Saturday, September 29, 2012

देखो ये मेरे ख्वाब थे, देखो ये मेरे ज़ख्म हैं ...........

देखो ये  मेरे ख्वाब थे, देखो ये मेरे ज़ख्म  हैं ........... 

लो ....एक और काग़ज ...अधलिखा ......अनपढ़ा ..............

क्या आनंद  काग़ज  पर  जिन्दगी जीता था ...... अविनाश?

क्या बताऊँ .... राधा। .....सच में मैंने भी आनंद के चारों तरफ काग़ज , चुरुट और चाय ही देखी है। वो ग़ालिब की एक शेर हैं न ......

चंद हसीनो के बुताँ , चंद हसीनों  के खुतूत, 
बाद मरने के मेरे, घर से ये सामाँ  निकला। 

राधा हंस पड़ी अविनाश के जवाब पर। सही कह रहे हो अविनाश ...शायद उसकी जिन्दगी इस लिए आसान थी।

किसे पता राधा .....जिन्दगी आसान थी उसकी ..या नहीं। लेकिन जीता बड़ी आसानी से था। कुछ लोगों के लिए सांस लेना भी भारी होता है। ...............जिन्दगी ने जो दिया , वो उसने ले लिया ...मुस्करा दिया .... आगे बढ़ गया। उसका तो जिन्दगी जीने का फ़लसफ़ा साधारण था .... बहुत ही साधारण .....

हार में या जीत में , किंचित नहीं भयभीत मैं , 
संघर्ष पथ पर जो मिला , ये भी सही, वो भी सही। 

जब अपने करने से कुछ न हो तो उसके हांथो में अपने आप को सौंप दो .....क्योंकि जो कुछ हुआ या हो रहा है या होने वाला है ....सब उसकी मर्जी से ही चलता है .....ये निजाम . आनंद कागज पर जिन्दगी नहीं जीता था ...बल्कि जो वो जीता था उसे कागज पर उतार देता था। उसने कभी  प्रेम के बारे में खुले आम नहीं लिखा ..कुछ खुले आम नहीं कहा .....क्योंकि प्रेम को कौन कागज पर उतार पाया है आजतक , कौन शब्दों में बाँध पाया है आजतक .....प्रेम तो किया जा सकता है या जिया जा सकता है ......उसने दोनों किये।

अविनाश .......आनंद को लेकर इतनी भ्रांतियां क्यों हैं  .... इतनी कहानियाँ क्यों है .....?

राधा .... आनंद ने जो जिन्दगी जी , उसने जितने घाव खाए .......और उसके बाद भी दुआ देता रहा। तो लोग confuse होते रहे। और  कहानियाँ बनाते रहे। ...उस के संस्कार ऐसे थे .....

गुजरो जो बाग़ से तो दुआ मांगते चलो , 
जिसमे खिलें हो फूल वो डाली हरी रहे। 

तुम आनंद से कितनी बार मिली हो ...राधा ..?

कई बार .....क्यों ..अविनाश?

कितनी बार उसने तुम्हारे  सामने दूसरों की बात की है या  बुराई की है ?

कभी नहीं ...... कभी मैंने खुद कोशिश भी की तो उसने discourage कर दिया .....उसका  एक ही जवाब होता था ...जाने भी दो यारों ...एक बार मैंने उससे कहा की आनंद तुमको पता है की लोगतुम्हारे  बारे में क्या क्या कहते हैं ....क्या क्या  सोचते हैं .....तो बड़ी  आसानी से उसने जवाब दिया " राधा .....लोग मेरे बारे क्या सोचते हैं ..ये problem है। मेरी नहीं।



Sunday, September 23, 2012

शीशे का खिलौना था ..5.. वो कौन थी--

अधलिखे पन्ने, अधलिखे ख़त , अधलिखे लेख ....ये सब क्या साबित करते हैं ....राधा। क्या दिखाते हैं ये सब ...?

अविनाश ......ऐसा नहीं लगता की आनंद कुछ कहना चाहता था और कोशिश भी करी ....लेकिन अधूरा अधूरा रह गया ......कोई ऐसा सच जो वो खुद से भी बताने में  डरता था ......देखो ....हर  ख़त में ...हर  अधलिखे पन्ने में  कोई  न कोई  बात कह रहा है वो ....

 हाँ  राधा ................ कितनी गहरी  चोट खाई उसने ......ये देखो ....

