रातों कि उम्र कम होने लगी है...... ये बात कुछ अजीब सी लगती है , लेकिन मुझे भी तभी एहसास हुआ जब में अपने गाँव कि जमीन छोड़ कर शहर में आ बसा.
रातों की उम्र सिर्फ शहर मे ही कम हुई है....... गाँवों में नहीं . वैसे आप का सोचना वाज़िब है की रातों की उम्र कैसे कम हो सकती है.... जो अल्लाह ने बनाई हैं. आप को भी इतना तो अपना भी बचपन याद होगा की जब घर के बड़े बुजुर्गों की ये हिदायत हुआ करती थी कि इससे पहले कि शाम रात कि महफ़िल में कदम रखे , सब लोग घर मे हों. और जब सब घर में होंगे तो खाना पीना समय से होगा , तो सो भी समय से जायेंगे. तो रात कि उम्र लम्बी लगती है.
अब मैं गाँव से निकल कर शहर आता हूँ..... जी.... सही सोच रहें आप. काफी टाइम तो मुझे ये तय करने मे लग गया कि यहाँ रात होती भी या नहीं. काफी टाइम तो मैं ठीक से सो भी नहीं पाया कि रात हो तो सोऊँ. लेकिन रात थी होती ही नहीं थी. किसी भी समय सड़क पर निकल जाऊं तो हर तरफ आदमी या गाड़ियां दिखाई देती थी. बड़ा परेशान था.... सच, मैं बड़ा परेशान था.घडी देख कर और सूरज का उगना और अस्त होना देख कर , मैं ये अंदाज लगाता रहा कि अब शाम हो गयी हैं और अब रात.
अजी..... कहाँ कि रात. कहते हैं ना कि शाम के बाद तो शहर जवां होता है. मेरे घर के पास कुछ अमीर लोग रहते है. वो कब सोते हैं और कब जागतें है... इसका अंदाज तो काफी टाइम के बाद मुझे हुआ. मैं अपनी घडी से टाइम और सूरज के अस्त होने को देख कर अंदाजा लगता था कि अब शाम हो रही है. हाँथ - मुँह धोकर थोड़ी दिया-बात्ती करलूं..... तो पास के घरों से अजीब सा शोर सुनाई पड़ने लगता है. और ज्यों-ज्यों शाम रात में तब्दील होती जाती हैं... इस शोर कि आवाज़ और बढने लगती है.
मेरे मित्र....... जी ............. हाँ........... ठीक पहचाना आपने. श्रीमान सुन्दरलाल जी "कटीला" , उनको शहर मे रहते- रहते काफी समय हो गया है...... अंग्रेजी भी बोलते है. उन्होने मुझे समझाया " गाँव कि सादगी, गाँव मे ठीक थी. शहर मे यूँ जीयोगे तो मर जाओगे" . ये जो शोर सुन रहे हो......... इसको किसी और के सामने शोर मत कह देना. इसको music कहते हैं....... शहर में.
music.....मतलब संगीत? मेरा भोला सा सवाल.
हाँ..... सुन्दरलाल का दो टूक जवाब.
लो कल लो बात..... ये संगीत है. अरे भाई संगीत तो उसको कहते हैं जहाँ आँख बंद हो जाती हैं, सर होले-होले झूमने लगता है. ये कौन सा संगीत है... जहाँ...........
खैर.... मुद्दा संगीत का नहीं था...मुद्दा था रात की छोटी होती हुई उम्र का. जी..... तो मै कह रहा था...... कि रातों कि उम्र कम होती जा रही है. शहरों मे तो रात होती ही नहीं है. और इंसान जब कुदरत के कायदे-कानूनों से छेड़-छाड़ करता है खामियाजा भी उसी को देना पड़ता है और दे भी रहा है, लेकिन.... इंसानों के ख्वाहिशों कि कोई इन्तेहाँ नहीं.... ये भी पा लूँ.... वो भी पा लूँ...... और थोड़ा और थोड़ा और..... इसी दौड़ मे लगा है..... दिन ना दिन रहा.... रात ना रात रही. माँ को पता नहीं कि बेटी या बेटा कहाँ है, पति को पता नहीं पत्नी कहाँ है. सब बिखराव है, लेकिन कहने को हैं घर आबाद सब......... सब यह चाहते हैं कि हर कोई उनके हिसाब से चले... और ऐसा ही कोई दूसरा भी सोचता होगा. तो फिर जुड़ाव कहाँ .......... एक समझोते के तहत जीते हैं हम सब......अंग्रेजी मे इसको compromise कहते हैं. ना मै तुम से कुछ कहूँ, ना तुम मुझसे. ना तुम मुझसे कुछ पूंछो, ना मै तुमसे. तुम भी , हम भी खुश. यही एक खुशहाल परिवार का राज.....
