मै पत्र को हाँथ मे पकडे वहीं सोफे पर बैठ गयी.........क्या मेरी दुनिया खत्म...?
मंदिर जाऊं.....ना जाऊं..... जाईं... ना जाऊं......
जाऊं तो क्यों जाऊं....... ना जाऊं तो क्या ना जाऊं........ ये किस तरह के जाल मे फंसा कर चले गए........
तुम ऐसे जा नहीं सकते.......मेरा विश्वास इतना कमजोर नहीं है.
कब मै उठी... और कब मंदिर कि तरफ चल दी.... पता नहीं......
हवा को क्या हो गया है...... इतनी तेज.....आंधी तो नहीं..... अब और आंधी क्या आएगी......
मंदिर आ गया.......पंडित जी खामोश बैठे हैं, अंजलि कि आंखे सूख चुकी हैं..... अब इनसे क्या पूंछू..... या कैसे पूंछू कि फ़कीर कहाँ है......
पंडित जी ने मुझे देखा..... हाँथ से बरगद के पेड़ कि तरफ इशारा कर दिया और खामोश. मै पेड़ कि तरफ बढ़ी और रुकी..... क्या कर रहे हो...... कैसे देखोगी उसको........ अंजलि मेरे पास आई.... और मेरा हाँथ पकड़ कर पेड़ के तरफ ले चली......दीदी.... ये प्यार बाँटते थे.....
शांत, ध्यान मे मग्न...... मन मानने को तैयार नहीं कि ये नहीं हैं...... वापस पंडित जी के पास ..... सब कुछ जाने के लिए.
कैसे हुआ ..... बाबा?
बेटी..... दीवाली से ३ रोज़ पहले आया था..... बिलकुल खामोश. प्रणाम करके मंदिर के अंदर चला गया और अपनी कृष्ण से बाते करता रहा....... बाहर आया..... एक कप चाय मांगी...... और तब से पेड़ के नीचे इसी मुद्रा में हैं..... ना खाना, ना पानी...... मेरी भी इतनी भी हिम्मत नहीं कि हाँथ पकड़ कर देखूं कि नब्ज चल रही है कि नहीं.......
ऐसा मत बोलो बाबा.....
अंजलि.... मेरे कमरे में खूटी पर उसको झोला टंगा है...ला दे बिटिया.
अभी लाई बाबा..
ये लो......
लो बेटी... ये उसका झोला है...... जो उसने खुद मुझे दिया कि बाबा इसको अपने पास रख लो.....
मैने झोला में से सामान निकला..... एक डायरी, कलम, घडी, १२ रुपए और एक चिलम.
उत्सुकता .... डायरी खोल कर पढने कि...... पहला पन्ना....२४/०५/२००४.
माँ...... " इस जमाने के लायक कैसे बनूँ.....इतना नीचपन मेरे बस का नहीं..." तुम तो चली गयी...... दुनिया बिखर के रह गयी.
१२/०७/२००४- भाई साहब के घर गया , एक कप चाय हाँथ मे देती हुए भाभी ने पूंछा.... भैया कितने दिन कि छुट्टी ली है...? माँ.....मे एक दिन रुक कर चला गया.
डायरी का पाचवां पन्ना...... पैदल चलते आज ढाई महीन हो गया.... अब तो भिक्षा मांगने कि आदत पड़ गयी..... २ रोटी मे काम चल जाता है. कुछ गाँव वाले तो मुझे २ रोटी वाला फ़कीर कहने लगे हैं.
डायरी के अंतिम कुछ पृष्ठ....आज भारत के द्कस्हीं हिस्से मे पहुँच गया......देखो तपस्वनी के दर्शन होते हैं कि नहीं....... सुना था कि इसी गाँव मे रहती है.....
प्रेम......अगर व्यक्त करके समझाना पड़ा... तो प्रेम मे कमी है..... दिया कभी जल कर नहीं कहता कि मै जल गया, उसकी रौशनी बताती है. कभी ना कभी तो उस तपस्वनी को पता चलेगा.... कि यू ही कोई फ़कीर नहीं बन जाता. मै इस गाँव के कृष्ण मंदिर में रहूंगा.... कुछ दिन.....
अपने उद्गम को लौट रही, अब बहना छोड़ नदी मेरी.
छोटे से अणु मे सिमट रही, ये जीवन की पृथ्वी मेरी.
बाबा....अब आप क्या करोगे.....
