कब वो सुनता है कहानी मेरी,
और फिर वो भी जुबानी मेरी .....
बात करने से बात बढती भी है , बात साफ़ होती है भी है और बात से बात निकलती भी है .....इसीलिए तो कहा है ....बात निकलेगी तो दूर तलक जायेगी .....मानो या न मानो।
तुमने पूंछा था की क्या मैं नाराज़ हूँ .....?
नहीं नाराजगी किस बात की ..... हाँ अफ़सोस जरूर हुआ और है भी .....क्योंकि मैं तुमको एक अलग पैमाने पर देखता था, कईयों से अलग, कईयों से जुदा। मेरी सोच। या तो मैं भी की तरह सोचना शुरू कर दूं ...या जो मेरी मौलिक सोच है उसको बरकरार रखूं। दुनिया की भेड़ चाल में चलना ....मेरे बस का नहीं।
जब भी डूबे तेरी यादों के भंवर में डूबे,
ये वो दरिया है जो हमें पार न करना आया।
लेकिन बशीर बद्र का वो जो शेर है :-
कुछ तो मजबूरियाँ रही होगीं,
यूँ ही कोई बेवफ़ा नहीं होता .....
और जब तक मैं सच्चाई की तह तक न पहुँच जाऊं , कोई राय या कोई धारणा बना लेना गलत होगा। और मेरा ये firm belief है की सच एक न एक दिन सामने आ जाता है और झूठ के पाँव नहीं होते। और जब तक सच सामने नही आ जाता तब तक बर्दाशत करना। यही समझदारी है। दुनिया ने ही सीखाई है ये समझदारी .......
एक न एक दिन जरूर आएगा जब जमाना हमको ढूँढेगा, न जाने हम कहाँ होंगे।
हाँ ये जरूर सोचता हूँ कि कहाँ गयी तुम्हारी अपनी शख्सियत , तुम्हारी अपनी एक individual personality. मनुष्य ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति है है ......ऐसा सुना है और मानता भी हूँ .....
दुनिया को ये कमाल भी कर के दिखाइए ,
मेरी जबीं पे अपना मुकद्दर सजाइए।
लोगों ने मुझ पे किया हैं जफ़ाओं के तजुर्बे,
इक बार आप भी तो मुझे आजमाइए।
तुम मुझको जितना या कितना जानती हो ...ये तो पता नहीं , लेकिन इतना तो जानती होगी की मैं उनमें से नहीं हूँ जो तुमको शर्मसार करे या रुसवा ....
बाकी तुम्हारी सोच और तुम्हारी मर्जी .........इसके आगे और क्या बोलूं ..... तुम्हारी आज भी वही इज्ज़त है और वही स्थान है मेरे दिल में जो था ....हम किरायेदार बदलते नहीं ....बस इतना है की ..
गिरता है अपने आप पर , दीवार की तरह,
अंदर से जब चटकता है, पत्थर सा आदमी।.
आप की कसम।
और फिर वो भी जुबानी मेरी .....
बात करने से बात बढती भी है , बात साफ़ होती है भी है और बात से बात निकलती भी है .....इसीलिए तो कहा है ....बात निकलेगी तो दूर तलक जायेगी .....मानो या न मानो।
तुमने पूंछा था की क्या मैं नाराज़ हूँ .....?
नहीं नाराजगी किस बात की ..... हाँ अफ़सोस जरूर हुआ और है भी .....क्योंकि मैं तुमको एक अलग पैमाने पर देखता था, कईयों से अलग, कईयों से जुदा। मेरी सोच। या तो मैं भी की तरह सोचना शुरू कर दूं ...या जो मेरी मौलिक सोच है उसको बरकरार रखूं। दुनिया की भेड़ चाल में चलना ....मेरे बस का नहीं।
जब भी डूबे तेरी यादों के भंवर में डूबे,
ये वो दरिया है जो हमें पार न करना आया।
लेकिन बशीर बद्र का वो जो शेर है :-
कुछ तो मजबूरियाँ रही होगीं,
यूँ ही कोई बेवफ़ा नहीं होता .....
और जब तक मैं सच्चाई की तह तक न पहुँच जाऊं , कोई राय या कोई धारणा बना लेना गलत होगा। और मेरा ये firm belief है की सच एक न एक दिन सामने आ जाता है और झूठ के पाँव नहीं होते। और जब तक सच सामने नही आ जाता तब तक बर्दाशत करना। यही समझदारी है। दुनिया ने ही सीखाई है ये समझदारी .......
एक न एक दिन जरूर आएगा जब जमाना हमको ढूँढेगा, न जाने हम कहाँ होंगे।
हाँ ये जरूर सोचता हूँ कि कहाँ गयी तुम्हारी अपनी शख्सियत , तुम्हारी अपनी एक individual personality. मनुष्य ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति है है ......ऐसा सुना है और मानता भी हूँ .....
दुनिया को ये कमाल भी कर के दिखाइए ,
मेरी जबीं पे अपना मुकद्दर सजाइए।
लोगों ने मुझ पे किया हैं जफ़ाओं के तजुर्बे,
इक बार आप भी तो मुझे आजमाइए।
तुम मुझको जितना या कितना जानती हो ...ये तो पता नहीं , लेकिन इतना तो जानती होगी की मैं उनमें से नहीं हूँ जो तुमको शर्मसार करे या रुसवा ....
बाकी तुम्हारी सोच और तुम्हारी मर्जी .........इसके आगे और क्या बोलूं ..... तुम्हारी आज भी वही इज्ज़त है और वही स्थान है मेरे दिल में जो था ....हम किरायेदार बदलते नहीं ....बस इतना है की ..
गिरता है अपने आप पर , दीवार की तरह,
अंदर से जब चटकता है, पत्थर सा आदमी।.
आप की कसम।
1 comment:
Nice comeback...keep it up.
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