मुहब्बत .............हमने माना ज़िन्दगी बर्बाद करती है
ये क्या कम है कि मर जाने पर दुनिया याद करती है.........
किसी के इश्क में दुनिया लूटा कर हम भी देखेंगे......
कौन कहता है मुहब्बत ज़िन्दगी बर्बाद करती है..........मुझे ख्वाहिश नहीं दुनिया को जीत लेने कि.......बस एक तुम्हारे दिल में बस जाऊं.....साथ हो जाऊं.....तो दुनिया.....आबाद हो जाए.......ये किस एहसास को ज़िंदा कर दिया तुमने......और उपर से ये फासले.....और ये मजबूरियाँ......मुहब्बत कि आग को और परवान चढ़ा रहीं हैं......त्तुम भी तो इसी दरिया से गुजर रही हो........आँखों के पानी से ये आग कब बुझी है.......ये तो और बढ़ी है.......यकीन ना मानो.....तो अपने दिल में झाँक कर देख लो.....हाँथ कंगन को आरसी क्या......लिखना....फिर मिटा देना....फिर लिखना..फिर मिटा देना.....ये हाल तुम्हारा ही नहीं.......मेरा भी है.....
उल्फत का मज़ा तब है, जब दोनों हों बेकरार....
दोनों तरफ हो आग, बराबर लगी हुई......
कब धीरे-धीरे तुम मेरे अंदर उतर गयीं....पता ही नहीं चला....ये कैसी ख़ुमारी पैदा कर दी तुमने.....नशा है मुझको....तुम्हारा नशा....आंखें तरस गयीं....तुमको देखने के लिए......मैं जानता हूँ.....ये एक स्वप्न जैसा है......लेकिन उम्मीद का दिया तो ज़िन्दगी का दिया बुझने के बाद ही बुझता है..........कितना इत्मीनान देता है......सिर्फ एक ये एहसास ...कि कहीं एक दिल है जो मेरे लिए भी धड़क रहा है......झूठ मानो तो पूंछ लो दिल से.......मैं कहूँगा तो रूठ जाओगे......ये भी किस्मत कि मजबूरी देखो.....कि..
जब नाम तेरा प्यार से लिखतीं है उंगलियाँ....
मेरी तरफ जमाने कि उठती हैं उंगलियाँ.
सच मानो एक बार सिर्फ एक बार.......कागज पर मेरा नाम लिखो.....और फिर देखो उस कागज को फाड़ने मैं...कितनी तकलीफ होती है.........मैं इस दौर से गुजर रहा हूँ...इसलिए तुम से बयाँ कर रहा हूँ......मैने तुमसे कहा था....कि तुम एक सागर हो...और मैं एक छोटी सी नदी....तुम मुझे अपने में ले क्यों नहीं लेतीं.....प्यार में दो कि गुंजाइश कहाँ होती.......
तुम ही तुम, तुम ही तुम, तुम ही तुम, तुम ही तुम,
जिधर देखें, जहाँ जाएँ.....
है ना पागलपन.....लेकिन वो प्यार ही क्या.....जिसमे "मैं" और "तुम" दोनों रह जाएँ....... वो नशा ही क्या जो सर चढ़ के ना बोले.....सही है ना....बोलो तो.
अब तो कुछ बोलो..........जो बात इस सीने में दफन हो गयी......वो दफन ही रहती है......बहने दो अपने आप को, एक अलह्र्ट नदी कि तरह, एक पहाड़ी झरने कि तरह......फूटने दो इसमे से कविता के स्वर.....दर्द के नहीं...प्रेम के.....देखों...पूरब में लाली छाने लगी है.....आज तुम रोकेगी नहीं अपने आप को......बहो....निर्झर बहो.....महसूस करो.....मुहब्बत कि इस दुनिया में तुम्हारा इंतज़ार है........
किसी नज़र को तेरा इंतजार आज भी है,
कहाँ हो तुम, कि ये दिल बेकरार आज भी है.......
रोको मत अपने आप को...पैरों में..लेकिन, किन्तु कि बेड़ियाँ मत डालो......
फूलो रे नीम फूलो....