तू छोड़ रहा है तो इसमें खता तेरी क्या, 
हर शख्स मेरा साथ निभा भी नहीं सकता।

वैसे तो इक आंसू भी बहा कर मुझे ले जाए 

ऐसे कोई तूफ़ान हिला भी नहीं सकता।

कितना सच कहा है न ....राधा। आँसू की धार में बह जाने वाला इंसान था .....वो।  और वैसे बड़े बड़े तूफान  भी उसको हिला नहीं पाए .......

और ये देखो अविनाश ......

इक नफ़रत  ही नहीं दुनिया में , दर्द का सबब फ़राज़, 
मुहब्बत भी सुकून वालों को बड़ी तकलीफ देती है ................... क्या बोलते हो ......अविनाश।

अविनाश ......चुपचाप राधा की तरफ देखता रहा ......  पता नहीं राधा .......विश्वास नहीं होता की आनंद अंदर ही अंदर इतना गंभीर ,इतना अकेला .......रहा अकेला ...और जाते जाते भी किसी को खोज खबर की तकलीफ न दी .....

अविनाश ....कल मैं ज्योति से मिली थी। 

अच्छा .........क्या हाल चाल हैं ......

मस्त है ..... बिंदास ........

अच्छा है .......जिदंगी कैसे जी जाती है या जी जानी चाहिए ......इन लोगों से सीखना चाहिए ....राधा। और मुझे कोई शिकवा -गिला नहीं है। बल्कि में  तो लोगों को इक किताब समझता हूँ ...हर  किसी से कुछ न कुछ सीखा जा सकता है ....और सीखा भी जाना चाहिए। दर्द देना भी और दर्द को बर्दाशत करना भी .....

तेरा न हो सका तो मर जाऊँगा फ़राज़, कितना खूबसूरत झूठ बोलता था वो। 

कौन ....... 

बस इसी "कौन" .....पर आके तो हर  बात रुक  है जाती है ......

 .... वो कौन थी--

पूंछा जो मैंने जिस्म से रूह निकलती है किस तरह ,
हाँथ उन्होने अपना मेरे हाँथ से छुड़ाकर दिखा दिया ....

Oh my God...........अविनाश। ....... आनंद तो अपने आप में एक प्रेम ग्रंथ था .... उंगलियाँ तो वो भी उठा सकता होगा .........लेकिन ......लेकिन   ......

मैं खुद भी एहतियातन उस गकी से कम गुजरता हूँ, 
कोई मासूम  क्यों मेरे लिए बदनाम हो जाए। 

Saturday, September 22, 2012

शीशे का खिलौना .....4 सदमा

किश्तों में  खुदकशी ....

क्यों ....... हो नहीं सकती ....क्या ???

पता नहीं ..... अविनाश।

 यादे .........किश्तों में  ही   मारती हैं ........ हर लम्हे मारती हैं, ये क्या खुदकशी से कम है ....... राधा।

लो ये पढो .......

भूल जाना भी एक तरह की नेमत है  फ़राज़ ,
वरना इंसान को पागल न बना दे यादें ........

अविनाश ........एक  पहेली है आनंद .....अपने आप में . ..... क्या था ..क्या दिखता था ...... क्या अपने आप को दिखाया उसने ......ऐसा क्यों .........अविनाश .

मैंने भी ये सवाल उससे कई बार पूंछा .......और हर बार उसने टाला  ....या बात को घुमाया ........लेकिन एक दिन तो में  पीछे पद ही गया और जवाब ले ही लिया ........

अच्छा ......क्या जवाब दिया आनंद ने ...बोलो न ..... बताओ न ......अविनाश।

क्या बताऊँ ....... कुछ देर तक वो मेरी तरफ देखता रहा ....कहा .....सुंदर लाल .....कैसे समझाऊं ......मैं  अपने आप में  , अपने अंदर  बहुत रेगिस्तान हूँ ......लोग होंठो की हंसी के अलावा अंदर तो उतरना ही नहीं चाहते ...और जरूरत भी किसको  है .......और वक़्त भी किस के पास है ......सुंदर। और जब रिश्ते जरूरत पर based होने लगे ......तो ..............

पता नहीं क्यों .......लोग रिश्ते की नजाकत को , गंभीरता को मुंह से निकले शब्दों से नापते हैं ......जबकि रिश्ते वो सच्चे होते हैं .....जो शब्दों से परे होते हैं .......जो अभिव्यक्ति से परे होते हैं। जो ये कहता है की I love you......मैं उसे झूठा मानता हूँ .......क्योंकि प्रेमी को तो ये पता ही नहीं होता या नहीं होना चाहिए की वो प्रेम करता भी है या नहीं .....

