भगवान् के काम, समझ से बाहर के होते हैं. दुनिया बनाई, समझ मे आती है. लोग बनाये , समझ मे आता है. दिमाग दिया, समझ मे आता है. अब दिल बने की क्या जरूरत थी, ये बात मेरी समझ से परे है. अरे जब दिमाग दे दिया था तो उसी में कुछ ऐसा इंतजाम कर देता जो दिल का काम भी करता रहता था. वो तो बड़ा कारसाज़ है कर देता तो आज कितने लोग कितनी तकलीफों से बच जाते. दिल का दौरा नहीं पड़ता, दिल टूटा नहीं करते, लोगों को दिल से खेलने का मौक़ा नहीं मिलता. न दिल होता , न भावनायें होती, न संवेदनाएं होती. आदमी कितना सुखी होता. वफ़ा ये बेवफा जैसे अलफ़ाज़ ही ईज़ाद न हुए होते. न प्यार, न मुहब्बत, न नफरत -- कुछ नहीं. दुनिया कितनी सुंदर होती. न मंजनू होता, न रांझा.
खैर , अब इसके दुसरे पहलू को देखते हैं. अगर दिल बना ही दिया , तो फिर लोग भी दिलदार होने चाहिये. आज के लोगों, जो दिल होने का दावा करते हैं, वो कहानी याद आती है, जब एक गीदड़ ने शेर की खाल पहन ली और अपने आप को शेर समझने लगा. आज के लोगों ने ईश्वर के घर को (दिल मे ईश्वर का निवास होता है) , तिजारत का सामन बना दिया, Business का सामन बना दिया, खेलने का खिलौना बना दिया, तोड़ने का सामन बना दिया, बस दिल को दिल ही न बना पाये. लेकिन दावा पूरा है, की हमारे पास भी दिल है...................... अपना दिल , दिल, दूसरे का दिल, पेप्सी का ग्लास - Use & Thorw.
अच्छा, भगवान् भी तो ऐसे लोगों का हिसाब रखता होगा? जैसी करनी, वैसा फल. आज नहीं तो निश्चित कल. ये मैने एक बस मे लिखा हुआ देखा था. लेकिन ये दिल के व्यापारी, खुश बड़े देखे हैं मैने. क्योंकि दिल एक ऐसी चीज़ है, एक ऐसी commodity है जिसके ग्राहक और खरीददार मिलते भी थोक में हैं. एक ढूँढो , मिलते हैं हजारों. ये दिलों के व्यापारी. ये एक खटमल - मच्छर की तरह होते हैं. जो अलग - अलग लोगों का खून पीना पसंद करते हैं. ये देखने मे काफी मिलनसार और मीठा बोलने वाले होते हैं. हमदर्दी का मरहम हाँथ मे और आस्तीन मे खंजर छुपा कर रखते है. सर पे हाँथ फेरते हैं और पीठ पे वार करते है.
ये तो हुई बात उन लोगों की जिन के लिए दिल एक commodity है. अब जरा उन लोगों का हाल देखते हैं जो दिल को दिल मानते हैं. ऐसे लोग कम तादाद मे मिलते है. और ये लोग पिछडे वर्ग मे गिने जाते हैं. इनको कुछ लोग दकियानूस के नाम से पुकारते हैं. ये लोग दुसरे के दिल के खातिर अपने दिल पे कुछ भी सहन करने के ताकत रखतें हैं. दुसरे की ख़ुशी की खातिर , अपनी खुशियों को कुर्बान करना, इन लोगों के बाएं हाँथ का खेल होता है. ये अपने दिल को पेप्सी का ग्लास, और दूरी को दिल को कांच का ग्लास समजने की गलती अक्सर करते है. इन लोगों की आंखे हमेशा सूखी रहती है. दिल रोता है. ये लोग एक जोंक की तरह होते हैं, जिसको चिपक गये , चिपक गये. वहां से हटाया , तो मौत. और उस मौत को ये मौत नहीं मानते, कहते हैं की हम उनके दिल में तो ज़िंदा हैं. अरे भाई जिसके दिल मे ज़िंदा होने की बात कर रहे हो, ये तो तय कर लो की उनके दिल है भी या नहीं. कहीं ऐसा तो नहीं की शेर की खाल मे गीदड़ हो.
तोड़ो, फेंको करो कुछ भी, दिल हमारा है, क्या खिलोना है...
खैर , अब इसके दुसरे पहलू को देखते हैं. अगर दिल बना ही दिया , तो फिर लोग भी दिलदार होने चाहिये. आज के लोगों, जो दिल होने का दावा करते हैं, वो कहानी याद आती है, जब एक गीदड़ ने शेर की खाल पहन ली और अपने आप को शेर समझने लगा. आज के लोगों ने ईश्वर के घर को (दिल मे ईश्वर का निवास होता है) , तिजारत का सामन बना दिया, Business का सामन बना दिया, खेलने का खिलौना बना दिया, तोड़ने का सामन बना दिया, बस दिल को दिल ही न बना पाये. लेकिन दावा पूरा है, की हमारे पास भी दिल है...................... अपना दिल , दिल, दूसरे का दिल, पेप्सी का ग्लास - Use & Thorw.
अच्छा, भगवान् भी तो ऐसे लोगों का हिसाब रखता होगा? जैसी करनी, वैसा फल. आज नहीं तो निश्चित कल. ये मैने एक बस मे लिखा हुआ देखा था. लेकिन ये दिल के व्यापारी, खुश बड़े देखे हैं मैने. क्योंकि दिल एक ऐसी चीज़ है, एक ऐसी commodity है जिसके ग्राहक और खरीददार मिलते भी थोक में हैं. एक ढूँढो , मिलते हैं हजारों. ये दिलों के व्यापारी. ये एक खटमल - मच्छर की तरह होते हैं. जो अलग - अलग लोगों का खून पीना पसंद करते हैं. ये देखने मे काफी मिलनसार और मीठा बोलने वाले होते हैं. हमदर्दी का मरहम हाँथ मे और आस्तीन मे खंजर छुपा कर रखते है. सर पे हाँथ फेरते हैं और पीठ पे वार करते है.
ये तो हुई बात उन लोगों की जिन के लिए दिल एक commodity है. अब जरा उन लोगों का हाल देखते हैं जो दिल को दिल मानते हैं. ऐसे लोग कम तादाद मे मिलते है. और ये लोग पिछडे वर्ग मे गिने जाते हैं. इनको कुछ लोग दकियानूस के नाम से पुकारते हैं. ये लोग दुसरे के दिल के खातिर अपने दिल पे कुछ भी सहन करने के ताकत रखतें हैं. दुसरे की ख़ुशी की खातिर , अपनी खुशियों को कुर्बान करना, इन लोगों के बाएं हाँथ का खेल होता है. ये अपने दिल को पेप्सी का ग्लास, और दूरी को दिल को कांच का ग्लास समजने की गलती अक्सर करते है. इन लोगों की आंखे हमेशा सूखी रहती है. दिल रोता है. ये लोग एक जोंक की तरह होते हैं, जिसको चिपक गये , चिपक गये. वहां से हटाया , तो मौत. और उस मौत को ये मौत नहीं मानते, कहते हैं की हम उनके दिल में तो ज़िंदा हैं. अरे भाई जिसके दिल मे ज़िंदा होने की बात कर रहे हो, ये तो तय कर लो की उनके दिल है भी या नहीं. कहीं ऐसा तो नहीं की शेर की खाल मे गीदड़ हो.
तोड़ो, फेंको करो कुछ भी, दिल हमारा है, क्या खिलोना है...
No comments:
Post a Comment