Wednesday, May 23, 2012

अंतिम संस्कार .............

और  फिर सब कुछ  खत्म........

खाक  ख़ाक  में  मिल गयी......

ज्योति.......मैं  कभी अपने लिए नहीं जिया...लेकिन बहुत अकेले  जिया.....बिलकुल अकेले।

सूखी शाखों पर तो हमने लहू छिड़का था फ़राज़
कलियां अब भी न खिलती तो कयामत होती............

अब जब की ये कहानी खत्म हो चली है।.....इसके पात्रों से एक  बार  फिर  आप  का तारुफ़  करता चलूँ ......

कहानी।..............

हाँ ...कहानी ही तो थी।......


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