Tuesday, November 15, 2011

ये कहानी फिर सही....

सर्दी पाँव पसार रही है....सुबह और शाम एक गुलाबी सी ठंड.....कुछ नींद सी नहीं आ रही है....चलो बालकोनी में ही बैठता हूँ....कितनी जल्दी सड़कों पर सन्नाटा  छा जाता है न...सर्दियों में... अच्छा है....मैं इस सन्नाटे  में अपने आप से मिल लेता हूँ....

आकाशा कितना नीला और साफ़ है...और उसके उपर से चाँद..लगता है दूध से धुला हुआ....हल्की सी हवा भी चल रही है.....जरा पैरों पर शाल डाल लूँ....अच्छा लग रहा है....कहीं बुला रहा है मुझको कोई....मन मे विचारों की आपाधापी मची हुई है......क्या करूँ....कैसे समझाऊं इनको...कि

ऐसा तो कम ही होता है...वो भी हों तन्हाई भी....

आज आसमान को देख कर कितना सुख मिल रहा है.....जैसे दिन भर के झंझावातों को झेलनी के बाद ...कितना सुकून महसूस कर रहा हो......कितना सुकून..........महसूस करने दो.....मेरे विचार भी धीरे धीरे शांत हो रहें हैं.....जैसे किसी तूफ़ान के बाद सागर... डर लगने लगा है...अब शान्ति से....आदत है तूफानों से दो-चार होने कि....

बहुत कुछ बिखरा हुआ है..समटने दो...हाँ वक़्त तो लगेगा ही.... क्या करूँ....बाहर  का बिखराव हो समेट  कर किनारे कर दूँ....लेकिन ये तो अंदर का बिखराव है...अब तो ये भी भूल गया हूँ..कि कौन सी चीज़ कहाँ राखी थी.....क्या करूँ.....  बोलो  तो.....अरे ...तुम तो अब बोलोगे भी नहीं.....हाँ देखो ...मुझसे मत बोलना....श....श....श.................

इतना सन्नाटा है...अपनी सांस की आवाज़ भी सुनाई पड़ रही है..... क्या तुम किनारा कर लोगे....

कर लोगे....? अरे मैं तो अकेला ही रह गया हूँ.....

मैं तो ग़ज़ल सुना के अकेला खड़ा रहा....
सब अपने अपने चाहने वालों में खो गए....

ला माँ....एक कप चाय दे दे....क्या १२:३० बज गए.....माँ....वक़्त ने चलना छोड़ दिया है....और लोगों के साथ उसने भी दौड़ना सीख लिया.....पता नहीं.....किसी को कुछ भी पसंद नहीं आएगा...लेकिन में क्या करूँ.......

एक रस्मे बेवफाई थी, वो भी हुई तमाम,
वो बेवफा दोस्त हमे बेहद अज़ीज़ था.....

सोना बनने की ख्वाहिश...और आग से तपने में डर..... ऐसा थोड़ी होता है....ये कहानी फिर सही....

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