और मजे कि बात तो ये है.... कि हम सब इन बातों को समझतें हैं, जानते हैं....... लेकिन.................कोई कुछ नहीं कर सकता ..... कब तक आखिर, आखिर कब तक.
झूठी सच्ची बात पे जीना, कब तक आखिर, आखिर कब तक
मय कि जगह ख़ूने दिल पीना, कब तक आखिर, आखिर कब तक...........
ॐ! शांति, शांति शांति: ....................
Monday, September 27, 2010
Friday, September 17, 2010
अल्लाह...... सुभान अल्लाह......
क्या फ़रमाया आपने...... ? एक सवाल
हुज़ूर .... फ़रमाया नहीं... इल्तिजा है......
आप का इल्तिजा करने का सलीका , दिलकश है.... कोई मना कर ही नहीं सकता. आज कल के नौ-निहालों को ये सलीका कौन सिखाये....
बस करिए.... खुदा के लिए बस करिए..... आप तो जरा - जरा से बात पर तारीफों के पुल बाँध देते हैं.
आप किसी बा-इज्ज़त खानदान की लगती हैं.... अगर बुरा ना माने तो आप से तारुफ़ की गुजारिश कर सकता हूँ?
मेरा नाम मुहब्बत है.........
वल्लाह..... नाम से ही चाशनी टपकती है...... खुदा बुरी नजर से बचाए. चश्म-ए-बदूर.
मियाँ आप का तारुफ़.....? मुहब्बत का जायज सवाल.
मुझे दर्द कहते हैं.......
सुभानअल्लाह....
दर्द और मुहब्बत का चोली दामन का साथ है.......
जी... बजा फ़रमाया आपने..... इतिहास गवाह है.
कुछ अजीब सा लगता है ना......
चोली दामन का साथ है.... लेकिन फिर भी तारुफ़ की जरुरत पड़ती है.
जी..... वो तो है..... क्योंकि दुनिया मुहब्बत तो चाहती है और दर्द से किनारा , इसलिए अकसर हम लोगों को खुद अपना तारुफ़ करवाना पड़ता है.......
एक बार किसी ने मोमबत्ती से पूंछा की तुम जलती हो आंसू क्यों बहते हैं........
मोमबत्ती ने कहा " जब कोई अपना जलता है तो तकलीफ तो होती ही है".
जी..... ये तो है.
आँखों मे आंसू हैं, रोने की तमन्ना दिल मे है,
इक कदम मंजिल से बाहर, एक कदम मंजिल में है,
क्या कहतीं हैं आप....
सही कह रहे आप......
लेकिन मुझे आप से शिकायत भी है......
मुहब्बत से शिकायत ....... अल्लाह.... आप पहले इसान होंगे. बोलिए तो ..... क्या खता हो गयी मुझसे.
आप ने दर्द पर इतनी सारी बंदिशें क्यों अता फरमाई? मुँह से आह ना निकले, आँख से आंसू ना बहे.
जो आके रुके दामन पे सबा, वो अश्क नहीं है पानी है.
जो अश्क ना छलके आँखों से , उस अश्क की कीमत होती है.
आप ने शायद ये नहीं सुना.....
सुना है उसको मुहब्बत दुआएं देती हैं,
जो दिल पे चोट तो खाए, मगर गिला ना करे.
आप की भूल जाने की आदत है क्या....... मुहब्बत का सवाल?
क्यों भला.....?