" हमारे हुस्न की इस बेरुखी से था तुम्हे शिकवा,
मगर सच ये की न था कोई मेरा चाहने वाला ..............

आनंद  इस शेर में  ....."तुम्हे " कौन है ........ ये प्रश्न मैंने उससे पूंछा  ......

और जवाब ......

जवाब ............बिलकुल ....आनंद style का .....

तोहमतें तो मुझ पर हैं एक से एक नयी ......
खूबसूरत था जो इल्जाम वो नाम तेरा था .......

चाय पियोगे सुंदर ........आनंद का बात को घुमाने का चिर परिचित अंदाज .....

Thursday, September 20, 2012

शीशे का खिलौना ....3

 हर  एक आदमी में  होते हैं दस बीस आदमी,
जब भी किसी  को देखना ........ कई बार  .......देखना। ................लो चाय लो राधा  .....अविनाश ने ये एक शेर सुनाई राधा को चाय देते हुए ........सुनी तो होगी ....ये शेर राधा ....

हाँ ...... अविनाश। यहाँ  इसका जिक्र क्यों .........बोलो तो ......

एक   हल्की  सी मुस्कराहट के साथ अविनाश  ने कहा ......क्या बताऊँ राधा ....कितने किरदार जीता था अपने अंदर वो आदमी .............लेकिन  कोई उसकी गहराई न नाप पाया ...... मुझे भी कई चीज़ों से , कई बातों से महरूम रखा उसने। ..........बिलकुल Gemini राशि , मिथुन राशि वाला था न .........लगभग सारे लोग जो ये जानता थे की आनंद की राशि मिथुन है ......उन सबका  एक ही विचार था ......अरे भाई मिथुन राशि   वालों से तो दूर  ही रहो ....अंदर कुछ और बाहर कुछ ....... लेकिन सब ने negative ही लिया ......

जब भी करता है कोई प्यार की बातें,
हम शहर के शहर सितारों में सजा लेते हैं।

"मुझे अब आप के support की कोई जरूरत नहीं है ..... और ऐसा मैंनेकिया  ही क्या ......."

ये क्या है ......अविनाश ......ये तो कोई शेर भी नहीं लगती ....

और ये शेर है भी नहीं ......लेकिन ये है क्या .....ये मुझे भी नहीं पता ........

नहीं वो तो ठीक है .... लेकिन अचानक तुमने ये sentence क्यों बोला .....

मैंने नहीं बोला ......राधा। ये वाक्य आनंद ने कई पन्नों पर लिखा ...मैं भी सोच रहा हूँ ....की इसके पीछे क्या हो सकता है। आगे सुनोगी .........

बोलो ....... अविनाश।

हम तो  आगाज़े  मुहब्बत में  ही लुट गए फ़राज़,
लोग तो कहते थे की अंजाम बुरा होता है .............

तो क्या बात ज्योति पर  आ के रूकती है ....अविनाश

पता नहीं ....राधा। कुछ कहना मुश्किल है . आनंद जैसा निर्मोही ......मुहब्बत में इतना गहरा उतर गया .....विश्वास नहीं होता ......और सच बताऊँ .... तो उसको खुद भी नहीं एहसास रहा होगा। और फर्श से अर्श तक का सफर तय करने में ...जिन्दगियाँ ....लग जाती हैं।

मेरे शिकवों पे उस ने हंस कर  कहा फ़राज़,
किस ने की थी वफ़ा जो हम करते .....

Interesting .............. है न अविनाश। ......

Yes...it is. 

तुम ने सारे papers पढ़ लिए ...... अविनाश ......?

नहीं राधा .........

और क्या लिखा है कुछ बताओ .....

भूले है रफ्ता रफ्ता उन्हें मुद्दतों में हम,
किश्तों में खुदकशी का मजा हम से पूंछईए .....

किश्तों में  खुदकशी .....................अविनाश ...

Tuesday, September 18, 2012

शीशे का खिलौना था ....2

नहीं अविनाश .....आनंद की मृत्यु अभी तक इक रहस्य है ....मेरे लिए। सच बोलूं ....जब अकेले बैठ कर सोचती हूँ की आनंद हमारे बीच अब नहीं है तो यकीन नहीं आता। वो हँसता हुआ चेहरा आज भी आँखों के सामने घूमता है ......अविनाश।

राधा ......तुम उसको कुछ सालों से जानती हो ....मेरे वो बचपन का साथी था

लेकिन अविनाश ....ऐसा क्या हुआ था आनंद को ......

कुछ नहीं .......

