दिन बीतते गए वक़्त गुजरता गया..........लोग मिलते रहे , लोग जुदा होते रहे।..... बहुत कम लोग ऐसे मिले जो आनंद के जीवन पर छाप छोड़ गए......आज वक़्त मिला तो आनंद ने अपने आप को पलट देखा... जिसे जानता था वो, आनंद अब कहीं नहीं है।....
वक़्त क़ी आग ने आनंद को तपा तपा कर .....बहुत मजबूत बना दिया है।... आनंद .........अब इसमे भी आनंद का अनुभव कर रहा है ......क्या पता इस में क्या अच्छाई छिपी है।.....रेगिस्तान में खड़े खजूर के पेड़ को देखो ........... हाँ ......आनंद अब वो है।......गरम हवा और गरम रेत .........पता नहीं नियति उसको किस दिशा में ले ज़ा रही हैं।.....
कहाँ तक लडे ..............कहाँ तक........थक गया है ....वो......
लेकिन आराम करने क़ी मनाही है........जहर पीते पीते जिगर छलनी हो गया है।.......
तो ........क्या करेगा आनंद ....... अब ..
सवाल तो बहुत हैं।...... मगर जवाब कौन दे।......
कौन दे .........................
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