मैने अभी तो आप से कहा की मुहब्बत का दर्द से चोली दामन का साथ है. ....... आप हैं तो हम हैं.
आप लाजवाब करने मे तो महारत रखतीं हैं..... बाखुदा.
हाय ..... अल्लाह........ मै तो ये दावा भी कर सकती हूँ.....कि जो दर्द ना बर्दाश्त कर सके..........मुहब्बत से दूर ही रहे.
अल्लाह...... सुभान अल्लाह......
हुज़ूर .... फ़रमाया नहीं... इल्तिजा है......
आप का इल्तिजा करने का सलीका , दिलकश है.... कोई मना कर ही नहीं सकता. आज कल के नौ-निहालों को ये सलीका कौन सिखाये....
बस करिए.... खुदा के लिए बस करिए..... आप तो जरा - जरा से बात पर तारीफों के पुल बाँध देते हैं.
आप किसी बा-इज्ज़त खानदान की लगती हैं.... अगर बुरा ना माने तो आप से तारुफ़ की गुजारिश कर सकता हूँ?
मेरा नाम मुहब्बत है.........
वल्लाह..... नाम से ही चाशनी टपकती है...... खुदा बुरी नजर से बचाए. चश्म-ए-बदूर.
मियाँ आप का तारुफ़.....? मुहब्बत का जायज सवाल.
मुझे दर्द कहते हैं.......
सुभानअल्लाह....
दर्द और मुहब्बत का चोली दामन का साथ है.......
जी... बजा फ़रमाया आपने..... इतिहास गवाह है.
कुछ अजीब सा लगता है ना......
चोली दामन का साथ है.... लेकिन फिर भी तारुफ़ की जरुरत पड़ती है.
जी..... वो तो है..... क्योंकि दुनिया मुहब्बत तो चाहती है और दर्द से किनारा , इसलिए अकसर हम लोगों को खुद अपना तारुफ़ करवाना पड़ता है.......
एक बार किसी ने मोमबत्ती से पूंछा की तुम जलती हो आंसू क्यों बहते हैं........
मोमबत्ती ने कहा " जब कोई अपना जलता है तो तकलीफ तो होती ही है".
जी..... ये तो है.
आँखों मे आंसू हैं, रोने की तमन्ना दिल मे है,
इक कदम मंजिल से बाहर, एक कदम मंजिल में है,
क्या कहतीं हैं आप....
सही कह रहे आप......
लेकिन मुझे आप से शिकायत भी है......
मुहब्बत से शिकायत ....... अल्लाह.... आप पहले इसान होंगे. बोलिए तो ..... क्या खता हो गयी मुझसे.
आप ने दर्द पर इतनी सारी बंदिशें क्यों अता फरमाई? मुँह से आह ना निकले, आँख से आंसू ना बहे.
जो आके रुके दामन पे सबा, वो अश्क नहीं है पानी है.
जो अश्क ना छलके आँखों से , उस अश्क की कीमत होती है.
आप ने शायद ये नहीं सुना.....
सुना है उसको मुहब्बत दुआएं देती हैं,
जो दिल पे चोट तो खाए, मगर गिला ना करे.
आप की भूल जाने की आदत है क्या....... मुहब्बत का सवाल?
क्यों भला.....?
मैने अभी तो आप से कहा की मुहब्बत का दर्द से चोली दामन का साथ है. ....... आप हैं तो हम हैं.
आप लाजवाब करने मे तो महारत रखतीं हैं..... बाखुदा.
हाय ..... अल्लाह........ मै तो ये दावा भी कर सकती हूँ.....कि जो दर्द ना बर्दाश्त कर सके..........मुहब्बत से दूर ही रहे.
अल्लाह...... सुभान अल्लाह......
Tuesday, September 14, 2010
एक दिल दे कर खुदा ने दे दिया क्या क्या मुझे
काफी बेचेनी है आजकल? सब कुछ लिख देने का मन करता है. लेकिन पट्टियां जिस्म पे बांधू तो कहाँ तक बांधूं. कभी कभी तो खुदा से भी शिकायत करने का निश्चय भी कर बैठता है ये मन.......