ये कहाँ का था....... बिटिया...वहाँ भिजवा दे........
ये कहीं का नहीं था..... और ये सब का था..... इसलिए आज इसका कोई नहीं है.
लेकिन... फ़कीर...... तुम जानते हो ना....मै कितनी जिद्दी हूँ.....
इस बार ये जिद तुम्हारे कृष्ण से.....
सुनते हैं कि मिल जाती है हर चीज़ दुआ से,
एक रोज़ तुम्हें मांग के देखेंगे ख़ुदा से.
Sunday, November 28, 2010
Wednesday, November 24, 2010
इसलिए ये पत्र लिखा.....
दीदी......... अंजलि की हांफती हुई आवाज़.
क्या है..... क्यों हांफ रही है....... अरे तू तो रो रही है...... क्या हुआ....? बाबा तो ठीक हैं ना.....
दीदी..............
ले पानी पी...... अब बता क्या हुआ.......?
दीदी........ फ़कीर.............
अरे क्या हुआ फ़कीर को....... वो तो धनुषकोटि में हैं ना......
नहीं दीदी.........
वहाँ गए थे......... लेकिन दिवाली से कुछ दिन पहले ही मंदिर मे आये और वहीं रह रहे थे......
थे...... मतलब ?
अब वो नहीं हैं........
चले गए......कहीं..... बिना बताये गायब हो जाने की आदत से मे वाकिफ थी.
हाँ.... दीदी.... फ़कीर ... चले गए...... लेकिन शरीर यहीं छोड़ कर गए.....
क्या...............?
हाँ दीदी....... फ़कीर नहीं रहे.
............................................... कैसे अंजलि.... वो कब आये ............
में सोचती ही रह गयी..... की अभी कुछ दिन पहले ही तो मैने तय किया था..... की कोई रिश्ता नहीं रखूंगी उनसे. क्या बुरा मान गए......
दीदी.... आप मंदिर आ रहे हो ना..... अंजलि का भीगा हुआ स्वर.
नहीं..... मै ना आ पाउंगी. कैसे कहूँ..... कि मैं क्यों नहीं आ सकती
अच्छा दीदी....... मैं जाती हूँ.... अंजलि धीरे धीरे चली गयी.
दीदी....... ये पर्चा फ़कीर कि जेब से मिला .... किसी तपस्वनी को लिखा है......
दिखा तो.....
"मै कभी अपने दिल कि बात तुमको बता ना सका..... मैने तो तुमको तपस्वनी समझ लिया, लेकिन तुम कैसे चुक गयी...... कि मै फ़कीर बन गया. तुम मेरे साथ या मेरे पास नहीं थीं... लेकिन मै तुमको अपनी शक्ति समझता था, समझता हूँ.... लेकिन पिछले कुछ दिनों से .... ना जाने क्यों....... एक अजीब सा अकलेपन समाता जा रहा था मुझमे. लग रहा था कि किसी अपने ने दामन समेटने कि प्रक्रिया शुरू कि है और मेरा तुम्हारे सिवा कोई नहीं था. मैं बोल नहीं पाया...... कभी भी.... मुझे लगता था... कि तुम समझती हो...... और तुम समझती भी हो..... लेकिन......
तुमको याद होगा ....... एक दिन मैने तुमसे कहा था...... कि ऐसा लगता है कि मेरे अंदर वो शक्ति है कि मैं जब चाहूँ.... शरीर छोड़ सकता हूँ......... आज मै ध्यान मै बैठ रहा हूँ...... इस विचार के साथ..... कि बस और नहीं....अगर हो सके तो मुझे समझने कि कोशिश , एक बार और करना......मै उतना बुरा नहीं था..... जितना मुझे समझा गया........ अपना बहुत ध्यान रखना. कई बार तुमसे मुलाक़ात कि चेष्टा भी करी... लेकिन... पंडित और मोलविओं के डर से कदम ना उठ सके.
तुमने ... हमेशा संबंधो को बनाये रखने कि कोशिश कि.... और ये बात मुझसे अच्छा और कौन जानता है. अगर इस पत्र को पढ़कर तुम्हारी पलकों पर एक भी आंसू आया....... तो मैं समझूंगा कि ज़िन्दगी काम आ गयी.
मेरे मौला, इस तपस्वनी कि ज़िन्दगी मे इतनी ख़ुशी भर दे...... कि इसको कभी भी मेरी याद ना आये......
