Sunday, September 23, 2012

शीशे का खिलौना था ..5.. वो कौन थी--

अधलिखे पन्ने, अधलिखे ख़त , अधलिखे लेख ....ये सब क्या साबित करते हैं ....राधा। क्या दिखाते हैं ये सब ...?

अविनाश ......ऐसा नहीं लगता की आनंद कुछ कहना चाहता था और कोशिश भी करी ....लेकिन अधूरा अधूरा रह गया ......कोई ऐसा सच जो वो खुद से भी बताने में  डरता था ......देखो ....हर  ख़त में ...हर  अधलिखे पन्ने में  कोई  न कोई  बात कह रहा है वो ....

 हाँ  राधा ................ कितनी गहरी  चोट खाई उसने ......ये देखो ....

तू छोड़ रहा है तो इसमें खता तेरी क्या, 
हर शख्स मेरा साथ निभा भी नहीं सकता।

वैसे तो इक आंसू भी बहा कर मुझे ले जाए 

ऐसे कोई तूफ़ान हिला भी नहीं सकता।

कितना सच कहा है न ....राधा। आँसू की धार में बह जाने वाला इंसान था .....वो।  और वैसे बड़े बड़े तूफान  भी उसको हिला नहीं पाए .......

और ये देखो अविनाश ......

इक नफ़रत  ही नहीं दुनिया में , दर्द का सबब फ़राज़, 
मुहब्बत भी सुकून वालों को बड़ी तकलीफ देती है ................... क्या बोलते हो ......अविनाश।

अविनाश ......चुपचाप राधा की तरफ देखता रहा ......  पता नहीं राधा .......विश्वास नहीं होता की आनंद अंदर ही अंदर इतना गंभीर ,इतना अकेला .......रहा अकेला ...और जाते जाते भी किसी को खोज खबर की तकलीफ न दी .....

अविनाश ....कल मैं ज्योति से मिली थी। 

अच्छा .........क्या हाल चाल हैं ......

मस्त है ..... बिंदास ........

अच्छा है .......जिदंगी कैसे जी जाती है या जी जानी चाहिए ......इन लोगों से सीखना चाहिए ....राधा। और मुझे कोई शिकवा -गिला नहीं है। बल्कि में  तो लोगों को इक किताब समझता हूँ ...हर  किसी से कुछ न कुछ सीखा जा सकता है ....और सीखा भी जाना चाहिए। दर्द देना भी और दर्द को बर्दाशत करना भी .....

तेरा न हो सका तो मर जाऊँगा फ़राज़, कितना खूबसूरत झूठ बोलता था वो। 

कौन ....... 

बस इसी "कौन" .....पर आके तो हर  बात रुक  है जाती है ......

 .... वो कौन थी--

पूंछा जो मैंने जिस्म से रूह निकलती है किस तरह ,
हाँथ उन्होने अपना मेरे हाँथ से छुड़ाकर दिखा दिया ....

Oh my God...........अविनाश। ....... आनंद तो अपने आप में एक प्रेम ग्रंथ था .... उंगलियाँ तो वो भी उठा सकता होगा .........लेकिन ......लेकिन   ......

मैं खुद भी एहतियातन उस गकी से कम गुजरता हूँ, 
कोई मासूम  क्यों मेरे लिए बदनाम हो जाए। 

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