ग़म मुझे, हसरत मुझे, वहशत मुझे, सौदा मुझे,
एक दिल दे कर खुदा ने दे दिया क्या क्या मुझे.
बाखुदा...... एक दिल दे कर खुदा ने दे दिया क्या क्या मुझे..... ना देता दिल....तो. मतलब अगर देना ही था तो पत्थर वाला दिल दिया होता. मेरी हालत बिलकुल ऐसी है जैसे एक आज़ाद पंछी को पिंजरे मे कैद कर दिया गया हो. जिस्म का पिंजरा दे दिया और उसके उपर मौत का पहरा भी लगा दिया. जब तक मौत का पहरा नहीं हटेगा, पंछी उड़ भी नहीं सकता...... देख रहे हैं ना आप...... कैसे कैसे खेल खेलता है वो.
जो नकाबे रुख उलट दी, तो ये शर्त भी लगा दी,
उठे हर निगाह लेकिन, कभी बाम* तक ना पहुंचे. * छत , ऊँचाई
दिल चाहता है की कोई तो हो, जिसके साथ बैठ कर अपने आप को खोल दूँ.... कहाँ तक गठरी उठा कर दर-ब-दर घूमता रहूँ.... बोलो तो...... लेकिन , वो क्या है ना, की इस शहर में सब मेरे अपने हैं.... इसीलिए डरता हूँ. Please अब ये मत कहिएगा की या सोचियेगा की कितना अजीब आदमी है..... अपनों के बीच मे रहता है... फिर भी डरता है..... जी नहीं मे खाली डरता ही नहीं हूँ..... तनाव ग्रसित भी रहता हूँ.... जब अपनाओ के बीच मे होता हूँ.....
लो कल लो बात...... अरे पागल है क्या..... अपनों के साथ रहता है फिर भी डरता है, तनाव मे रहता है....
जी हाँ.......... मै अपनों के बीच रहता हूँ.... इसीलिए तो डरता हूँ या तनाव मे रहता हूँ. अरे... दुश्मनों के बीच तो मै काफी आराम से रह लेता हूँ , निडर होकर.... क्योंकि मै जानता हूँ की वो पराये हैं..... और कुछ भी कर सकते हैं.... इसलिए...... तैयार रहता हूँ और आराम से रहता हूँ.लेकिन अपनों के बीच........ आराम से रहने का ख़तरा मै नहीं उठा सकता. ना जाने कौन सी आस्तीन से सांप निकल आये. Ceaser को भी उसके प्रिय मित्र Brutus ने ही मारा था.
हाँ तो मुद्दा ये था...... की इस गठरी को जो मै, जिसको सीने पर उठाये फिर रहा हूँ, किसके सामने खोलूं....... मेरा तो दम घुटता है...... आप का...... पता नहीं. आजकल लोगों को इस्तेमाल करने का भी.... सखी.... एक फैशन सा चल पड़ा है. इस वजह से और भी मै अपने आप को समेट कर कछुवा बन गया हूँ......... ना जाने कौन...... क्या पता...... सावधानी हटी, दुर्घटना घटी........
गहरी सांस लेकर सब कुछ अपने आप मै जब्त करके, फिर ज़िन्दगी को जीने की कवायत मे लग जाता हूँ...... और रात को जब घर पहुंचता हूँ..... तब कैलंडर पर आज की तारीख को काट देता हूँ... की चलो एक दिन और समाप्त हुआ...... फिर ईश्वर से पूंछता हूँ....... प्रभु...... अभी और कितना चलना है...?
कब तक मे तेरे नाम पे खाता रहा फरेब,
मेरे खुदा कहाँ है तू, अपना पता तो दे.
क्या तूने मेरे जैसा , दूसरा नहीं बनाया.........अच्छा किया.
ग़म मुझे, हसरत मुझे, वहशत मुझे, सौदा मुझे,
एक दिल दे कर खुदा ने दे दिया क्या क्या मुझे.
