Tuesday, April 3, 2012

मुट्ठी भर रेत..

सिमटाव.....कुदरत का नियम है. सुबह भी सिमटती है और शाम भी......जन्म से लेकर मृत्यु की यात्रा जीवन का विस्तार है...या सिमटाव....पता नहीं. जीवन की ये यात्रा कई ठहराव  से गुजरती हुई अपने सिमटाव की तरफ है.....इस यात्रा में कई बार आँखे पथरा भी गयी.....सांस थम सी गयी.....लोग आते रहे....लोग जाते रहे..और आते- जाते भी रहेंगे...लेकिन ये जीवन की यात्रा नहीं रूकती.....हाँ ..नहीं रूकती...अनवरत......चलती रहती है.


कभी कभी मन करता है पल दो पल एकांत में बैठ कर..अपने जीवन का विश्लेषण करूँ....मेरे जीवन की ये गंगा किन किन रास्तों से होती हुई ..कहाँ तक पहुँच गयी.....मैं तो जल हूँ...जिस पात्र में डाला गया , उसी का रूप धारण कर लिया.....कभी पात्रों ने मुझे स्वीकार किया.... कभी छलका दिया गया....मन में इतनी यादों ने घर बना लिया है....उन यादों की भीड़   में खुद को ढूंढना मुश्किल सा हो जाता है. स्म्रतियों का भी अलग स्वभाव होता है, अलग चरित्र होता होता...है..कभी कभी ये मन पर बोझ डालकर उसको डुबो देना चाहती हैं और यही कभी डूबते हुए मन को सहारा भी देतीं हैं......मैं अपने आप में झाँक कर देखता हूँ....उस तिनके की तरह पाता हूँ जिसको लहरों ने जहाँ चाहा, जिधर चाहा ..बहा दिया.......


किसी चीज़ की तलाश ता उम्र मेरे साथ साथ चलती रही...और अभी भी है...कभी लगा मिल गयी..कभी लगा ये नहीं....इसी तलाश ने मुझे आवारा, बंजारा बना डाला.....लोग मिलते रहे, बिछुड़ते  रहे....और मैं जैसे समुद्र मैं कोई तिनका कभी इस लहर ने बहा दिया , कभी उस लहर ने डुबो दिया.....अफ़सोस रहा...हाँ एक अफ़सोस रहा की अभी तक कोई ऐसा नहीं मिल पाया जो मुझे जो मैं हूँ वो समझे.....लेकिन  फिर प्रश्न...कोई समझे क्यों......सब से रिश्ता बना रहे , मेरी इस कोशिश  ने कितनी बार मुझको जहर पिलाया , और मैंने पिया...ये जानते हुए....कि..


यूँ तो हर रिश्ते  का अंजाम यही होता है,
फूल खिलता है, महकता है, बिखर जाता है....

.लेकिन अब तो साहिल की तलाश है....किनारे की तलाश है....लेकिन सारे रिश्ते मुट्ठी मे रेत की तरह होते हैं.....सिर्फ मुट्ठी भर रेत.. 

No comments: