Friday, November 25, 2011

ना कर शुमार कि शह गिनी नहीं जाती......

कितनी देर हो गयी.....मदिर में खड़े खड़े...आज तो बरसात नहीं रुकेगी...वो देखो दक्षिण की तरफ...काले बादलों का समूह....तुम आज कहाँ फँस गयी..ज्योति...माँ भी चिंता कर रही होगी.....

बादल छंट भी जाते हैं....आनंद. बारिश रुक भी जाती है.....तुमको इतना परेशान पहले कभी नहीं देखा...

वो देखो नदी के किनारे....कितने आराम से बैलगाड़ी वाला गाना गाते हुए जा रहा है....ध्यान दो.....गाना भी सुना हुआ है.....याद है ये गाना....

कौन सा गाना...आनंद.

सूरज मुख न जइबे  न जइबे हाय राम...मेरी बिंदिया का रंग उड़ा जाए.....वो गाना सिर्फ गा ही नहीं रहा है...उसको जी रहा है....न उसको सुर की चिंता, न राग का डर.... कितना अच्छा गा रहा है....
चिंता, परेशानियां तो हेर एक की जिन्दगी में हैं...ज्योति....क्या ये हमारे खुश या नाखुश होने की शर्त हैं.....बोलो ज्योति....

नहीं आनंद.....शर्तों पर खुशियाँ नहीं आती. शर्तों पर प्यार नहीं होता... ईश्वर ने जिन्दगी तो शर्त पर नहीं दी...ना आनंद......

हाँ ज्योति....इसलिए तो में तुमको बेहिसाब जीने की राय अकसर देता रह्ता हूँ....

ना कर शुमार कि शह गिनी नहीं जाती,
ये जिन्दगी है हिसाबों से जी नहीं जाती....

और तुम आनंद....क्या तुम खुश हो....देखो सच बोलना...

हाँ ज्योति..मैं खुश हूँ....

सच....

बिलकुल सच.... ऐसा क्यों पूंछा तुमने...?

क्योंकि तुम्हारी जिन्दगी जीने का तरीका कितना सहज है.....

ज्योति....जब तेज हवा चलती है ना.....तो सिर्फ वही पेड़ या वही शाख बचती है.....जो लचक जाती है...जो पेड़ तन कर सीधे खड़े रहते हैं...वो टूट जाते हैं.....और मैं तो सब कुछ मौला को सौंप चूका हूँ....मेरे लिए अब जो कुछ भी उसकी मर्जी से है.....उसकी मर्जी ही है.....और उसकी मर्जी मे क्या अच्छाई है, या क्या बुराई है.....ये सोचना मेरा काम नहीं...है.....

मैं जानता हूँ....कि तुम भी मुझको लेकर कम परेशान नहीं हो.....लेकिन...परेशान हो कर तो काम नहीं सधता...हाँ कठिन समय मे...शांत रह कर ही तो रास्ता नकालता है ना....बोलो....बोलो तो.

मुहब्बत पे ये दुनिया यकीं कर के देखे  तो,
वहीँ रास्ता निकलता है, जहाँ रास्ता नहीं होता...

सब ठीक हो जायेगा.....ज्योति. तुम तो साथ हो ...ना...

अरे वो देखो हरिराम आ रहा है......उसको जानती हो ना....

हाँ जानती हूँ.....सुमिरन कि चाय कि दूकान पर काम करता है....और तुम्हारा तो अच्छा दोस्त होगा....

हाँ..सो तो है.....चाय तो लोगी ना....ऐसे मौसम मैं इसको भगवान् ने ही भेजा है....

आनंद....आप भी ना.....

अरे....हरिराम.....

अरे आनंद भैया.. आप यहाँ...अरे ज्योति दीदी..नमस्ते...

हरिराम...चाय ला देगा....और कुछ खाने को भी....ये ले बीस रुपए..

अभी लाया..भैया....

ज्योति.....जिन्दगी बहुत खूबसूरत है....अरे अगर मैं तुमको महीने मैं तीस दिन अगर मिठाई खिलाऊं तो खा लोगी.....

नहीं.....

कभी कभी कुछ तीखा , कुछ चटपटा खाने का भी मन करता है....ना. मिठाई का अपना स्वाद है तो मिर्चे का अपना.....दोनों स्वीकार हैं.....जिन्दगी तो है ही..सुख-दुःख का मिश्रण....

इसको जियो.....तुम भी , मैं भी..... तुम साथ हो ना......

आनंद......

कुछ मत कहो ज्योति......कुछ नहीं.

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