मै जानता हूँ कि तुम मेरे आखरी वक़्त मे मेरे पास नहीं आओगी........ इसलिए ये पत्र लिखा.....
क्या है..... क्यों हांफ रही है....... अरे तू तो रो रही है...... क्या हुआ....? बाबा तो ठीक हैं ना.....
दीदी..............
ले पानी पी...... अब बता क्या हुआ.......?
दीदी........ फ़कीर.............
अरे क्या हुआ फ़कीर को....... वो तो धनुषकोटि में हैं ना......
नहीं दीदी.........
वहाँ गए थे......... लेकिन दिवाली से कुछ दिन पहले ही मंदिर मे आये और वहीं रह रहे थे......
थे...... मतलब ?
अब वो नहीं हैं........
चले गए......कहीं..... बिना बताये गायब हो जाने की आदत से मे वाकिफ थी.
हाँ.... दीदी.... फ़कीर ... चले गए...... लेकिन शरीर यहीं छोड़ कर गए.....
क्या...............?
हाँ दीदी....... फ़कीर नहीं रहे.
............................................... कैसे अंजलि.... वो कब आये ............
में सोचती ही रह गयी..... की अभी कुछ दिन पहले ही तो मैने तय किया था..... की कोई रिश्ता नहीं रखूंगी उनसे. क्या बुरा मान गए......
दीदी.... आप मंदिर आ रहे हो ना..... अंजलि का भीगा हुआ स्वर.
नहीं..... मै ना आ पाउंगी. कैसे कहूँ..... कि मैं क्यों नहीं आ सकती
अच्छा दीदी....... मैं जाती हूँ.... अंजलि धीरे धीरे चली गयी.
दीदी....... ये पर्चा फ़कीर कि जेब से मिला .... किसी तपस्वनी को लिखा है......
दिखा तो.....
"मै कभी अपने दिल कि बात तुमको बता ना सका..... मैने तो तुमको तपस्वनी समझ लिया, लेकिन तुम कैसे चुक गयी...... कि मै फ़कीर बन गया. तुम मेरे साथ या मेरे पास नहीं थीं... लेकिन मै तुमको अपनी शक्ति समझता था, समझता हूँ.... लेकिन पिछले कुछ दिनों से .... ना जाने क्यों....... एक अजीब सा अकलेपन समाता जा रहा था मुझमे. लग रहा था कि किसी अपने ने दामन समेटने कि प्रक्रिया शुरू कि है और मेरा तुम्हारे सिवा कोई नहीं था. मैं बोल नहीं पाया...... कभी भी.... मुझे लगता था... कि तुम समझती हो...... और तुम समझती भी हो..... लेकिन......
तुमको याद होगा ....... एक दिन मैने तुमसे कहा था...... कि ऐसा लगता है कि मेरे अंदर वो शक्ति है कि मैं जब चाहूँ.... शरीर छोड़ सकता हूँ......... आज मै ध्यान मै बैठ रहा हूँ...... इस विचार के साथ..... कि बस और नहीं....अगर हो सके तो मुझे समझने कि कोशिश , एक बार और करना......मै उतना बुरा नहीं था..... जितना मुझे समझा गया........ अपना बहुत ध्यान रखना. कई बार तुमसे मुलाक़ात कि चेष्टा भी करी... लेकिन... पंडित और मोलविओं के डर से कदम ना उठ सके.
तुमने ... हमेशा संबंधो को बनाये रखने कि कोशिश कि.... और ये बात मुझसे अच्छा और कौन जानता है. अगर इस पत्र को पढ़कर तुम्हारी पलकों पर एक भी आंसू आया....... तो मैं समझूंगा कि ज़िन्दगी काम आ गयी.
मेरे मौला, इस तपस्वनी कि ज़िन्दगी मे इतनी ख़ुशी भर दे...... कि इसको कभी भी मेरी याद ना आये......
मै जानता हूँ कि तुम मेरे आखरी वक़्त मे मेरे पास नहीं आओगी........ इसलिए ये पत्र लिखा.....
Wednesday, November 17, 2010
पैसा, मकान और गाड़ी है....?
छि..... मिसेज श्रीवास्तव को देखा है...?
क्यों क्या हुआ...?
कल भी वही साड़ी पहनी थी... जो पिछले महीने पहनी थी...
अरे..... उसके पास कपड़े होंगे नहीं....
