अरे....नैना the philospher .....मेरे जाते ही तुम को ज्ञान मिला या ये संगत का असर है....ज्योति तो गंगा है.....देखा थोड़ी देर में ही..तुम राम राम बोलने लगीं..........सब हँसने लगे....
नैना.....ये जो जिन्दगी की किताब है, ये किताब भी क्या किताब है....कहीं छीन लेती है हेर ख़ुशी , कहीं मेहरबाँ बेहिसाब है. तुमको लगता है ज्योति ने काफी कुछ बता दिया हैं इन दस मिनटों में..मेरे बारे में.......
हाँ आनंद.....नैना का जवाब.....मुझे तो कुछ समझ में ही नहीं आ रहा है..तुमको देख कर तो कोई गुमाँ भी नहीं होता.....
नैना..ये जो मैडम बैठीं है न..कभी इनके बारे सोचा है.....
कौन ज्योति के बारे में......
हाँ...ज्योति के बारे में....
हाँ आनंद .....जानती हूँ.....और अब समझ में आ रहा है की क्यों तुम दोनों इतना करीब हो.....या ये कहूँ की दोनों एक ही नाव में हो.....
नहीं नैना......एक ही नाव तो नहीं कह सकते हैं....लेकिन खग जाने खग की भाषा.....नदी के दो किनारे की तरह हैं..जो कभी मिल नहीं सकते.....लेकिन बिना किनारों के दरिया भी नहीं होता.....और किनारे तभी टूटते हैं जब सैलाब आता है, जब तूफ़ान आता है.....नैना..तुमने लोहे की पिंजरे में बंद चिड़िया तो देखी होगी....
हाँ आनंद देखी है......
और उसी चिड़िया को सोने की पिंजरे में बंद कर दें तो कोई फर्क पड़ेगा....
नहीं...चिड़िया को तो कोई फक्र नहीं पड़ेगा ...
वही हैं..........ये ज्योति......क्या नहीं है इसके पास....लेकिन फिर भी एक रिक्तता.....एक कमी.....में जब भी इसकी आँखों की तरफ देखता हूँ...तो रिक्तता साफ़ नज़र आती है....इसलिए..में इनसे नज़र मिलाते हुए भी डरता हूँ.....और ये भी डर रहता है...की नज़र लड़ ही न जाए......
आनंद.............ज्योति....का कुछ शर्माता हुआ लहजा.
चलो बेटा...खाना तैयार है.....यहीं दे दूँ......मालिन माँ....तुरंत कबूल कर लेने वाला प्रस्ताव....
मेहरबानी होगी..अगर यहीं दे दो......ज्योति का जवाब मालिन माँ को.
ज्योति को देख कर कभी कभी एक शेर याद आता है.....एक समुंदर ने आवाज़ दी, मुझको पानी पिला दीजिये.
इतना सूक्ष्म विश्लेष्ण सुनकर नैना कभी आनंद की तरफ तो कभी ज्योति की तरफ देखती रही...लेकिन लाजवाब..शायद अपने मन में इंसान की मानसिकता का विश्लेषण कर रही थी....
नैना...कभी ज्योति के साथ रह कर उसको समझना............सालों पुरानी किताब है....इतनी जल्दी खत्म नहीं होती है......सब के कहने से इरादा नहीं बदला जाता हर सहेली से दुपट्टा नहीं बदला जाता.........
आनंद.....बस करो ...ज्योति का आग्रह....
जैसा तुम चाहो ...ज्योति..
‘‘यह फ़क़त आपकी इनायत है।
वरना मैं क्या, मेरी हक़ीक़त क्या ?’
जारी है...