हाँ तो जनाब तफ़सीले से समझाने वाले थे इधर उधर मतलब ! सुन्दर लाल सवाल।
अमां बताते हैं , ज़रा बैठिए , सांस तो लीजिये। ये क्या हमेशा घोड़े पे सवार आते हैं! मेरा जवाब।
अच्छा जी !
हाँ जी ! ये लीजिये दाएं हाथ से हुक़्क़ा खेंचिये और जरा बाएँ हाथ से पानदान उठा दीजिये।
ये लीजिये।
जी शुक्रिया। मैंने पानदान खोलकर पान लगाते हुए सुन्दर लाल को जीवन का फ़लसफ़ा समझाना शुरू किया।
ओह सुन्दर लाल का तारुफ़ (परिचय) तो मैंने कराया ही नहीं। सुन्दर लाल मेरा बचपन का दोस्त है और यहाँ जल विभाग में कर्मचारी है। पूरा नाम सुन्दर लाल श्रीवास्तव है लेकिन श्रीवास्तव वो नहीं लिखता है उसकी जगह "कटीला" लगाता है यानी पूरा नाम सुन्दर लाल "कटीला"। अब थोड़ा सा उनका ख़ाका भी खींच दूँ। मझोला कद , कायस्थ वालों रंग यानि की थोड़ा दबा हुआ। आँखे चमकीली। ख़ासियत - होंठो के दोनों किनारों से बहता हुआ पान। दबा हुआ रंग और पान की लाली , शायद इसीलिए "कटीला" लिखने लगा था।
ख़ैर किरदारों का तारुफ़ भी लाज़िमी होता है। आगे देखते हैं कितने क़िरदार टकराते हैं।
हाँ तो सुंदर लाल , ये जो इधर उधर लिखना होता है न , ये बकवास नहीं होती है, ये जिंदगी का फ़लसफ़ा होता है।जरा सोच के देखो कितने लम्हे हम तफ़रीह के लिए निकालते हैं। हमेशा कोई न कोई काम। घर से बाहर निकले तो किसी काम से। किसी से मिलने गए तो किसी काम से। कोई हम से मिलने आया तो किसी काम से। सुन्दर लाल ये बताओ कि तुम यूँ ही बिना किसी काम घर से बाहर कब गए थे कि चलो आज जंगल की तऱफ घूम आएँ , आज जरा शहर से बाहर निकल कर नदी तऱफ हो आएँ। आज गाड़ी उठाकर पहाड़ों निकल जाएँ , बस यूँ ही। धूप में निकलो घटाओं में नहाकर देखो।
नहीं याद है।
मालूम है। हर इंसान अपने अपने तरीके से अपने आप को बहलाता है और उसको चाहिए भी। आजकल हर चीज़ में पैसा लगता है , मैं जानता हूँ। लेकिन ये किस कम्बख्त ने कहा कि तफरीह करने का मतलब स्विट्ज़रलैंड जाओ।
लेकिन ये बताओ कि इधर उधर लिखने का क्या मतलब है ?
हम्म्म्म , सुनो ! क्या तुम हर वक़्त रुहानी किताबें पढ़ते रहते हो ?
नहीं
क्या तुम हर वक़्त अपने ऑफिस से मुताल्लिक चीज़ें पढ़ते रहते हो ?
नहीं
इसका मतलब है कि तुम कुछ इधर उधर की किताबें रिसाले भी पढ़ते हो। क्यों ?
क्योंकि हमारे दिमाग को भी कुछ हल्की ग़िज़ा चाहिए होती है। ऐसे ही मेरे भाई , हमेशा लेख लिखते लिखते , कहानियाँ लिखते लिखते , रिपोर्टिंग लिखते लिखते , मतलब की बात लिखते लिखते मेरा दिमाग़ भी थक जाता है। लेकिन लिखना मेरा पेशा नहीं शौक़ है तो जब मैं कुछ ऐसा लिखता हूँ जिसका मतलब शायद कुछ न हो , लेकिन मेरा शौक़ तो पूरा होता है। लेकिन इस बे-मतलब की बात में कहीं न कहीं कोई न कोई मतलब की बात निकल जाती है। इधर उधर से मतलब कुछ हल्का , जो अच्छा लगे।
हम्म्म्म
अरे उठिये और थोड़ी सी स्ट्रेचिंग करके ज़रा अपने चारों तरफ बिखरी कुदरती ख़ूबसूरती का लुत्फ़ उठाइये। आपने आखिरी समय गौरैया कब देखी थी ? फ़ाख्ता देखी है आपने ? आपने नदी के किनारे पानी पैर डालकर कोयल को कब सुना था ? जंगल में किसी खंडहर होते हुए मंदिर में बैठकर अपने आप से और कुदरत से बातें कब करीं थीं ? याद नहीं होगा न ?
कैसे याद होगा। हम घर से बाहर निकलते हैं तो कुत्ते को घुमाने का काम। सब्जी भाजी लाने का काम , बच्चो ने कुछ मँगवाया है वो काम , दवाई लानी है वो काम , राशन खत्म हो घर में वो लाना है सो वो काम। सुबह काम शाम काम।
सोचो सुन्दर लाल सोचो।
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