बाते तो बहुत उसूलों की करती है.....
गाड़ी देखी है उसकी..... मारुती ८०० चलाती है....
हुं .......
सक्सेना जी ने दूसरा मकान खरीद लिया......
wow .......
अरे.... सक्सेना जी तो हीरा हैं......सब कुछ है उनके पास .....अभी नई गाड़ी ली है.... ऊफ.... My God ....
अरे... ये लो... मेरी ५०० की चाल.
अरे धनीराम...... जरा फ्रिज से बियर की २ ठंडी बोतल तो निकाल दे..... और एक प्लेट नमकीन भी ला दे.
जी मेमसाहब.....
सुन....... मिसेज श्रीवास्तव के कान के टॉप्स देखे......
अरे...हाँ..... चोर बाज़ार मे जा कर खरीद लिए होंगे.... नया खरीदने की ताकत है.... उनमे..?
सक्सेना साहब ने अपनी wife को ९००० रुपए का चश्मा गिफ्ट किया ... इस बार....
My My ..... 9000 rupees . He is ............... oh My ....
चल.... चल..... अपनी चाल चल...
अपनी चाल चलने का ही तो मौका नहीं मिल रहा है.... रे.
क्यों क्या हुआ...?
कल भी वही साड़ी पहनी थी... जो पिछले महीने पहनी थी...
अरे..... उसके पास कपड़े होंगे नहीं....
बाते तो बहुत उसूलों की करती है.....
गाड़ी देखी है उसकी..... मारुती ८०० चलाती है....
हुं .......
सक्सेना जी ने दूसरा मकान खरीद लिया......
wow .......
अरे.... सक्सेना जी तो हीरा हैं......सब कुछ है उनके पास .....अभी नई गाड़ी ली है.... ऊफ.... My God ....
अरे... ये लो... मेरी ५०० की चाल.
अरे धनीराम...... जरा फ्रिज से बियर की २ ठंडी बोतल तो निकाल दे..... और एक प्लेट नमकीन भी ला दे.
जी मेमसाहब.....
सुन....... मिसेज श्रीवास्तव के कान के टॉप्स देखे......
अरे...हाँ..... चोर बाज़ार मे जा कर खरीद लिए होंगे.... नया खरीदने की ताकत है.... उनमे..?
सक्सेना साहब ने अपनी wife को ९००० रुपए का चश्मा गिफ्ट किया ... इस बार....
My My ..... 9000 rupees . He is ............... oh My ....
चल.... चल..... अपनी चाल चल...
अपनी चाल चलने का ही तो मौका नहीं मिल रहा है.... रे.
Tuesday, November 16, 2010
ये ब्लॉग..... धोखा और विश्वास्घातकों के नाम.....
ये ब्लॉग..... धोखा और विश्वास्घातकों के नाम.....
क्या करूँ..... मेरी उल्टी खोपड़ी है...... विश्वास और विश्वास करने वालों के उपर तो अनेक ग्रन्थ लिखे जा चुके हैं. लेकिन इन बेचारे विश्वास्घातकों के बारे में कोई कुछ नहीं कहता..... सब गालियाँ देते है , कोसते हैं..... ठीक है वो काम ही ऐसा करते हैं..... लेकिन वो दया के पात्र हैं......आप का पता नहीं.... लेकिन मुझे दया आती उन पर..... इसलिए ये ब्लॉग उनको समर्पित है.....
सुनो बंधुओं..... ये जो विश्वासघातक है... ये एक विशिष्ट प्रकार की निम्न श्रेणी मे आते है. इनसे नीचे श्रेणी नहीं होती या यहाँ पर श्रेणी खत्म हो जाती है. ये देखने मे काफी सभ्य और सु-संस्क्रत लगते है. और विनम्रता इनका आभूषण होता है..... या यूँ कह लीजिये विनम्रता इनका हथियार होता है. ये इतनी बारीकी से वार करते हैं..... की चोट खा ने वाला काफी समय तक तो समझ ही नहीं पाता की ये वार उसका ही है.