कुछ नहीं ....मतलब।

राधा ........अगर लोग समझते हैं की आनंद बीमार था ...तो गलत सोचते हैं। राधा अविनाश के सिगरेट के धुएं से बनते हुए छल्लों को देख रही थी ........राधा ...... इंसान के अंदर जब जीने की इच्छा खत्म हो जाए ...वो कितनी ही बीमारियों को जन्म दे सकती है। आनंद .... उन्ही एक बीमारी से ग्रस्त हो   था।

क्या .......आनंद ने जीने की इच्छा ही छोड़  दी थी ........

हाँ राधा ...........

कारण  ...........?

देखी  जो मेरी नब्ज तो इक लम्हा सोचकर ,
कागज उठाया और इश्क का बीमार लिख दिया ........

आनंद और मुहब्बत ..................नहीं अविनाश।

क्यों ..... राधा .......?

आनंद जैसा मस्त मौला , कभी यहाँ कभी वहां , कभी इधर कभी उधर .... कभी ऋषि तो कभी रसिक। वो तो एक पहाड़ी नदी की तरह था ........वो एक जगह रुकने वाला इंसान नहीं था , एक जगह बंधने वाला इंसान नहीं था .......

अविनाशा राधा की तरफ देखता रहा .....मुस्कराता रहा ....

राधा .......कभी आनंद के अंदर झाँक कर देखा था .......

अविनाश .....क्या इस प्रेम कथा के दूसरे  सिरे पर  ज्योति थी .....

हाँ .....राधा ....ये सही शब्द चुना तुमने ......"दुसरे सिरे पर " .......लेकिन उस नासमझ ने नहीं समझा ...... एक ..दोनोँ  एक। ...........देना है तो निगाह को ऐसी  रसाई दे, मैं देखूं आईना , मुझे तू दिखाई दे। ....ये सोचता था वो। .............

कैसे जानते हो इतना तुम , अविनाश .......

उसके कई  अध् लिखे पत्र मेरे पास है ...........उनको एक फाइल में  संजोया है। .......

फाइल का नाम है ...... शीशे का खिलौना था ....


शीशे का खिलौना था

बन्दगी हमने छोड़ दी फ़राज़ ........

ऐसा क्यों कह रहे हैं .......

क्या करें लोग जब खुदा हो जायें  ........

अविनाश , ये शेर है या तुम्हारा विचार ........

एक हंसी सी तैर गयी अविनाश के चेहरे पर  ......जैसे तुम समझो ......राधा।

अविनाश  .....  कल  ज्योति से मुलाकात हुई .....बड़ी खुश है वो अब।

ये तो अच्छी बात है न .............

अरे हाँ .......एक परिचय तो रह गया .....अभी तक आप जिसको सुंदर लाल के नाम से जानते आयें हैं .....उनका असली नाम अविनाश है ......बैंक में  काम करते  हैं ...और आनंद के बचपन के मित्र हैं .....वो तो आप लोग जानते ही हैं ...

राधा .....ये जो जिदंगी है न ....किसी के लिए रूकती नहीं है और वक़्त इसका इंजन है ....बस ये छुक - छुक कर के नहीं टिक टिक कर के चलती है .......आनंद ने बस एक गलती करी और अपनी जिन्दगी दे कर उसका मोल चुकाया।

कौन सी गलती .....अविनाश  ?

मैंने उसको इक सलाह दी थी .....

क्या ,,,,सलाह ...?

यही की " बड़े लोगों से मिलने में हमेशा फासला रखना, दरिया जहाँ समंदर से मिला, फिर दरिया नहीं रहता ..."
उसकी ये आदत की जैसा वो है वैसे ही सब हैं ............उसको इस लोक से उस लोक में  ले गयी ...

अविनाश ...किसी की मजबूरी भी तो हो सकती है .....यूँ ही कोई बेवफा नहीं होता।

संभव है ......राधा ....बिलकुल संभव है। लेकिन जब हम प्रेम करते है या प्रेम में  पड़ते हैं ....तब किसी की सलाह तो नहीं लेते .........की मैं   इससे या उससे प्रेम कर लूँ ......तो पीछे हटने में दूसरों की सलाह क्यों .......फिर वो कोई भी क्यों न हो ........

मैं कुछ समझी नहीं .... अविनाश ....

मत समझो ......यही अच्छा है ...मैंने दोनों को समझा .......

फिर ....?

फिर क्या .....शीशे का खिलौना था , कुछ न कुछ तो होना था ...हुआ।

अविनाश ......

कुछ मत कहो राधा .......