आज कलम उठाई कि चलो कुछ लिखा जाए। कोई नया मुद्दा दिमाग को सूझा क्या !
नहीं बिलकुल नहीं , कसम से कतई नहीं।
फिर आज लिखने का मूड क्यों बन आया जनाब ?
क्या ये जरुरी है कि हमेशा कोई मुद्दा हो तभी लिखा जाए ? कभी कभी कुछ यूँ ही या यूँ भी लिखा जाना चाहिए। माँ कसम सच कह रिया हूँ।
कुछ इधर की कुछ उधर की। कुछ यहाँ की कुछ वहाँ की। समझ रहे हैं न आप ?
जी बिलकुल समझ रहे हैं जो आप कह रहे हैं और या अल्लाह यक़ीन मानिये जो आप नहीं कह रहे हैं वो भी हम समझ रहे हैं।
बाख़ुदा बड़ा ज़हीन दिमाग पाया है आपने !
अच्छा जी
हाँ जी।
देखिये आप मुझे इधर उधर की बातों में भटका रहे हैं। मैंने कुछ लिखने के लिए कलम उठाई है आज।
लो कल लो बात। अभी ख़ुद ही तो कह रह थे कि इधर उधर की बातें लिखेंगे।
अरे तो इधर उधर का लिखने का मतलब बकवास थोड़ी लिख देंगे। हाँ नहीं तो। अरे हम कोई प्रधान मंत्री थोड़े ही है कि जो मुँह में आया बोल दिया , पीछे से सारा मंत्रीमंडल लगा है लोगों को समझाने।
अच्छा जी। तो आपका इधर उधर से क्या मतलब है , ज़रा तफ्सील से समझायेंगे ?
समझायेंगे समझायेंगे और हम नहीं समझायेंगे तो कौन समझायेगा। हमारे पीछे कोई आत्रा या पात्रा तो नहीं है जो नौटंकी करके आपको समझा दे।
क्रमश:
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