Tuesday, September 18, 2012

शीशे का खिलौना था

बन्दगी हमने छोड़ दी फ़राज़ ........

ऐसा क्यों कह रहे हैं .......

क्या करें लोग जब खुदा हो जायें  ........

अविनाश , ये शेर है या तुम्हारा विचार ........

एक हंसी सी तैर गयी अविनाश के चेहरे पर  ......जैसे तुम समझो ......राधा।

अविनाश  .....  कल  ज्योति से मुलाकात हुई .....बड़ी खुश है वो अब।

ये तो अच्छी बात है न .............

अरे हाँ .......एक परिचय तो रह गया .....अभी तक आप जिसको सुंदर लाल के नाम से जानते आयें हैं .....उनका असली नाम अविनाश है ......बैंक में  काम करते  हैं ...और आनंद के बचपन के मित्र हैं .....वो तो आप लोग जानते ही हैं ...

राधा .....ये जो जिदंगी है न ....किसी के लिए रूकती नहीं है और वक़्त इसका इंजन है ....बस ये छुक - छुक कर के नहीं टिक टिक कर के चलती है .......आनंद ने बस एक गलती करी और अपनी जिन्दगी दे कर उसका मोल चुकाया।

कौन सी गलती .....अविनाश  ?

मैंने उसको इक सलाह दी थी .....

क्या ,,,,सलाह ...?

यही की " बड़े लोगों से मिलने में हमेशा फासला रखना, दरिया जहाँ समंदर से मिला, फिर दरिया नहीं रहता ..."
उसकी ये आदत की जैसा वो है वैसे ही सब हैं ............उसको इस लोक से उस लोक में  ले गयी ...

अविनाश ...किसी की मजबूरी भी तो हो सकती है .....यूँ ही कोई बेवफा नहीं होता।

संभव है ......राधा ....बिलकुल संभव है। लेकिन जब हम प्रेम करते है या प्रेम में  पड़ते हैं ....तब किसी की सलाह तो नहीं लेते .........की मैं   इससे या उससे प्रेम कर लूँ ......तो पीछे हटने में दूसरों की सलाह क्यों .......फिर वो कोई भी क्यों न हो ........

मैं कुछ समझी नहीं .... अविनाश ....

मत समझो ......यही अच्छा है ...मैंने दोनों को समझा .......

फिर ....?

फिर क्या .....शीशे का खिलौना था , कुछ न कुछ तो होना था ...हुआ।

अविनाश ......

कुछ मत कहो राधा .......





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