Friday, April 13, 2012

......I am fine....

गर्मी की दोपहर का अपना लुत्फ़ होता है.....

आनंद.........

कौन..........अरे तुम.......

हाँ.....इतना चौंक  क्यों गए......आनंद ?

अनअपेक्षित...था इसलिए चौंक गया.....नैना....आओ अंदर आओ. ...बैठो.

कैसी हो.......अरे हां.....आप लोगों से नैना का परिचय नहीं करवाया.....नैना , ज्योति की सहेली हैं....और स्कूल में मेरे साथ पढ़ातीं हैं.........

मालिन माँ....दो गिलास पानी दे दो......

क्या लोगी नैना.....चाय....या खाना. ....

कुछ नहीं आनंद......

ले बेटा पानी.......

लाओ माँ ......ये नैना हैं....मेरे साथ स्कूल में......

हाँ हाँ जानती हूँ.......ज्योति बिटिया के घर में मिल चुकी हूँ.....कैसी है बिटिया...?

मैं ठीक हूँ.....

ओहो....तो जान पहचान पहले से ही है.......

जी.....जनाब.....

नैना की निगाहें बता रही थीं कि वो घर का निरीक्षण कर रही है.......शायद  नैना पहली बार आनंद के घर आई है.....

और बताओ..नैना...क्या समाचार हैं....कैसे आना हुआ....?

समाचार.....................हूँ...........आनंद......ज्योति से कब से नहीं मिले हो.....?

लगभग १ महीने से.......

क्यों......?

क्यों मतलब....?

अरे मतलब क्यों नहीं मिले हो........? सब ठीकठाक है न...

हाँ...क्यों...ऐसा क्यों पूंछ रही हो.......नैना.

आनंद .......ज्योति बहुत परेशान है......

मैं जानता हूँ....नैना.

तो तुम उस से मिले क्यों नहीं.......आनंद ?

नैना......ज्योति ने तुमको क्या बताया......?

आनंद....ज्योति तुमको बहुत अपना मानती है.....बहुत.....वो हर वक़्त लोगों से भले घिरी रहती हो..लेकिन वो उन लोगों  में तुमको ढूंढती है......लेकिन...निराशा...

नैना.....मैं जानता हूँ और समझता भी हूँ......लेकिन कभी कभी वक़्त ऐसे मोड़ पर ला कर खडा कर देता जहाँ इंसान चाहते हुए भी...कुछ नहीं कर सकता.....अपाहिज हो जाता है.....ज्योति के अंदर जो रण चलता है...मैं उससे अनजान नहीं हूँ....और ये भी मैं जानता हूँ.....कि जल्दी ही वो इससे निकल भी जायेगी.

तुम इतने विश्वास से कैसे कह सकते हो.....

क्योंकि वक़्त कभी भी एक सा नहीं रहता....वो चलता रहता है..बदलता रहता है.....और बदलेगा भी...

मालिन माँ......................

हाँ बेटा........

माँ एक एक कप चाय बना दो..और जरा ज्योति के घर जाकर उसको बुला लोगी......

अच्छा........

आनंद...ज्योति के अंदर कि जो तड़प, जो व्याकुलता , जो डर बैठे हैं.....वो उसको जीने नहीं देंगे.....जीने नहीं दे रहे हैं.....

नैना.....प्रेम अगर कमजोरी है...तो उतनी ही बड़ी शक्ति भी है......वो प्रेम ही था जिसने तुलसीदास को उफनती हुई गंगा पार करा दी....वो प्रेम ही था जिसने अजगर को रस्सी बना दिया....शारीरिक ही सही..लेकिन प्रेम था....वो प्रेम ही था जिसने हनुमान को हिमालय लाने की शक्ति दी.....और ये भी प्रेम ही है जो ज्योति को हालातों से लड़ने की शक्ति दे रहा है......

और तुम्हारा.....आनंद...तुम्हारा क्या हाल है......?

मेरा.....?

हाँ तुम्हारा....तुम क्या सोचते हो..की तुम कुछ बताओगे नहीं तो मुझे कुछ पता नहीं होगा.....तुम ससब को हिम्मत और हौसला बाँटते हो...और तुम......आज अकेले खड़े हो...अकेल लड़ रहे हो..अपनी सारी जिम्मेदारियों के साथ.......

हे.......नैना......तू यहाँ.....

आओ ज्योति.........

काफी दिनों बाद ज्योति को देखा.....वही होंठो पे हंसी, आंखे सूखी.....

मालिन माँ.....

हाँ समझ गयी......तीन लोगों के लिए खाना बनना है......

मालिन माँ...तुसी ग्रेट हो....

चल चल....मक्खन मत लगा....क्या बनाऊं.......

आज तो नैना...की फर्माइश है......

मेरी क्यों .........

अरे पहली बार आई हो........तो ये तो हक है आपका.......

चल.....पराठा सब्जी बनती हूँ.....ठीक है......

ठीक है......

हूँ................ज्योति जी को सादर प्रणाम......

आनंद एक बार फिर अपने अंदर के जोकर को जगा रहे है....ताकि ज्योति का मन कुछ हल्का हो....

आनंद.................

अच्छा..नैना.....देखो कोयल अभी भी मीठा गाती है....ज्योति और नैना खिलखिला कर हँस पड़े....

आनंद तुम भी ना...............

ज्योति.....जहाँ तक मैं तुमको जानता हूँ.....तुम हार मानने वालों में से नहीं हो......लेकिन जब तूफ़ान तेज होता है....तो वही शाख बचती है..जो लचक जाती है.....

लेकिन आनंद......

हाँ....नैना.....

लेकिन ये सब कब तक................

किसने वक़्त देखा है...नैना.......मैं कैसे बताऊँ.....कब तक....लेकिन हर तूफ़ान की एक उम्र होती है.....

आनंद बेटा.......मालिन माँ .....का बुलावा...

आया माँ....

मैं अभी आया....तुम लोग बतियाओ.....

नैना.......हमलोग अपने दुःख और तकलीफों से इतने घिरे हुए और परेशान हो जाते हैं....कभी आनंद के बारे में सोचा हमने.......तू तो जानती है.....ये इंसान......जो रोज़  रोज़ चोट खाता है.....कभी शब्दों से , कभी व्यंग बाणों से....कभी लोगों की शूल जैसी चुभती हुई निगाहों से.....जिन लोगों को इस इंसान ने दूध पिलाया..वही लोग अब जहर उगल रहे है....इसके उपर.....लेकिन कोई इसके चेहरे से भाँप सकता है......इस इंसान ने विश्वासघात की हद देखी है....जब कोई दोस्त बन कर पीठ पर छूरी मारता है...तब क्या तकलीफ होती है....इस से पूंछो..नैना......लेकिन चेहरे पर शिकन.....कभी नहीं.....

मैं अंदर आ सकता हूँ......

आओ आनंद......कहाँ गए थे......

अरे मलिन  माँ ......ने एक काम से भेजा था......

आनंद.......

हाँ..नैना........

बहुत आसान है किसी को hurt करना और कहना sorry ...लेकिन बहुत मुश्किल है खुद hurt होना और कहना ......I am fine....



                                                                                                                                     अभी जारी है......











1 comment:

vandana gupta said...

लेकिन बहुत मुश्किल है खुद hurt होना और कहना ......I am fine....कितना बडा सच कह दिया बहुत सुन्दर