बाखुदा...... एक दिल दे कर खुदा ने दे दिया क्या क्या मुझे..... ना देता दिल....तो. मतलब अगर देना ही था तो पत्थर वाला दिल दिया होता. मेरी हालत बिलकुल ऐसी है जैसे एक आज़ाद पंछी को पिंजरे मे कैद कर दिया गया हो. जिस्म का पिंजरा दे दिया और उसके उपर मौत का पहरा भी लगा दिया. जब तक मौत का पहरा नहीं हटेगा, पंछी उड़ भी नहीं सकता...... देख रहे हैं ना आप...... कैसे कैसे खेल खेलता है वो.
जो नकाबे रुख उलट दी, तो ये शर्त भी लगा दी,
उठे हर निगाह लेकिन, कभी बाम* तक ना पहुंचे. * छत , ऊँचाई
दिल चाहता है की कोई तो हो, जिसके साथ बैठ कर अपने आप को खोल दूँ.... कहाँ तक गठरी उठा कर दर-ब-दर घूमता रहूँ.... बोलो तो...... लेकिन , वो क्या है ना, की इस शहर में सब मेरे अपने हैं.... इसीलिए डरता हूँ. Please अब ये मत कहिएगा की या सोचियेगा की कितना अजीब आदमी है..... अपनों के बीच मे रहता है... फिर भी डरता है..... जी नहीं मे खाली डरता ही नहीं हूँ..... तनाव ग्रसित भी रहता हूँ.... जब अपनाओ के बीच मे होता हूँ.....
लो कल लो बात...... अरे पागल है क्या..... अपनों के साथ रहता है फिर भी डरता है, तनाव मे रहता है....
जी हाँ.......... मै अपनों के बीच रहता हूँ.... इसीलिए तो डरता हूँ या तनाव मे रहता हूँ. अरे... दुश्मनों के बीच तो मै काफी आराम से रह लेता हूँ , निडर होकर.... क्योंकि मै जानता हूँ की वो पराये हैं..... और कुछ भी कर सकते हैं.... इसलिए...... तैयार रहता हूँ और आराम से रहता हूँ.लेकिन अपनों के बीच........ आराम से रहने का ख़तरा मै नहीं उठा सकता. ना जाने कौन सी आस्तीन से सांप निकल आये. Ceaser को भी उसके प्रिय मित्र Brutus ने ही मारा था.
हाँ तो मुद्दा ये था...... की इस गठरी को जो मै, जिसको सीने पर उठाये फिर रहा हूँ, किसके सामने खोलूं....... मेरा तो दम घुटता है...... आप का...... पता नहीं. आजकल लोगों को इस्तेमाल करने का भी.... सखी.... एक फैशन सा चल पड़ा है. इस वजह से और भी मै अपने आप को समेट कर कछुवा बन गया हूँ......... ना जाने कौन...... क्या पता...... सावधानी हटी, दुर्घटना घटी........
गहरी सांस लेकर सब कुछ अपने आप मै जब्त करके, फिर ज़िन्दगी को जीने की कवायत मे लग जाता हूँ...... और रात को जब घर पहुंचता हूँ..... तब कैलंडर पर आज की तारीख को काट देता हूँ... की चलो एक दिन और समाप्त हुआ...... फिर ईश्वर से पूंछता हूँ....... प्रभु...... अभी और कितना चलना है...?
कब तक मे तेरे नाम पे खाता रहा फरेब,
मेरे खुदा कहाँ है तू, अपना पता तो दे.
क्या तूने मेरे जैसा , दूसरा नहीं बनाया.........अच्छा किया.
Thursday, September 9, 2010
शोर..... रौशनी का.
शोर..... रौशनी का.
मैने भी कभी नहीं सुना था. लेकिन कुछ दिनों से महसूस जरुर किया. जब अंदर और बाहर का मौसम एक जैसा हो, तब इस शोर को ज्यादा महसूस किया मैने. मै जहाँ रहता हूँ....... पहाड़ी एरिया है. शाम होते होते एक अजीब सा सन्नाटा छा जाता है. बालकनी मे खडे होकर दूर तक घरों मे टिमटिमाती हुई लाइट बहुत अच्छी लगती है, और जब उस बीच बारिश की फुहार आती है...... तो आप खुद समझ सकते हैं..... की मन कौन से आसमान पर उड़ता होगा. और उस पर ठंडी हवा के झोंके ................. कुदरत के करिश्मे हैं. एक अजीब सी शान्ति.... मुझे अपने कब्जे मे ले लेती है. मन नहीं होता उस आनंद से बाहर निकलने का...... और , कुछ और, थोड़ा और........ उस बीच तेजी से गुजरती हुई बस या कार की आवाज़..... और फिर दूर तक........... शान्ति.
