आनंद.....तुम ने निदा फाजली की वो ग़ज़ल सुनी होगी....
हर तरफ हर जगह बेशुमार आदमी,
फिर भी तन्हाइयों का शिकार आदमी.
हाँ ज्योति....ये जिन्दगी का सच भी है....
तुमको नहीं लगता की हम दोनों एक ही कश्ती में हैं...आनंद
हाँ...तभी तो साथ साथ हैं.....मैं जानता हूँ...और समझता भी हूँ ज्योति...जो तुम्हारे दिल-ओ-दिमाग में चलता है और चल रहा है.....लेकिन हर रिश्ते को कोई नाम देना तो जरुरी नहीं हैं ना...खासकर जहाँ पर दिल के रिश्ते हों..वहां कोई बंधन स्वीकार नहीं होता......चाहे बंधन एक नाम का ही क्यों ना हो.....मैने रिश्तों को टूटते हुए देखा है, मैंने रिश्तों में दरार पड़ते देखा है.....लेकिन दिलो के रिश्ते...जिस्म का बंधन टूटने के बाद भी नहीं टूटते....ज्योति.....दिल के रिश्ते देश और काल से परे होते हैं.....सुनने में दार्शनिक लगता है, philosphy लगती है..लेकिन सच भी यही है...कोई भी रिश्ता तभी ज़िंदा रहता है जब उसके बीच सांस लेने की जगह हो....नहीं तो दम घुटने लगता है....
ठीक कह रहे हो आनंद...नहीं तो दम घुटने लगता है....
हाँ ज्योति...अब इस पैमाने पर मेरे और अपने रिश्ते को नापो...
ज्योति....जिन्दगी बहुत खूबसूरत है....इसकी सबसे बड़ी ख़ूबसूरती जानती हो क्या है....
क्या है.....
रोज़ नए रंग दिखाती है.....नयापन बना रहता है, ताजगी बनी रहती है....कभी उपर की तरफ चलती है तो कभी नीचे...कभी इतना उपर ले जाती है की डर लगने लगता है...तो कभी इतने नीचे ले जाती है की डर लगने लगता है....कभी निराशा का बदल छा जाता है तो वहीँ पर आशा की किरण भी चमकती है....
मैं आनंद को देख रही थी....जिसको आम लोग...जोकर, बेवक़ूफ़ या पागल कह कर किनारा कर लेते हैं....वो आज एक दार्शनिक बन गया और कितने आराम से जिन्दगी को जी गया...जख्म सह गया...अपमान पी गया ..... इनको प्रेम ना करूँ तो क्या करूँ.....प्रेम सिर्फ प्रेम...लेकिन इनसे भी बच कर रहना पड़ेगा....वो अपना समाज है ना....
कहाँ करने देगा नीड़ का निर्माण फिर....???????