?
क्या बताऊँ .... राधा। .....सच में मैंने भी आनंद के चारों तरफ काग़ज , चुरुट और चाय ही देखी है। वो ग़ालिब की एक शेर हैं न ......
चंद हसीनो के बुताँ , चंद हसीनों के खुतूत,
बाद मरने के मेरे, घर से ये सामाँ निकला।
राधा हंस पड़ी अविनाश के जवाब पर। सही कह रहे हो अविनाश ...शायद उसकी जिन्दगी इस लिए आसान थी।
किसे पता राधा .....जिन्दगी आसान थी उसकी ..या नहीं। लेकिन जीता बड़ी आसानी से था। कुछ लोगों के लिए सांस लेना भी भारी होता है। ...............जिन्दगी ने जो दिया , वो उसने ले लिया ...मुस्करा दिया .... आगे बढ़ गया। उसका तो जिन्दगी जीने का फ़लसफ़ा साधारण था .... बहुत ही साधारण .....
हार में या जीत में , किंचित नहीं भयभीत मैं ,
संघर्ष पथ पर जो मिला , ये भी सही, वो भी सही।
जब अपने करने से कुछ न हो तो उसके हांथो में अपने आप को सौंप दो .....क्योंकि जो कुछ हुआ या हो रहा है या होने वाला है ....सब उसकी मर्जी से ही चलता है .....ये निजाम . आनंद कागज पर जिन्दगी नहीं जीता था ...बल्कि जो वो जीता था उसे कागज पर उतार देता था। उसने कभी प्रेम के बारे में खुले आम नहीं लिखा ..कुछ खुले आम नहीं कहा .....क्योंकि प्रेम को कौन कागज पर उतार पाया है आजतक , कौन शब्दों में बाँध पाया है आजतक .....प्रेम तो किया जा सकता है या जिया जा सकता है ......उसने दोनों किये।
अविनाश .......आनंद को लेकर इतनी भ्रांतियां क्यों हैं .... इतनी कहानियाँ क्यों है .....?
राधा .... आनंद ने जो जिन्दगी जी , उसने जितने घाव खाए .......और उसके बाद भी दुआ देता रहा। तो लोग confuse होते रहे। और कहानियाँ बनाते रहे। ...उस के संस्कार ऐसे थे .....
गुजरो जो बाग़ से तो दुआ मांगते चलो ,
जिसमे खिलें हो फूल वो डाली हरी रहे।
तुम आनंद से कितनी बार मिली हो ...राधा ..?
कई बार .....क्यों ..अविनाश?
कितनी बार उसने तुम्हारे सामने दूसरों की बात की है या बुराई की है ?
कभी नहीं ...... कभी मैंने खुद कोशिश भी की तो उसने discourage कर दिया .....उसका एक ही जवाब होता था ...जाने भी दो यारों ...एक बार मैंने उससे कहा की आनंद तुमको पता है की लोगतुम्हारे बारे में क्या क्या कहते हैं ....क्या क्या सोचते हैं .....तो बड़ी आसानी से उसने जवाब दिया " राधा .....लोग मेरे बारे क्या सोचते हैं ..ये problem है। मेरी नहीं।
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