लेकिन एक दिन एक अजीब सा अनुभव हुआ. ...... मै भी वही था, वही बालकनी, वही बारिश , वही हवा..... लेकिन शान्ति नहीं..... एक बेचेनी..... कुछ नहीं मिल पाने की कसक......कुछ खो जाने का एहसास.......टूटते हुए रिश्तों का दर्द, रिश्तों को बचाने का जोड़ - तोड़, लोगों के द्वारा इस्तेमाल किया जाने का गर्व या दुःख........ पता नहीं क्या कहूँ. दिल की सदा को सुनने और उस पर चलने की ताकत, और फिर उस दौरान पल पल टूटता हुआ मै...... बड़ी अजीब शाम थी. अंतर सिर्फ इतना था की अंदर और बाहर का मौसम अलग था.
उसी बीच बाज़ार जाना भी हुआ, रात मे लगभग १०.१५ बजे. जगमगाती हुई रौशनी से नहाया हुआ बाज़ार. झिलमिलाती हुई चीजें. लोग कम थे, बड़ी - बड़ी दुकाने खुली थी, फुटपाथ के दुकानदार दूकान बढ़ा चुके थे. लेकिन फिर भी काफी शोर सा लग रहा था. मै भी हाँथो मे चाय का गिलास लेकर पास मे पड़ी बेंच पर बैठ गया. और ये शोर कहाँ से आ रहा है...... सोचने लगा..... बाज़ार के चौराहे पर लगा लाउडस्पीकर खामोश था..... जैसे दिन बहर चीखने के बाद अपने गले को आराम दे रहा हो....... लेकिन शोर ..... काफी शोर था...... नहीं समझ मे आया.... चाय भी खत्म हो चली थी....... गिलास रखा, और घर की तरफ चहलकदमी करने लगा. थोड़ी ही दूर गया हूँगा की वही शांत वातावरण ........ मै फिर पलटा और बाज़ार की तरफ चल दिया..... आज तो ये तय कर लिया था की ये क्या है......
बाज़ार पहुंचा तो रात 11.15 बजे थे...... दूधिया रौशनी से अभी भी बाज़ार जगमगा रहा था..... मुझे लगा की ये जो भारीपन, ये जो शोर बाज़ार मे है.... जबकि तक़रीबन सारी दुकाने बंद हो चुकी हैं....... ये हो ना हो रौशनी का है...... हाँ ये रौशनी का ही तो है. मेरे घर के नीचे जो सरकारी बत्ती लगी है.... जब वो अपने पूरे शबाब पर जलती है और जब वो नहीं जलती है ( साधारणतया वो जलती नहीं है) तब के माहोल का अंतर मैने तब महसूस किया. जब घरों की टिमटिमाती लाईट एक अजीब सा लेकिन अच्छा सा सुकून दे जाती है..... घर के सामने पहाड़ों पर बसे घरों मे जब लाइट झिलमिलाती है...... यकीन मानियेगा..... नहीं लगता की मै इसी धरती पर हूँ. और कभी कभी किसी घर के रेडियो कोई पुराना सा गाना सुनाई पड़ता है.... तो वक़्त यहीं रुक जाए...... बस यही तमन्ना होती है.
हलकी , मद्धिम सी लाईट, हल्का सा संगीत...... दिल को छु लेने वाला......और यादें......... कहाँ मिलता है ये संगम. आजकल............ अब तो रौशनी भी शोर मचाने लगी है........... बहुत......
मै एक पैमाना देता हूँ........मेरी बालकनी मे बैठकर, देर शाम को...... एक बार " दिल मे एक लहर सी उठी है अभी, कोई ताजा हवा चली है अभी...." इस ग़ज़ल को सुनिए....... फिर बताइए..... रौशनी शोर मचाती है की नहीं....... अगर रौशनी शोर ना मचाती..... तो सोते समय हम लाईट बंद करके नहीं सोते........... बोलो, सच है ना............