अब जरा सोचिये..... ईसा मसीह अपने बारह चुनिंदा शिष्यों के साथ भोजन कर रहे हैं..... एक शिष्य आता है... घुटनों के बल बैठता है... और उनका हाँथ अपने हाँथ मे लेकर चूमता है.......बस.... तभी सिपाही आते है..... और ईसा मसीह गिरफ्तार..... कितना फ़िल्मी प्लाट है.... लेकिन सत्य है. ...... अब , अगर कोई आप के सामने घुटनों पर बैठ कर , आप का हाँथ चूमता है...... तो आप क्या करेंगे या करेंगी........ या तो उसके मुँह पर झनाटेदार थप्पड़ रसीद करेंगी या अपनी इज्ज़त आफजाई समझेंगी..... लेकिन ...... उसका अगला कदम क्या होगा......... उफ , अल्लाह, अब ये भी क्या मै ही बताऊँ....?
सीन नंबर. २...... चलिए छोड़िए...... सीन नंबर २ या ३ गिनाने के बाद ऐसा तो नहीं है की विश्वासघात हुआ नहीं या होना बंद हो गया. ये तो होता रहा है और होता रहेगा . अगर विश्वासघात ना हो तो : जिस थाली मे खाना, उसी मे छेद करना, वाली कहावत गलत नहीं हो जायेगी....... ये भी उनका सम्मान है.... की उनके आदर मे भी एक कहावत है. ............ बोलो सही या गलत? लीजिये.... विश्वास्घातकों के आदर मे एक शेर सुनिए और इसपर सोचिये....
तेरे ख़ूलूस ने बरबाद कर दिया ऐ दोस्त,
फरेब खाते तो अब तक सम्हाल गए होते....
अब ये ब्लॉग एक गंभीर मोड़ ले रहा है.... जरा सम्हाल जाइए..... विश्वासघाती निम्न श्रेणी के होते हैं...... सहमत हैं......ना.
अपने उपर हम सब लोग विश्वास करते हैं और करना भी चाहिए ...... कहीं हम अपने आप से तो विश्वासघात नहीं कर रहे..... अगर हम अपने उपर विश्वास नहीं करते हैं तो...... अगर मुझे अपने उपर विश्वास है और मै उस को अमल मे नहीं ला रहा हूँ...... तो ये क्या है............... आप सोचिये.... मे एक कप चाय पी कर अभी हाज़िर हुआ....... तब तक के लिए ख़ुदा हाफ़िज़.
क्या करूँ..... मेरी उल्टी खोपड़ी है...... विश्वास और विश्वास करने वालों के उपर तो अनेक ग्रन्थ लिखे जा चुके हैं. लेकिन इन बेचारे विश्वास्घातकों के बारे में कोई कुछ नहीं कहता..... सब गालियाँ देते है , कोसते हैं..... ठीक है वो काम ही ऐसा करते हैं..... लेकिन वो दया के पात्र हैं......आप का पता नहीं.... लेकिन मुझे दया आती उन पर..... इसलिए ये ब्लॉग उनको समर्पित है.....
सुनो बंधुओं..... ये जो विश्वासघातक है... ये एक विशिष्ट प्रकार की निम्न श्रेणी मे आते है. इनसे नीचे श्रेणी नहीं होती या यहाँ पर श्रेणी खत्म हो जाती है. ये देखने मे काफी सभ्य और सु-संस्क्रत लगते है. और विनम्रता इनका आभूषण होता है..... या यूँ कह लीजिये विनम्रता इनका हथियार होता है. ये इतनी बारीकी से वार करते हैं..... की चोट खा ने वाला काफी समय तक तो समझ ही नहीं पाता की ये वार उसका ही है.
अब जरा सोचिये..... ईसा मसीह अपने बारह चुनिंदा शिष्यों के साथ भोजन कर रहे हैं..... एक शिष्य आता है... घुटनों के बल बैठता है... और उनका हाँथ अपने हाँथ मे लेकर चूमता है.......बस.... तभी सिपाही आते है..... और ईसा मसीह गिरफ्तार..... कितना फ़िल्मी प्लाट है.... लेकिन सत्य है. ...... अब , अगर कोई आप के सामने घुटनों पर बैठ कर , आप का हाँथ चूमता है...... तो आप क्या करेंगे या करेंगी........ या तो उसके मुँह पर झनाटेदार थप्पड़ रसीद करेंगी या अपनी इज्ज़त आफजाई समझेंगी..... लेकिन ...... उसका अगला कदम क्या होगा......... उफ , अल्लाह, अब ये भी क्या मै ही बताऊँ....?
