Thursday, September 20, 2012

शीशे का खिलौना ....3

 हर  एक आदमी में  होते हैं दस बीस आदमी,
जब भी किसी  को देखना ........ कई बार  .......देखना। ................लो चाय लो राधा  .....अविनाश ने ये एक शेर सुनाई राधा को चाय देते हुए ........सुनी तो होगी ....ये शेर राधा ....

हाँ ...... अविनाश। यहाँ  इसका जिक्र क्यों .........बोलो तो ......

एक   हल्की  सी मुस्कराहट के साथ अविनाश  ने कहा ......क्या बताऊँ राधा ....कितने किरदार जीता था अपने अंदर वो आदमी .............लेकिन  कोई उसकी गहराई न नाप पाया ...... मुझे भी कई चीज़ों से , कई बातों से महरूम रखा उसने। ..........बिलकुल Gemini राशि , मिथुन राशि वाला था न .........लगभग सारे लोग जो ये जानता थे की आनंद की राशि मिथुन है ......उन सबका  एक ही विचार था ......अरे भाई मिथुन राशि   वालों से तो दूर  ही रहो ....अंदर कुछ और बाहर कुछ ....... लेकिन सब ने negative ही लिया ......

जब भी करता है कोई प्यार की बातें,
हम शहर के शहर सितारों में सजा लेते हैं।

"मुझे अब आप के support की कोई जरूरत नहीं है ..... और ऐसा मैंनेकिया  ही क्या ......."

ये क्या है ......अविनाश ......ये तो कोई शेर भी नहीं लगती ....

और ये शेर है भी नहीं ......लेकिन ये है क्या .....ये मुझे भी नहीं पता ........

नहीं वो तो ठीक है .... लेकिन अचानक तुमने ये sentence क्यों बोला .....

मैंने नहीं बोला ......राधा। ये वाक्य आनंद ने कई पन्नों पर लिखा ...मैं भी सोच रहा हूँ ....की इसके पीछे क्या हो सकता है। आगे सुनोगी .........

बोलो ....... अविनाश।

हम तो  आगाज़े  मुहब्बत में  ही लुट गए फ़राज़,
लोग तो कहते थे की अंजाम बुरा होता है .............

तो क्या बात ज्योति पर  आ के रूकती है ....अविनाश

पता नहीं ....राधा। कुछ कहना मुश्किल है . आनंद जैसा निर्मोही ......मुहब्बत में इतना गहरा उतर गया .....विश्वास नहीं होता ......और सच बताऊँ .... तो उसको खुद भी नहीं एहसास रहा होगा। और फर्श से अर्श तक का सफर तय करने में ...जिन्दगियाँ ....लग जाती हैं।

मेरे शिकवों पे उस ने हंस कर  कहा फ़राज़,
किस ने की थी वफ़ा जो हम करते .....

Interesting .............. है न अविनाश। ......

Yes...it is. 

तुम ने सारे papers पढ़ लिए ...... अविनाश ......?

नहीं राधा .........

और क्या लिखा है कुछ बताओ .....

भूले है रफ्ता रफ्ता उन्हें मुद्दतों में हम,
किश्तों में खुदकशी का मजा हम से पूंछईए .....

किश्तों में  खुदकशी .....................अविनाश ...

2 comments:

vandana gupta said...

किश्तों में खुदकशी का मजा हम से पूंछईए .....
आह !

vandana gupta said...

……… कर रही हूँ मैं
हाँ ..........यही है मेरी नियति
जीना यूँ तो मुकम्मल कोई जी ना पाया
फिर मेरा जीवन तो यूँ भी
जलती लकड़ी है चूल्हे की
जिसमे बची रहती है आग
बुझने के बाद भी
सुबह से जली लकड़ी
शाम तक सुलगती रही
मगर राख ना हुई
एक भुरभुराता अस्तित्व
जिसे कोई हाथ नहीं लगाना चाहता
जानता है हाथ लगाते ही
हाथ गंदे हो जायेंगे
और राख का कहो तो कौन तिलक लगाता है
जो बरसों सुलगती रही
मगर फिर भी ना ख़त्म हुई
इसलिए एक दिन सोचा
क्यूँ ना ख़ुदकुशी कर लूँ
मगर मज़ा क्या है उस ख़ुदकुशी में
जो एक झटके में ही सिमट गयी
मज़ा तो तब आता है
जब ख़ुदकुशी भी हो ..........मगर किश्तों में
और बस उसी दिन निर्णय हो गया
और मैंने रूप लकड़ी का रख लिया
अब जीते हुए ख़ुदकुशी का मज़ा यूँ ही तो नहीं लिया जाता ना …………