मैने भी कभी नहीं सुना था. लेकिन कुछ दिनों से महसूस जरुर किया. जब अंदर और बाहर का मौसम एक जैसा हो, तब इस शोर को ज्यादा महसूस किया मैने. मै जहाँ रहता हूँ....... पहाड़ी एरिया है. शाम होते होते एक अजीब सा सन्नाटा छा जाता है. बालकनी मे खडे होकर दूर तक घरों मे टिमटिमाती हुई लाइट बहुत अच्छी लगती है, और जब उस बीच बारिश की फुहार आती है...... तो आप खुद समझ सकते हैं..... की मन कौन से आसमान पर उड़ता होगा. और उस पर ठंडी हवा के झोंके ................. कुदरत के करिश्मे हैं. एक अजीब सी शान्ति.... मुझे अपने कब्जे मे ले लेती है. मन नहीं होता उस आनंद से बाहर निकलने का...... और , कुछ और, थोड़ा और........ उस बीच तेजी से गुजरती हुई बस या कार की आवाज़..... और फिर दूर तक........... शान्ति.
लेकिन एक दिन एक अजीब सा अनुभव हुआ. ...... मै भी वही था, वही बालकनी, वही बारिश , वही हवा..... लेकिन शान्ति नहीं..... एक बेचेनी..... कुछ नहीं मिल पाने की कसक......कुछ खो जाने का एहसास.......टूटते हुए रिश्तों का दर्द, रिश्तों को बचाने का जोड़ - तोड़, लोगों के द्वारा इस्तेमाल किया जाने का गर्व या दुःख........ पता नहीं क्या कहूँ. दिल की सदा को सुनने और उस पर चलने की ताकत, और फिर उस दौरान पल पल टूटता हुआ मै...... बड़ी अजीब शाम थी. अंतर सिर्फ इतना था की अंदर और बाहर का मौसम अलग था.
उसी बीच बाज़ार जाना भी हुआ, रात मे लगभग १०.१५ बजे. जगमगाती हुई रौशनी से नहाया हुआ बाज़ार. झिलमिलाती हुई चीजें. लोग कम थे, बड़ी - बड़ी दुकाने खुली थी, फुटपाथ के दुकानदार दूकान बढ़ा चुके थे. लेकिन फिर भी काफी शोर सा लग रहा था. मै भी हाँथो मे चाय का गिलास लेकर पास मे पड़ी बेंच पर बैठ गया. और ये शोर कहाँ से आ रहा है...... सोचने लगा..... बाज़ार के चौराहे पर लगा लाउडस्पीकर खामोश था..... जैसे दिन बहर चीखने के बाद अपने गले को आराम दे रहा हो....... लेकिन शोर ..... काफी शोर था...... नहीं समझ मे आया.... चाय भी खत्म हो चली थी....... गिलास रखा, और घर की तरफ चहलकदमी करने लगा. थोड़ी ही दूर गया हूँगा की वही शांत वातावरण ........ मै फिर पलटा और बाज़ार की तरफ चल दिया..... आज तो ये तय कर लिया था की ये क्या है......
बाज़ार पहुंचा तो रात 11.15 बजे थे...... दूधिया रौशनी से अभी भी बाज़ार जगमगा रहा था..... मुझे लगा की ये जो भारीपन, ये जो शोर बाज़ार मे है.... जबकि तक़रीबन सारी दुकाने बंद हो चुकी हैं....... ये हो ना हो रौशनी का है...... हाँ ये रौशनी का ही तो है. मेरे घर के नीचे जो सरकारी बत्ती लगी है.... जब वो अपने पूरे शबाब पर जलती है और जब वो नहीं जलती है ( साधारणतया वो जलती नहीं है) तब के माहोल का अंतर मैने तब महसूस किया. जब घरों की टिमटिमाती लाईट एक अजीब सा लेकिन अच्छा सा सुकून दे जाती है..... घर के सामने पहाड़ों पर बसे घरों मे जब लाइट झिलमिलाती है...... यकीन मानियेगा..... नहीं लगता की मै इसी धरती पर हूँ. और कभी कभी किसी घर के रेडियो कोई पुराना सा गाना सुनाई पड़ता है.... तो वक़्त यहीं रुक जाए...... बस यही तमन्ना होती है.