सीन नंबर. २...... चलिए छोड़िए...... सीन नंबर २ या ३ गिनाने के बाद ऐसा तो नहीं है की विश्वासघात हुआ नहीं या होना बंद हो गया. ये तो होता रहा है और होता रहेगा . अगर विश्वासघात ना हो तो : जिस थाली मे खाना, उसी मे छेद करना, वाली कहावत गलत नहीं हो जायेगी....... ये भी उनका सम्मान है.... की उनके आदर मे भी एक कहावत है. ............ बोलो सही या गलत? लीजिये.... विश्वास्घातकों के आदर मे एक शेर सुनिए और इसपर सोचिये....
तेरे ख़ूलूस ने बरबाद कर दिया ऐ दोस्त,
फरेब खाते तो अब तक सम्हाल गए होते....
अब ये ब्लॉग एक गंभीर मोड़ ले रहा है.... जरा सम्हाल जाइए..... विश्वासघाती निम्न श्रेणी के होते हैं...... सहमत हैं......ना.
अपने उपर हम सब लोग विश्वास करते हैं और करना भी चाहिए ...... कहीं हम अपने आप से तो विश्वासघात नहीं कर रहे..... अगर हम अपने उपर विश्वास नहीं करते हैं तो...... अगर मुझे अपने उपर विश्वास है और मै उस को अमल मे नहीं ला रहा हूँ...... तो ये क्या है............... आप सोचिये.... मे एक कप चाय पी कर अभी हाज़िर हुआ....... तब तक के लिए ख़ुदा हाफ़िज़.
Sunday, November 14, 2010
कि घर कब आओगे.....?
दिल पे हैरत ने अजब रंग जमा रखा है.... कितने रूप हैं इंसान तेरे...????
मै तो एक रूप को भी ठीक से समझ नहीं पाता हूँ की दूसरा सामने आ जाता है और जब पहले को छोड़कर दूसरे को समझने की चेष्टा करता हूँ तो तीसरा सामने आ जाता है........ बड़ी पशोपेश मे हूँ......भगवान् कसम.
तारीफ करनी पड़ती है..... की इंसान, ओह , माफ़ कीजियेगा, आदमी की, कि कितनी सहूलियत से इन अलग अलग रूपों मे समा जाता हैं..... कई बार तो उसको खुद भी लगता होगा कि उसका असली रूप क्या है...... जब वो अकेले मे बैठ कर सोचता होगा...... समझ रहे हैं ना आप..... "जब वो". याद कीजिये निदा फ़ाज़ली साहब कि वो शेर...
हर आदमी मे होते हैं दस बीस आदमी,
जब भी किसी को देखना, कई बार देखना.
सच है...... अभी आप किसी से मिलकर जाइए, दुबारा मिलिए तो खुद सोचना पड़ता है.... ये वही है जिससे मे अभी मिला था..... और रंग भी वो आदमी इतनी काबलियत से बदलता है..... कि खुद लगता है कि नहीं..... ये आदमी असली है... वो नहीं, जिससे मै पहले मिला.
आजकल तो मुझे भी अकले रहने का वक़्त ही नहीं मिलता....हाँ.... सच कहा रहा हूँ. जब कभी तनहा बैठता हूँ....तो विचारों का तांता सा लगा रहता है....... इस का विचार, उसका विचार, इनका विचार, उनका विचार....... उफ..... मै कहाँ रहा गया हूँ...... मै कहाँ खो गया हूँ. yes ....... मैं खो गया हूँ..... अच्छा एक शेर पेश करता हूँ....उसको इस जमीन से जोड़ीयेगा तो.....
तेरा ख्याल मेरे साथ साथ चलता है.....
मेरी ज़िन्दगी है, या सूरजमुखी का फूल.
मेरी ज़िन्दगी दूसरों के ख्याल, दूसरों के तसुवारात मे इतनी घुलमिल गयी है.... कि उसको अपने होने का एहसास भी नहीं होता.... कम्बखत मारी........ और जब ये फितरत बन जाए...... तो? मै रिमोट कण्ट्रोल बनकर रह जाता हूँ.... रह गया हूँ. मेरा अपना भी वजूद है..... ये तो मै भूल ही गया हूँ.
कुछ तो दुनिया कि इनायात ने दिल तोड़ दिया, और कुछ तल्खिये हालत ने दिल तोड़ दिया,
हम तो समझे थे कि बरसात मे बरसेगी शराब,आई बरसात, तो बरसात ने दिल तोड़ दिया.
