Thursday, October 13, 2011

नीड़ का निर्माण फिर.....२

माँ.....आनंद आयें हैं.....ज्योति की आवाज़.

नमस्ते चाची......कैसी हो?

मैं तो ठीक हूँ बेटा....लेकिन तू....ये क्या हाल बना लिया है....? कहाँ था......बैठ....

सब ठीक है चाची....रही हाल की बात...तो कुछ दिन के लिए "उस से मन हटा कर दुनिया से लगा बैठा था, बाकी सब ठीक है.."

तेरी बात को समझना मेरे बस का नहीं है...तू बैठ..मैं चाय बनाती हूँ.

कैसे हो आनंद.....पास में कुर्सी  खींच कर ज्योति बैठ गयी.

बढ़िया हूँ...ज्योति.......वाकई में बढ़िया हूँ....वो कहते हैं ना की ईश्वर जिसको चाहता है....उसको "इल्लत, किल्लत और जिल्लत" थोक में देता है....और अब मुझे यकीन हो गया है..कि वो मुझे चाहता है....किसी से कोई शिकायत नहीं, कोई शिकवा नहीं...देह धरे को दंड है सब कहू को होय...

जानती हूँ, आनंद......

जानती हो ना ज्योति....अंग्रेजी मे एक कहावत है...Time is the biggest healar and death is the great leveller....तो सोचना क्या...और सोचना क्यों....

तुम्हारी जिन्दगी के फलसफे इतने सीधे और इतने आसान हैं...आनंद.....

मेरे पास सब कुछ है....हाँ..सब वो कुछ. लेकिन फिर भी एक खालीपन, एक रीतापन....कुछ तो है जो मेरे पास नहीं है, उसके ना होने का एहसास....पता नहीं.... 

ज्योति...पिछले ६ महीनो ने मुझे सोना बनने का मौका दिया है....हाँ...सोना बनने का....जो तभी खरा होता है...जब आग में जलता है....अब कोई लगाव नहीं...सिर्फ ड्यूटी, ड्यूटी और फिर ड्यूटी...यही है..जिन्दगी. 

हमने जाकर देख लिया है, राहगुजर के आगे भी, 
राहगुजर ही राहगुजर है, राहगुजर के आगे भी......

आनंद एक बात बोलूं.....

बोलो...

तुम कहना कुछ और चाहते हो..कह कुछ और रहे हो....क्या ऐसा तो नहीं..है.

पता नहीं....

तुम इतने चुप रहने वालों में से तो नहीं हो....जहाँ तक मै जानती हूँ...

हमको किस के गम ने मारा,
ये कहानी फिर सही.
किस ने तोडा दिल हमारा,
ये कहानी फिर सही............ज्योति.

ले बेटा....चाय ले...और ये हरी मटर का पोहा....

वाह चाची...इसकी सख्त जरूरत थी....काका कहाँ हैं...दिखाई नहीं पड़ रहे...

रामदीन .....का भतीजा गुजर गया....गए...वीरवार को....

अरे...कौन....सुनील......?

हाँ.....

हे राम....काका तो ठीक हैं....?

ठीक ही है बेटा......शाम को आ जायेगा....

और ज्योति ......स्कूल कैसा चल रहा है....

ठीक चल रहा है......आप का क्या प्रोग्राम है....

मेरा प्रोग्राम......? किस बारे में.....

स्कूल ज्वाइन करने के बारे में......

मैं तो इस्तीफ़ा काफी समय पहले दे चुका हूँ.....ज्योति. ..

कहाँ जा रही हो...?

आती हूँ.....

ज्योति लौटी तो हाँथ मे एक लिफाफा था....ये लो आनंद.

ये क्या है......अरे ये तो मेरा इस्तीफ़ा है....?.......

हाँ.....accept नहीं हुआ....

मतलब.....?

मतलब ये...कि इस्तीफ़ा accept नहीं हुआ.....

ये सब क्या है........ज्योति... 

आँखों को इंतज़ार की भट्टी पे रख दिया,
मैंने दिये को आँधी की मर्ज़ी पे रख दिया.
पिछला निशान जलने का मौजूद था तो फिर,
क्यों हमने हाथ जलते अँगीठी पे रख दिया

क्रमश: ....... 

1 comment:

vandana gupta said...

लगता है इस बार नीड का निर्माण होकर रहेगा……………कहानी अपनी गति से चल रही है अब आगे का इंतज़ार है।