हलकी , मद्धिम सी लाईट, हल्का सा संगीत...... दिल को छु लेने वाला......और यादें......... कहाँ मिलता है ये संगम. आजकल............ अब तो रौशनी भी शोर मचाने लगी है........... बहुत......
मै एक पैमाना देता हूँ........मेरी बालकनी मे बैठकर, देर शाम को...... एक बार " दिल मे एक लहर सी उठी है अभी, कोई ताजा हवा चली है अभी...." इस ग़ज़ल को सुनिए....... फिर बताइए..... रौशनी शोर मचाती है की नहीं....... अगर रौशनी शोर ना मचाती..... तो सोते समय हम लाईट बंद करके नहीं सोते........... बोलो, सच है ना............
Thursday, September 2, 2010
ये कहानी फिर सही
काम हो गया इसका.... अब ये किसी काम का नहीं है.... फ़ेंक दो. बेकार की चीजें रखकर क्या फायदा. खामखाँ जगह घेरतीं हैं.
अरे..... मैं वाकई की चीज़ों की बात नहीं कर रहा हूँ.... मैं इंसानों की बात कर रहा हूँ. .... जिस से अपना काम निकल गया..... वो तो बेकार ही हो गया ना..... तो फ़ेंक दो.
ये क्या कह रहें हैं आप ?
इतने विसमित क्यों हो रहे हो ?
नहीं...... आप तो ऐसे नहीं थे... इसलिए.
कैसे नहीं थे...... और कैसे हो गए हैं.....इसका हिसाब किताब करने बैठ गए तो ये ज़िन्दगी कम पड़ जायेगी. जिन्दगी जो सिखाती जा रही है.... सीखते चलो..... इंसान, इंसानियत.... इन सब के चक्कर मे बहुत पड़ लिए.
क्या मतलब.......?
मतलब निकालना छोड़ो....... मतलब की ज़िन्दगी जीयो. चीज़ों से प्यार करो........ इंसान को इस्तेमाल करो. ये आज का गुरु मंत्र है. .......
नहीं वो सब तो ठीक है..... लेकिन अचानक इस परिवर्तन का कारण....?
हम को किसके ग़म ने मारा, ये कहानी फिर सही,
किस ने तोड़ा दिल हमारा , ये कहानी फिर सही,
नफरतों के तीर खा कर, दोस्तों के शहर में,
हम ने किस किस को पुकारा , ये कहानी फिर सही,
अरे..... मैं वाकई की चीज़ों की बात नहीं कर रहा हूँ.... मैं इंसानों की बात कर रहा हूँ. .... जिस से अपना काम निकल गया..... वो तो बेकार ही हो गया ना..... तो फ़ेंक दो.
ये क्या कह रहें हैं आप ?
इतने विसमित क्यों हो रहे हो ?
नहीं...... आप तो ऐसे नहीं थे... इसलिए.
कैसे नहीं थे...... और कैसे हो गए हैं.....इसका हिसाब किताब करने बैठ गए तो ये ज़िन्दगी कम पड़ जायेगी. जिन्दगी जो सिखाती जा रही है.... सीखते चलो..... इंसान, इंसानियत.... इन सब के चक्कर मे बहुत पड़ लिए.
क्या मतलब.......?
मतलब निकालना छोड़ो....... मतलब की ज़िन्दगी जीयो. चीज़ों से प्यार करो........ इंसान को इस्तेमाल करो. ये आज का गुरु मंत्र है. .......
नहीं वो सब तो ठीक है..... लेकिन अचानक इस परिवर्तन का कारण....?
हम को किसके ग़म ने मारा, ये कहानी फिर सही,
किस ने तोड़ा दिल हमारा , ये कहानी फिर सही,
नफरतों के तीर खा कर, दोस्तों के शहर में,
हम ने किस किस को पुकारा , ये कहानी फिर सही,
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