ये दिल के टूटने का मौसम है..... और ख़ास कर वो दिल जो धडकते हों. हर धडकते हुए पत्थर को लोग दिल समझते हैं....... उम्र बीत जाती है, दिल को दिल बनाने में.....कल मेरी अपनी ज़िन्दगी से मुलाक़ात हुई.... तो उसने मुझसे पूंछा ..... कि घर कब आओगे.....?
हाय अल्लाह...... मै तो बेवक़ूफ़ बन गया.... मेरी अपनी ज़िन्दगी पूंछ रही है कि घर कब आओगे....?
तो मै किसकी ज़िन्दगी जी रहा हूँ........ दिखावे की...?
कहीं ये सच तो नहीं....... बोलो तो.
मै तो एक रूप को भी ठीक से समझ नहीं पाता हूँ की दूसरा सामने आ जाता है और जब पहले को छोड़कर दूसरे को समझने की चेष्टा करता हूँ तो तीसरा सामने आ जाता है........ बड़ी पशोपेश मे हूँ......भगवान् कसम.
तारीफ करनी पड़ती है..... की इंसान, ओह , माफ़ कीजियेगा, आदमी की, कि कितनी सहूलियत से इन अलग अलग रूपों मे समा जाता हैं..... कई बार तो उसको खुद भी लगता होगा कि उसका असली रूप क्या है...... जब वो अकेले मे बैठ कर सोचता होगा...... समझ रहे हैं ना आप..... "जब वो". याद कीजिये निदा फ़ाज़ली साहब कि वो शेर...
हर आदमी मे होते हैं दस बीस आदमी,
जब भी किसी को देखना, कई बार देखना.
सच है...... अभी आप किसी से मिलकर जाइए, दुबारा मिलिए तो खुद सोचना पड़ता है.... ये वही है जिससे मे अभी मिला था..... और रंग भी वो आदमी इतनी काबलियत से बदलता है..... कि खुद लगता है कि नहीं..... ये आदमी असली है... वो नहीं, जिससे मै पहले मिला.
आजकल तो मुझे भी अकले रहने का वक़्त ही नहीं मिलता....हाँ.... सच कहा रहा हूँ. जब कभी तनहा बैठता हूँ....तो विचारों का तांता सा लगा रहता है....... इस का विचार, उसका विचार, इनका विचार, उनका विचार....... उफ..... मै कहाँ रहा गया हूँ...... मै कहाँ खो गया हूँ. yes ....... मैं खो गया हूँ..... अच्छा एक शेर पेश करता हूँ....उसको इस जमीन से जोड़ीयेगा तो.....
तेरा ख्याल मेरे साथ साथ चलता है.....
मेरी ज़िन्दगी है, या सूरजमुखी का फूल.
मेरी ज़िन्दगी दूसरों के ख्याल, दूसरों के तसुवारात मे इतनी घुलमिल गयी है.... कि उसको अपने होने का एहसास भी नहीं होता.... कम्बखत मारी........ और जब ये फितरत बन जाए...... तो? मै रिमोट कण्ट्रोल बनकर रह जाता हूँ.... रह गया हूँ. मेरा अपना भी वजूद है..... ये तो मै भूल ही गया हूँ.
कुछ तो दुनिया कि इनायात ने दिल तोड़ दिया, और कुछ तल्खिये हालत ने दिल तोड़ दिया,
हम तो समझे थे कि बरसात मे बरसेगी शराब,आई बरसात, तो बरसात ने दिल तोड़ दिया.
ये दिल के टूटने का मौसम है..... और ख़ास कर वो दिल जो धडकते हों. हर धडकते हुए पत्थर को लोग दिल समझते हैं....... उम्र बीत जाती है, दिल को दिल बनाने में.....कल मेरी अपनी ज़िन्दगी से मुलाक़ात हुई.... तो उसने मुझसे पूंछा ..... कि घर कब आओगे.....?
हाय अल्लाह...... मै तो बेवक़ूफ़ बन गया.... मेरी अपनी ज़िन्दगी पूंछ रही है कि घर कब आओगे....?
तो मै किसकी ज़िन्दगी जी रहा हूँ........ दिखावे की...?
कहीं ये सच तो नहीं....... बोलो तो.
Saturday, November 6, 2010
दीपावली बीत गयी.........
दीपावली बीत गयी.........
