आनंद नहीं रहा.......यकीन नहीं हो रहा है।......अरी ज्योति बिटिया।........ये तो मालिन माँ है।........
आओ मालिन माँ ............
बिटिया....तेरा आनंद गया .......मालिन माँ ........जिन्होंने आनंद के हर रूप को देखा है।.....बेटे की तरह माना था।.....अब वो नहीं है।.....
बिटिया।..ये चाभी रख ले उसके घर की।......मैं तो गाँव वापस जा रहीं हूँ।.....अब इस गाँव में क्या रह गया।
अरे मालिन।........यहाँ आओ।................ज्योति की माँ ने मालिन माँ को बुलाया। उनको सब जानना था। वो अभी भी ये मानने को राजी नहीं की आनंद नहीं रहा।
ये सच है क्या मालिन।......
हाँ चाची ....
पिछले दो महीनो से बहुत परेशान था।......खाना पीना छोड़ कर सिर्फ चाय और चुरुट ........कितना समझाया , कितना पूंछा ...लेकिन दिल नहीं खोल पाया। पता नहीं किस सदमे को पी रहा था।.......एक दिन सवेरे सवेरे झोला लेकर चल दिया.....मैंने सोचा टहलने जा रहा होगा , सो मैंने भी कुछ नहीं पूंछा ........दोपहर तक कोई पता नहीं।......तीसरे पहर संदेशा आया।.....की वो नहीं रहा।......लो चाची ....ये चाभी .....उसका सारा सामन.......घर पर है।....मैं न रह पाउंगी ...मालिन तो चली गयीं।....
ज्योति ...इस पशोपेश में की अब क्या करे........लेकिन रसम अदायगी तो करनी पड़ती है।.....ज्योति ने हिम्मत करी और उसने खंडहर मैं जाने का निश्चय किया।.........आनंद का घर ....अब यादों का खंडहर बन गया था।.......दरवाजा खोल ज्योति अंदर आई।......तो चीजें जैसे उसे तब मिलती थीं बिलकुल वैसी ही थीं।......गेंदे के फूल वैसे ही लहरा रहे थे।.....गुलाब की कतारें वैसे ही झूम रहीं थी।...गुलाब को देख कर ज्योत को याद आया की इसी गुलाब के पास खड़े होने को कहा था एक बार आनंद ने की देखें गुलाब तुम्हारे सामने टिकता है की नहीं।.... कहीं से कोई निशाँ ऐसा नहीं था जो आनंद के न रहने का पता दे रहे हों....शायद कहीं गए हैं अभी आ जायेंगे।....
कलम मेज पर खुला पड़ा है, शायद कुछ लिख रहे होंगे.........पन्ने हवा से उड़ रहे थे।......किताबों पर धूल की परत जमी हुई थी...........आनंद एक ना हारने वाला इन्सान .....आनंद ने ज्योति को कितनी बार समझाया .....
मुसीबतों से उभरती है शक्सियत यारो
जो पत्थरों से न उलझे वो आइना क्या है...
ओफ्फो .......कौन सा पन्ना ....है ये.......
ज्योति.........संभव है जब तुम ये पढ़ रही हो।....मैं काफी दूर निकल गया हूँ।....याद है ज्योति तुम एक बार बहुत परेशान थीं।.....जब मैंने तुमसे कहा था।....की लक्ष्मी बाई का ध्यान करो।....जो माँ के रूप अपने बच्चे को दूध पिला सकती है।..और जरूरत पड़ने पर बच्चे को पीठ पर बाँध कर द्दुश्मनो से लोहा भी ले सकती है।.......
हम ने माना की तगाफुल न क रोगे लेकिन,
ख़ाक हो जायेंगे हम तुमको खबर होने तक
अंतिम संस्कार ......आग अभी ठंडी नहीं हुई है।
..जारी है।..
1 comment:
यही है शायद जीवन
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