ये क्या कम है कि मर जाने पर दुनिया याद करती है.........
किसी के इश्क में दुनिया लूटा कर हम भी देखेंगे......
कौन कहता है मुहब्बत ज़िन्दगी बर्बाद करती है..........मुझे ख्वाहिश नहीं दुनिया को जीत लेने कि.......बस एक तुम्हारे दिल में बस जाऊं.....साथ हो जाऊं.....तो दुनिया.....आबाद हो जाए.......ये किस एहसास को ज़िंदा कर दिया तुमने......और उपर से ये फासले.....और ये मजबूरियाँ......मुहब्बत कि आग को और परवान चढ़ा रहीं हैं......त्तुम भी तो इसी दरिया से गुजर रही हो........आँखों के पानी से ये आग कब बुझी है.......ये तो और बढ़ी है.......यकीन ना मानो.....तो अपने दिल में झाँक कर देख लो.....हाँथ कंगन को आरसी क्या......लिखना....फिर मिटा देना....फिर लिखना..फिर मिटा देना.....ये हाल तुम्हारा ही नहीं.......मेरा भी है.....
उल्फत का मज़ा तब है, जब दोनों हों बेकरार....
दोनों तरफ हो आग, बराबर लगी हुई......
कब धीरे-धीरे तुम मेरे अंदर उतर गयीं....पता ही नहीं चला....ये कैसी ख़ुमारी पैदा कर दी तुमने.....नशा है मुझको....तुम्हारा नशा....आंखें तरस गयीं....तुमको देखने के लिए......मैं जानता हूँ.....ये एक स्वप्न जैसा है......लेकिन उम्मीद का दिया तो ज़िन्दगी का दिया बुझने के बाद ही बुझता है..........कितना इत्मीनान देता है......सिर्फ एक ये एहसास ...कि कहीं एक दिल है जो मेरे लिए भी धड़क रहा है......झूठ मानो तो पूंछ लो दिल से.......मैं कहूँगा तो रूठ जाओगे......ये भी किस्मत कि मजबूरी देखो.....कि..
जब नाम तेरा प्यार से लिखतीं है उंगलियाँ....
मेरी तरफ जमाने कि उठती हैं उंगलियाँ.
सच मानो एक बार सिर्फ एक बार.......कागज पर मेरा नाम लिखो.....और फिर देखो उस कागज को फाड़ने मैं...कितनी तकलीफ होती है.........मैं इस दौर से गुजर रहा हूँ...इसलिए तुम से बयाँ कर रहा हूँ......मैने तुमसे कहा था....कि तुम एक सागर हो...और मैं एक छोटी सी नदी....तुम मुझे अपने में ले क्यों नहीं लेतीं.....प्यार में दो कि गुंजाइश कहाँ होती.......
तुम ही तुम, तुम ही तुम, तुम ही तुम, तुम ही तुम,
जिधर देखें, जहाँ जाएँ.....
है ना पागलपन.....लेकिन वो प्यार ही क्या.....जिसमे "मैं" और "तुम" दोनों रह जाएँ....... वो नशा ही क्या जो सर चढ़ के ना बोले.....सही है ना....बोलो तो.
अब तो कुछ बोलो..........जो बात इस सीने में दफन हो गयी......वो दफन ही रहती है......बहने दो अपने आप को, एक अलह्र्ट नदी कि तरह, एक पहाड़ी झरने कि तरह......फूटने दो इसमे से कविता के स्वर.....दर्द के नहीं...प्रेम के.....देखों...पूरब में लाली छाने लगी है.....आज तुम रोकेगी नहीं अपने आप को......बहो....निर्झर बहो.....महसूस करो.....मुहब्बत कि इस दुनिया में तुम्हारा इंतज़ार है........
किसी नज़र को तेरा इंतजार आज भी है,
कहाँ हो तुम, कि ये दिल बेकरार आज भी है.......
रोको मत अपने आप को...पैरों में..लेकिन, किन्तु कि बेड़ियाँ मत डालो......
फूलो रे नीम फूलो....
1 comment:
भावो का बिलबिलाता सागर
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