उजाला बहुत हुआ.... लेकिन अभी भी बहुत अन्धेरा है. शोर बहुत हुआ..... लेकिन अभी भी बहुत सन्नाटा है.... कुछ और शोर करो..... मुझको एहसास दिला दो कि मै ज़िंदा हूँ अभी. मेरे अंदर का शोर .... धीरे धीरे सन्नाटे मे बदलता जा रहा है..... कुछ करो.....और शोर करो......
याद करो...... मुझे आये हुए... कितना वक़्त बीत गया.... लेकिन तुम्हारे पास तो वक़्त ही नहीं है.......याद आ रही है.... वो एक पुरानी सी शेर....
तुम्हे गैरों से कब फुर्सत, हम अपने गम से खाली,
चलो बस हो चुका मिलना, ना तुम खाली, ना हम खाली.
कितना शोर था मेरे अंदर अरमानो का....... सब शांत हो चला है...... शश्श्श्....... सोने दो मुझको...... अभी ताज़ी चोट है.... दर्द तो देगी ही......अभी आदत नहीं पड़ी ...... तुम अपने परिवार के साथ रह गए..... मै तुमको ढूंढता रह गया..... त्यौहार आया और चला गया... सब अपने अपने के हो लिए...... मै अपनों को ढूंढता रह गया....... सब अपने अपने चाहने वालों मे खो गए.
कभी तुमने अपने बगैर त्यौहार मनाया है...... इतना आसान नहीं हैं...... मै तो सारी परिधियों को तोड़ चुका....... तुम्हारी बातों में विरोधाभास......... उम्मीद नहीं थी..... तकलीफ हुई. आशा करता हूँ..... इस ज्वार से भी बाहर निकल जाऊँगा..... तुम वैद्य के पास भी गए..... मुझे पता चला..... लेकिन तुमने इस बात कि तरफ ध्यान नहीं दिया..... कि इसको भी चिंता होगी..... कि क्या हुआ......दोष तुम्हारा नहीं हैं...... मैं ही मुँह खोल कर कुछ बोल नहीं पाया.... और लोग मुझको क्या से क्या समझते रहे........तुम भी, हाँ तुम भी.... दीपावली बीत गयी......सब अपने अपने चाहने वालों मे खो गए.
उजाला बहुत हुआ.... लेकिन अभी भी बहुत अन्धेरा है. शोर बहुत हुआ..... लेकिन अभी भी बहुत सन्नाटा है.... कुछ और शोर करो..... मुझको एहसास दिला दो कि मै ज़िंदा हूँ अभी. मेरे अंदर का शोर .... धीरे धीरे सन्नाटे मे बदलता जा रहा है..... कुछ करो.....और शोर करो......
याद करो...... मुझे आये हुए... कितना वक़्त बीत गया.... लेकिन तुम्हारे पास तो वक़्त ही नहीं है.......याद आ रही है.... वो एक पुरानी सी शेर....
तुम्हे गैरों से कब फुर्सत, हम अपने गम से खाली,
चलो बस हो चुका मिलना, ना तुम खाली, ना हम खाली.
कितना शोर था मेरे अंदर अरमानो का....... सब शांत हो चला है...... शश्श्श्....... सोने दो मुझको...... अभी ताज़ी चोट है.... दर्द तो देगी ही......अभी आदत नहीं पड़ी ...... तुम अपने परिवार के साथ रह गए..... मै तुमको ढूंढता रह गया..... त्यौहार आया और चला गया... सब अपने अपने के हो लिए...... मै अपनों को ढूंढता रह गया....... सब अपने अपने चाहने वालों मे खो गए.
कभी तुमने अपने बगैर त्यौहार मनाया है...... इतना आसान नहीं हैं...... मै तो सारी परिधियों को तोड़ चुका....... तुम्हारी बातों में विरोधाभास......... उम्मीद नहीं थी..... तकलीफ हुई. आशा करता हूँ..... इस ज्वार से भी बाहर निकल जाऊँगा..... तुम वैद्य के पास भी गए..... मुझे पता चला..... लेकिन तुमने इस बात कि तरफ ध्यान नहीं दिया..... कि इसको भी चिंता होगी..... कि क्या हुआ......दोष तुम्हारा नहीं हैं...... मैं ही मुँह खोल कर कुछ बोल नहीं पाया.... और लोग मुझको क्या से क्या समझते रहे........तुम भी, हाँ तुम भी.... दीपावली बीत गयी......सब अपने अपने चाहने वालों मे खो गए.
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