Sunday, April 1, 2012

गाँठ अगर लग जाए तो फिर रिश्ते हों या डोर,

हाँ सवाल हैं...मेरे जहन में भी सवाल उठते हैं.....लेकिन अफ़सोस सवाल ही हैं...कोई जवाब नहीं है उनका....कौन देगा जवाब.....सब तो किनारा करने लगे हैं.....या कर चुके हैं......क्यों.....????? क्या मैं अछूत हूँ.......या मुझसे बात करने में या सम्बन्ध रखने में status symbol पर चोट लगती है......आज आनंद की सहनशीलता जवाब दे रही थी......लेकिन वो अभागा पूछे भी तो किस से......शीशे के सामने बैठ कर..खुद से......कहाँ गए वो सब लोग जो दावा करते थे....अपने होने का.... दुःख  दर्द बांटने  का..... साथ साथ चलने का.....कहाँ गए.....

कौन देता है साथ यहाँ उम्र भर के लिए.
लोग तो जनाजे में भी कंधा बदलते रहते हैं.

ये क्या approach  है लोगों की  जब उनका मन किया तो बात की..जब मन किया......सम्बन्ध विच्छेद ....अरे आनंद क्या इंसान नहीं है....... कुछ नहीं बोलता है...तो इसक ये मतलब तो नहीं की लोग जब मन करे तब उसकी तरफ पत्थर उछाल दें........ignore करने की पीड़ा , avoid  करने का दर्द बहुत तकलीफ देता है.....और ख़ास कर जब वो उनसे मिला हो.....जो अपने हों...बिलकुल अपने.....

दर्द होता है...बहुत दर्द होता है....लेकिन कुछ नहीं कहूंगा......सिर्फ इतना कहूँगा ....

गाँठ अगर लग जाए तो फिर रिश्ते हों या डोर,
लाख करो कोशिश खुलने में वक़्त तो लगता है.... 

  

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