किश्तों में खुदकशी ....
क्यों ....... हो नहीं सकती ....क्या ???
पता नहीं ..... अविनाश।
यादे .........किश्तों में ही मारती हैं ........ हर लम्हे मारती हैं, ये क्या खुदकशी से कम है ....... राधा।
लो ये पढो .......
भूल जाना भी एक तरह की नेमत है फ़राज़ ,
वरना इंसान को पागल न बना दे यादें ........
अविनाश ........एक पहेली है आनंद .....अपने आप में . ..... क्या था ..क्या दिखता था ...... क्या अपने आप को दिखाया उसने ......ऐसा क्यों .........अविनाश .
मैंने भी ये सवाल उससे कई बार पूंछा .......और हर बार उसने टाला ....या बात को घुमाया ........लेकिन एक दिन तो में पीछे पद ही गया और जवाब ले ही लिया ........
अच्छा ......क्या जवाब दिया आनंद ने ...बोलो न ..... बताओ न ......अविनाश।
क्या बताऊँ ....... कुछ देर तक वो मेरी तरफ देखता रहा ....कहा .....सुंदर लाल .....कैसे समझाऊं ......मैं अपने आप में , अपने अंदर बहुत रेगिस्तान हूँ ......लोग होंठो की हंसी के अलावा अंदर तो उतरना ही नहीं चाहते ...और जरूरत भी किसको है .......और वक़्त भी किस के पास है ......सुंदर। और जब रिश्ते जरूरत पर based होने लगे ......तो ..............
पता नहीं क्यों .......लोग रिश्ते की नजाकत को , गंभीरता को मुंह से निकले शब्दों से नापते हैं ......जबकि रिश्ते वो सच्चे होते हैं .....जो शब्दों से परे होते हैं .......जो अभिव्यक्ति से परे होते हैं। जो ये कहता है की I love you......मैं उसे झूठा मानता हूँ .......क्योंकि प्रेमी को तो ये पता ही नहीं होता या नहीं होना चाहिए की वो प्रेम करता भी है या नहीं .....
" हमारे हुस्न की इस बेरुखी से था तुम्हे शिकवा,
मगर सच ये की न था कोई मेरा चाहने वाला ..............
आनंद इस शेर में ....."तुम्हे " कौन है ........ ये प्रश्न मैंने उससे पूंछा ......
और जवाब ......
जवाब ............बिलकुल ....आनंद style का .....
तोहमतें तो मुझ पर हैं एक से एक नयी ......
खूबसूरत था जो इल्जाम वो नाम तेरा था .......
चाय पियोगे सुंदर ........आनंद का बात को घुमाने का चिर परिचित अंदाज .....
क्यों ....... हो नहीं सकती ....क्या ???
पता नहीं ..... अविनाश।
यादे .........किश्तों में ही मारती हैं ........ हर लम्हे मारती हैं, ये क्या खुदकशी से कम है ....... राधा।
लो ये पढो .......
भूल जाना भी एक तरह की नेमत है फ़राज़ ,
वरना इंसान को पागल न बना दे यादें ........
अविनाश ........एक पहेली है आनंद .....अपने आप में . ..... क्या था ..क्या दिखता था ...... क्या अपने आप को दिखाया उसने ......ऐसा क्यों .........अविनाश .
मैंने भी ये सवाल उससे कई बार पूंछा .......और हर बार उसने टाला ....या बात को घुमाया ........लेकिन एक दिन तो में पीछे पद ही गया और जवाब ले ही लिया ........
अच्छा ......क्या जवाब दिया आनंद ने ...बोलो न ..... बताओ न ......अविनाश।
क्या बताऊँ ....... कुछ देर तक वो मेरी तरफ देखता रहा ....कहा .....सुंदर लाल .....कैसे समझाऊं ......मैं अपने आप में , अपने अंदर बहुत रेगिस्तान हूँ ......लोग होंठो की हंसी के अलावा अंदर तो उतरना ही नहीं चाहते ...और जरूरत भी किसको है .......और वक़्त भी किस के पास है ......सुंदर। और जब रिश्ते जरूरत पर based होने लगे ......तो ..............
पता नहीं क्यों .......लोग रिश्ते की नजाकत को , गंभीरता को मुंह से निकले शब्दों से नापते हैं ......जबकि रिश्ते वो सच्चे होते हैं .....जो शब्दों से परे होते हैं .......जो अभिव्यक्ति से परे होते हैं। जो ये कहता है की I love you......मैं उसे झूठा मानता हूँ .......क्योंकि प्रेमी को तो ये पता ही नहीं होता या नहीं होना चाहिए की वो प्रेम करता भी है या नहीं .....
" हमारे हुस्न की इस बेरुखी से था तुम्हे शिकवा,
मगर सच ये की न था कोई मेरा चाहने वाला ..............
आनंद इस शेर में ....."तुम्हे " कौन है ........ ये प्रश्न मैंने उससे पूंछा ......
और जवाब ......
जवाब ............बिलकुल ....आनंद style का .....
तोहमतें तो मुझ पर हैं एक से एक नयी ......
खूबसूरत था जो इल्जाम वो नाम तेरा था .......
चाय पियोगे सुंदर ........आनंद का बात को घुमाने का चिर परिचित अंदाज .....
2 comments:
क्योंकि प्रेमी को तो ये पता ही नहीं होता या नहीं होना चाहिए की वो प्रेम करता भी है या नहीं .....
यही तो प्रेम की पराकाष्ठा होती है मगर आज भौतिकता ने सब खत्म कर दिया।
पता नहीं क्यों .......लोग रिश्ते की नजाकत को , गंभीरता को मुंह से निकले शब्दों से नापते हैं ......जबकि रिश्ते वो सच्चे होते हैं .....जो शब्दों से परे होते हैं .......जो अभिव्यक्ति से परे होते हैं। जो ये कहता है की I love you......मैं उसे झूठा मानता हूँ .......क्योंकि प्रेमी को तो ये पता ही नहीं होता या नहीं होना चाहिए की वो प्रेम करता भी है या नहीं ..
...लाज़वाब! बहुत सटीक और भावपूर्ण अभिव्यक्ति..
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