Tuesday, December 4, 2012

अरे हाँ .....आशा

प्रिय आशा, 

 ...... काफी समय बाद तुमको लिख रहा हूँ। 

तुम्हारा पत्र पढ़ा और हिल गया अंदर तक। नहीं ....नहीं। संभव नहीं है . काफी समय बाद तुम्हारा पत्र आया और कारवाँ गुजर गया, गुब्बार देखते रहे।

बड़े मगरूर दोस्तों से नवाज़ा  है खुदा ने, 
अगर मैं न करूँ याद तो जहमत वो भी नहीं करते। ....

.खैर ये शिकवे-गिले का वक़्त नहीं है। .........

 प्रेम वो गुड नहीं है जिसे चीटें  खाएं। प्रेम जिस बिना पे खड़ा होता है या पनपता है ......वो है विश्वास, और विश्वास .... पर्वत को भी हिला सकता है ....कोई कड़वी  भावना नहीं है, कोई अलगाव  नहीं है और न ही इसका क्षय संभव है। कोई संकीर्ण सोच प्रेम को मार नहीं पाई ....

माना हमारे बीच रख दी वक़्त न कुछ दूरियां , 
कोशिश ये हो दिलों में रास्ता ज़िंदा रहे ......

प्रेम तो वो अगरबत्ती है जो धीमे धीमे जलता है और महकाता रहता है .....

वक़्त पे भरोसा रखो ....ये चलता है और चलता रहता है .....यही तो इसकी ख़ूबसूरती है ....यही तो इसका हुस्न है .....ये पलटता भी है .....ये युसूफ को मिस्र के बाज़ार में बिकवाता भी है और उसको शाहे मिस्र भी बनवा देता है। अरे प्रेम में अगर तपे नहीं तो सोना कैसे बनोगे ....बोलो तो। 

और ....

सोना बनो तो फिर इतना सोच लो, 
हर शख्स इक बार परखता जरूर है। ......

लो मेरी तरफ देखो .....

इतना टूटा हूँ की छूने  से बिखर जाऊँगा, 
अब अगर और दुआ दोगे तो मर  जाऊँगा ......

क्या और कुछ कहूँ अपने बारे में ....नहीं ना .....

बारिश में तो नहाया है न तुमने .....अब बताओ हल्की  हल्की  फुहारों में जो भीगने का आनंद है .....वो घनघोर बारिश में कहाँ ....

इस प्रेम की अगन में तपने का आनंद लो .......आशा, विश्वास के साथ.....

और आशा का दिया तो जिन्दगी का दिया बुझने के बाद ही बुझता है ..... कम से मेरा तो .....

जो आके रुके दामन पे सबा, वो अश्क नहीं है पानी है, 
जो अश्क न छलके आँखों से उस अश्क की कीमत होती है .....

अब बोर मत हो ...... क्या करूँ शायरी मेरी फितरत है .....कभी खुल के बात नहीं करता हूँ ....इशारों इशारों में कह देता हूँ ......और उसको जहाँ पहुंचना होता है ...पहुँच जाता है। कितने पत्थर मेरे आँगन में आये हैं ......जानती हो ....किस किस के हैं ये पत्थर जानती हो ......मेरे अपने ही .....you know. अब मेरे अपने ही हैं तो मैं कर भी क्या सकता हूँ .....जानती हो न कौन सी ताकत है जिसने आज तक मुझको ज़िंदा रखा है ........प्रेम।

हाँ .....आशा प्रेम।

आमीन !!!!!!!




No comments: